जहां वर्तमान समय में भारत में अल्पायु में गर्भधारण और लैंगिक शोषण की उच्च दर की रिपोर्ट (Report) सामने आ रही है, वहीं कई लोगों को लगता है कि यौन शिक्षा वर्तमान समय में एक गंभीर चर्चा का विषय है, जिसे पाठ्यक्रम में आवश्यक बनाने के लिए ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि किशोरों और किशोरियों के समक्ष यौन शिक्षा एक अत्यधिक विवादास्पद विषय है। 2007 में केंद्र सरकार द्वारा जब एनएसीओ (NACO), एनसीईआरटी (NCERT) और यूएन एजेंसियों (UN Agencies) के साथ मिलकर स्कूलों में किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की गई थी, उस समय लगभग 13 राज्यों द्वारा इस विषय पर तत्काल प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया क्योंकि उनके विचारों से यौन शिक्षा भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। हालांकि वर्तमान में भी इस विचार पर कोई ख़ास बदलाव नहीं देखा गया है। अभी भी भारत भर में कम से कम पांच राज्यों में किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम पर प्रतिबंध है।
हम सब जानते ही हैं कि भारत में लिंगानुपात लड़कियों की तुलना में लड़कों के प्रति ज्यादा है। इसे कई कारकों द्वारा प्रचारित किया जा सकता है जिसमें माताओं द्वारा कम कैलोरी (Calories) का सेवन, कन्या भ्रूण हत्या और लड़कों के लिए सांस्कृतिक प्राथमिकता शामिल हैं। यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, भारत में आज भी लगभग 24 करोड़ विवाहित महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गयी थी, भले ही महिलाओं की शादी के समय की औसत आयु 20.6 तक बढ़ गयी है। इसके साथ ही शादी के कुछ समय बाद ही लड़कियों को जल्द से जल्द गर्भधारण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक 36% बच्चे (13-16 वर्ष की आयु वाले) और 64% किशोर (17-19 आयु वर्ग के) गर्भवती या पहले से ही माता हैं।
वहीं इसके विपरीत भारत में शादी के बंधन में बंधने से पहले गर्भधारण करने वाली महिलाओं को समाज द्वारा अपनाया नहीं जाता है और गर्भपात की चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण, वे महिलाएं असुरक्षित गर्भपात करने का प्रयास करती हैं या बच्चे को छोड़ देती हैं और अधिकांश महिलाएं समाज के डर से आत्महत्या भी कर लेती हैं। दूसरी ओर भारत में 40 लाख से अधिक लोगों के एचआईवी (HIV) संक्रमित होने का अनुमान है, जो विश्व के किसी भी देश में सबसे अधिक है। जिसमें लगभग आधे से थोड़ा अधिक पुरुष हैं, और बाकी महिलाएं हैं।
भारत में यौन शिक्षा की तीन श्रेणियां हैं, जो निम्नलिखित हैं:
(1) स्कूल में किशोरों पर आधारित यौन शिक्षा पाठ्यक्रम :- भारत में लगभग 19 करोड़ किशोर हैं, जिसमें 30% से अधिक अनपढ़ हैं। वहीं पुरुषों और महिलाओं दोनों को, लैंगिकता के बारे में बताया नहीं जाता है, जो अक्सर शिक्षा की कमी (लेकिन विशेष रूप से यौन शिक्षा की कमी) और लैंगिकता के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण के कारण होता है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि किशोरों को किताबों और फिल्मों (Films) सहित मीडिया (Media) से लैंगिकता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, लेकिन ये माध्यम उन्हें प्रजनन प्रक्रिया के बारे में सटीक जानकारी नहीं देते हैं। क्योंकि मीडिया में किशोरों को स्वस्थ भावनात्मक विकास या ज़िम्मेदार वयस्कता के बारे में नहीं सिखाया जाता है, जो उन्हें पाठ्यक्रम की शिक्षा के माध्यम से सिखाया जा सकता है।
(2) वयस्कों के लिए परिवार नियोजन :- भारत में परिवार नियोजन का एक विविध इतिहास रहा है। हालांकि 1970 के दशक में भारत की आपातकालीन अवधि के दौरान, सरकार ने जनसंख्या-नियंत्रण नीति को लागू किया था, जिसमें निम्न-जाति के व्यक्तियों को लक्षित किया गया था। इस कार्यक्रम को अंततः प्रक्रियाओं से जुड़ी स्वच्छता की कमी और उपयोग की जाने वाली बलपूर्वक तकनीकों के कारण बंद कर दिया गया था। वहीं भारत के परिवार नियोजन कार्यक्रमों की प्रभावकारिता उसकी रूपावाली पर निर्भर करती है, जैसे मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) महिलाओं को गर्भधारण करने और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और परिवार नियोजन के लिए नसबंदी को भी प्रोत्साहित करती हैं।
(3) एचआईवी / एड्स रोकथाम की शिक्षा :- भारत में एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS) को एक स्वास्थ्य संकट के रूप में माना जाता है, इसलिए रोकथाम तकनीक को सरकार द्वारा प्राथमिकता के रूप में निर्धारित किया गया है जो एनजीओ (NGO) को प्रशिक्षण, सहायता और केंद्रित कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रेरित कर रही है। भारत में एचआईवी/एड्स की रोकथाम की शिक्षा शैक्षिक सामग्री जैसे समाचार पत्रों और पुस्तिका के साथ-साथ शिक्षित पेशेवरों के साथ बातचीत पर केंद्रित है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/323w7ER
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Sex_education_in_India
3. https://everylifecounts.ndtv.com/india-needs-sex-education-17422
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