समुद्र में कई सारी गतिविधियाँ होती रहती हैं जिसमें कई बाते निहित हैं जैसे की ज्वार, भाटा आदि। इस लेख के माध्यम से हम समुद्र में होने वाले ज्वार के बारे जानने की कोशिश करेंगे। प्राचीन काल में ज्वार से किस प्रकार से मछली आदि पकड़ने में मददगार साबित होती थी। ज्वार दुनिया की ऐसी घटना है जो की प्रत्येक समय पर सामयिकी अनुसार आती रहती है। यह तब होता है जब रात में तारे उगते है और तारों और चाँद के उगने के साथ ही साथ समुद्र का पानी भी ऊंचा उठता है। ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि चन्द्रमा की गुरुत्वीय बल समुद्र के जल को अपनी ओर आकर्षित करता है और इसी कारण समुद्र में जल स्तर बढ़ता हुआ दिखाई देता है। जब समुद्र की लहरें एक उच्चतम शिखा पर पहुच जाती हैं तो उन्हें उच्च ज्वार की संज्ञान दि जाती है और जब यह निम्न स्तर पर पहुचता है तो इन्हें निम्नज्वार के नाम से जाना जाता है। उच्च ज्वार और भाटा के मध्य होने वाली अंतर को ज्वारीय श्रेणी के रूप में गिना जाता है। ज्वार चन्द्रमा और सूर्य तथा पृथ्वी के घूमने के कारण होने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के संयुक्त प्रभावों के कारण होता है। ज्वार के माप में टाइडल टेबल का भी जिक्र किया जाता है। यह वह धारणा है जिसके आधार पर ज्वार की अनुमानित समय और उसके आयाम को सही स्थान पर दिया जाता है। ज्वार में परिवर्तन चन्द्रमा के आकार और प्रकार के ऊपर भी निर्धारित होता है।
प्राचीन काल में सिन्धु सभ्यता में यहाँ के लोगों ने ज्वार का एक बड़े पैमाने पर प्रयोग किया था जिसका प्रमाण हमें लोथल नामक पुरास्थल से होता है। लोथल को दुनिया के प्राचीनतम बंदरगाह के रूप में देखा जाता है और यह बंदरगाह ज्वार पर इस लिए निर्धारित था क्यूंकि यहाँ पर आने के लिए समुद्र के पास से नहरों का निर्माण किया गया था और इन नहरों में ज्वार के समय में ही पानी आता था। कई प्राचीन सभ्यताओं में मछली पकड़ने के लिए भी ज्वार का प्रयोग किया जाता था। ऐसे में समुद्रों के किनारे गड्ढों का निर्माण कर दिया जाता था और ज्वार के साथ मछलियाँ भी उस गड्ढे तक आ जाती थी तथा जब ज्वार की क्षमता ख़त्म होती है तब लोग गड्ढों में फंसी मछलियों को पकड़ लिया करते थे। ज्वार के बारे में सबसे पहले सेल्यूकस ने लगभग 150 इसा पूर्व में सिद्ध किया था की इसका कारण चन्द्रमा है। टॉलमी के भी लेखों में ज्वार के बारे में दिखाई देता है।
बी के डी तेम्पोरम राशन ने ज्वार के स्थिति को चन्द्रमा के घटने बढ़ने के स्तर पर जोड़ने घटाने का कार्य किया था। ज्वार के बारे में मध्यकालीन मुस्लिम खगोलविदों ने बड़े पैमाने पर आधारित की थी जो की 12 वीं शताब्दी से शुरू हुयी थी। अबू माहर का नाम इन खगोलविदों में पहले स्थान पर आता है जिन्होंने चन्द्रमा और सूर्य के स्थिति और ज्वार की स्थिति को बताये थें। अल- बिदृजी ने भी खगोल विज्ञान में ज्वार के विषय में जानकारी प्रस्तुत की।
सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tide
2. https://oceanservice.noaa.gov/facts/tides.html
3. https://sciencing.com/do-ocean-tides-affect-humans-5535690.html
4. https://www.homeruncharters.com/how-do-tides-affect-fishing/
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