क्या सौन्दर्य का राज़ है स्वर्णिम अनुपात?

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
25-01-2020 10:00 AM
क्या सौन्दर्य का राज़ है स्वर्णिम अनुपात?

गणित एक ऐसा विषय है जो कि मानव के कई कार्यों को सुगम और सरल बनाने का कार्य करता है। गणित के ज़रिये ही विभिन्न ग्रहों-उपग्रहों आदि की दूरी और वहां तक आना-जाना संभव हो पाया। लेकिन अगर हम कहें कि मनुष्यों के चहरे और इमारतों तथा विभिन्न धर्मों के वास्तु में भी गणित का एक अहम् योगदान है तो शायद ही कुछ लोग इस बात पर भरोसा कर पायेंगे। गणित में एक गोल्डन रेशियो (Golden Ratio) अर्थात स्वर्णिम अनुपात होता है। दो राशियाँ सुनहरे या स्वर्णिम अनुपात में तब होती हैं जब ‘उन दोनों का अनुपात’ तथा ‘उनके योग का उनमें से बड़ी संख्या के साथ अनुपात’ बराबर हो। इसे एक चिह्न ‘फाई’ (Phi - φ) से चिह्नित किया जा सकता है तथा इसका मान लगभग 1.618033988749894848 के बराबर होता है। निम्नलिखित सूत्रों आदि के सहारे इस स्वर्णिम अनुपात को समझा जा सकता है-

उपरोक्त प्रस्तुत सूत्र ज्यामितीय संबंधों को दर्शाता है जो कि स्वर्णिम अनुपात का पूरक है। इस स्वर्णिम अनुपात को स्वर्णिम खंड, दिव्य खंड, स्वर्णिम कट (Cut), स्वर्ण संख्या आदि भी कहा जाता है। यूक्लिड (Euclid) के समय से गणितज्ञों ने सुनहरे अनुपात के गुणों का अध्ययन किया है। स्वर्णिम अनुपात का प्रयोग वित्तीय बाज़ार, पत्तियों पौधों आदि के आकार प्रकार के अध्ययन में किया जाता है। कई 20वीं शताब्दी के कलाकारों और वास्तुकारों ने स्वर्णिम अनुपात को मानकर अपने कार्यों में इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर किया था जिनमें ले कोर्बुज़ियर (Le Corbusier) और सल्वाडोर डाली (Salvador Dali) आदि आते हैं। 2004 की ग्रेट मस्जिद ऑफ़ केरुआं (Great Mosque of Kairouan) में किये गए पहले शोध में यह पता चलता है कि इसका ज्यामितीय विश्लेषण स्वर्णिम अनुपात को लेकर चलता है। इस मस्जिद की मीनारों, गुम्बद आदि के मध्य में स्वर्णिम अनुपात का पाया जाना एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण खोज थी।

ज्यामिति आकृति, आकार, रेखाओं आदि को जोड़ने वाला विज्ञान है। यह एक ऐसा विज्ञान है जो कि तमाम वस्तुओं में एक आकार का परस्पर सम्बन्ध बनाता है। ब्रह्माण्ड में उपस्थित तमाम वस्तुएं स्वर्णिम अनुपात के अनुसार ही सुचारू रूप से चालित हैं। उदाहरण के लिए देखा जा सकता है कि जिस समय काल में पृथ्वी पर डाइनासोर (Dinosaur) का आगमन हुआ था उस काल में पृथ्वी पर पेड़ पौधों का भी अनुपात उसी अनुसार से था।

इस्लामी वास्तुकला में इस बिंदु को आसानी से देखा जा सकता है जहाँ गुम्बद का आकार प्रकार और उसमें बने पवित्र स्थल केंद्र तथा मीनारों आदि के मध्य में स्वर्णिम ज्यामितीय अनुपात का प्रयोग देखा जाता है। विभिन्न मनुष्यों के चेहरे में भी स्वर्णिम अनुपात का प्रयोग किया जा सकता है तथा सौंदर्य को इससे इंगित किया जा सकता है।

संदर्भ:
1.
https://mail.google.com/mail/u/1/#inbox/FMfcgxwGCtJwNWxzrVNsHKtgWKmVzgjz
2. https://aboutislam.net/muslim-issues/science-muslim-issues/sacred-geometry-islamic-architecture/
3. https://mjaf.journals.ekb.eg/article_25810_a1a7e4f624212f48dcb266180b78cb3e.pdf
4. https://www.goldennumber.net/beauty/