हमारे आसपास के सभी जन्तुओं में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाली और समूह में रहकर जीवन-यापन करने वाली चींटियों की प्रकृति में उपस्थिति और पर्यावरण के प्रति किए जाने वाले कार्य पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चींटियाँ जैविक अपशिष्ट, कीड़े या अन्य मृत जानवरों का सेवन करके अपघटन का काम करती हैं, इस तरह वे पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करती हैं। चींटियों द्वारा पृथ्वी के लगभग हर भू-भाग पर उपनिवेश किया हुआ है। केवल अंटार्कटिका (Antarctica) और कुछ दूरदराज़ या दुर्गम द्वीप में चींटियाँ नहीं पाई जाती हैं। चींटियां अधिकांश पारिस्थितिक तंत्रों में पनपती हैं और स्थलीय पशु बायोमास (Biomass) का 15-25% हिस्सा बनती हैं। इतने बड़े वातावरण में सफलतापूर्वक निवास करने के लिए उनकी सामाजिक संगठन और आवासों को संशोधित करने की उनकी क्षमता को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
पारिस्थितिकी तंत्र में चींटियों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका मनुष्यों के लिए भी काफी फायदेमंद होती हैं, जिसमें कीटों की आबादी का दमन और मिट्टी का वातन भी शामिल है। दक्षिणी चीन में सिट्रस (Citrus) की खेती में बुनकर चींटियों का उपयोग जैविक नियंत्रण के सबसे पुराने ज्ञात अनुप्रयोगों में से एक माना जाता है। वहीं बढ़ई चींटियां, जो मृत या रोगग्रस्त लकड़ी में अपने घोंसले बनाती हैं, लकड़ी की अपघटन प्रक्रिया को काफी तेज़ करती हैं। चींटियों के जाने के बाद, दीर्घाओं में कवक और बैक्टीरिया (Bacteria) उत्पन्न होते हैं, जो बड़ी सतहों पर लिग्निन (Lignin) और सेलूलोज़ (Cellulose) को तोड़ते हैं। चींटियों का भोजन दूसरे कीड़े और उनके अंडे होते हैं।
उनके प्राकृतिक आवास में, वे कई अकशेरूकीय और कशेरुकियों के भोजन का स्रोत होती हैं, जिनमें कठफोड़वा और अन्य कीटभक्षी शामिल हैं। भालू द्वारा भी बढ़ई चींटियों के लार्वा (Larvae) और प्यूपे (Pupae) खाया जाता है। केवल इतना ही नहीं दीर्घाओं और सुरंगों को खोदकर चींटियाँ मिट्टी को चीरने में मदद करती हैं। वे कंकड़ और कणों को शीर्ष पर लाकर मिट्टी को जोतती हैं। ये बीज में पाए जाने वाले पौष्टिक इलायोसोम (Elaiosome) को खाने के लिए अपनी सुरंग में ले जाते हैं, जिससे आमतौर पर नए पौधे भी उगते हैं।
वहीं सबसे रोचक तथ्य तो यह है कि अनुमानित रूप में यदि हम धरती पर मौजूद सभी चींटियों का वज़न लेंगे तो वह धरती में मौजूद सभी इंसानों के बराबर होगा। इस बात का दावा मूल रूप से हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडवर्ड ओ विल्सन (Professor Edward O Wilson) और जर्मन जीवविज्ञानी बर्ट होल्डोब्लर (Bert Hoelldobler) ने अपनी 1994 की पुस्तक “जर्नी टू द आंट्स” (Journey To The Ants) में किया था। उन्होंने ब्रिटिश एंटोमोलॉजिस्ट (British Entomologist) सी बी विलियम्स (C B Williams) द्वारा पहले के एक अनुमान पर अपना अनुमान लगाया था, जिन्होंने एक बार गणना की थी कि एक निश्चित समय पर पृथ्वी पर जीवित रहने वाले कीटों की संख्या एक मिलियन ट्रिलियन थी।
क्या कभी आपने सोचा है कि भारत में कौन कौन सी चींटियाँ पाई जाती हैं? निम्न कुछ भारत में पाई जाने वाली चींटियों के नाम हैं :-
1) मेरानोप्लस बायकलर (गुएरिन-मेनेविल, 1844) (Meranoplus bicolor (Guérin-Méneville, 1844))
2) ईकोफिला स्मरगडीना (फैब्रीशियस, 1775) (Oecophylla smaragdina (Fabricius, 1775)) - बुनकर चींटी
3) एनोप्लोलेपिस ग्रेसीलिप्स (स्मिथ, 1857) (Anoplolepis gracilipes (Smith, 1857)) -विनाशक चींटी
4) अफेनोगेस्टर बेकारी एमरी, 1887 (Aphaenogaster beccarii Emery,1887)
5) क्रैमाटोगेस्टर रोथनेई माय्र, 1879 (Crematogaster rothneyi Mayr, 1879)
6) कैम्पोनोटस रेडियेटस फ़ोरेल, 1892 (Camponotus radiatus Forel, 1892)
7) कैरबारा डायवर्सा (जेरडन, 1851) (Carebara diversa (Jerdon, 1851))
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Ant
2. https://www.sciencedaily.com/releases/2011/01/110131133227.htm
3. https://m.espacepourlavie.ca/en/ecological-importance-ants
4. https://harvardforest.fas.harvard.edu/ants/ecological-importance
5. https://www.bbc.com/news/magazine-29281253
6. https://www.antdiversityindia.com/common_indian_ants
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.youtube.com/watch?v=cf3ZHWeeoo0
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