वर्तमान काल में पूरी दुनिया भर में सड़कों आदि का निर्माण किया जा रहा है जो कि एक विकासशील देश या विकसित देश की एक बड़ी ज़रूरत है। भारत एक विकासशील देश है जहाँ बड़े पैमाने पर आज सड़कों आदि का निर्माण किया जा रहा है जो कि एक शोध का विषय है। भारत में सड़कें तो बन रही हैं लेकिन इनके निर्माण में कई खामियां हैं और गुणवत्ता की कमी है जिसके कारण यहाँ पर अधिकतर सड़कों की हालत खस्ता है। कई स्थानों पर ऐसा हो जाता है कि नयी बनी सड़कें भी गड्ढों से परिपूर्ण हो जाती हैं। कई ऐसे मार्ग हैं जिनमें सड़कों पर गड्ढे इतने अधिक हैं कि वे नए खतरों को जन्म दे रहे हैं। ऐसे में यह एक गंभीर प्रश्न है कि आखिर भारत में सड़कें अपने मानकों पर सटीक क्यों नहीं हैं और इनमें गुणवत्ता का अभाव क्यों रहता है?
भारत के शुरूआती दिनों में अर्थात आज़ादी के बाद से सड़कों के आधुनिकीकरण पर ध्यान कम था परन्तु सन 1995 के बाद इनके निर्माण के बुनियादी ढांचे में बदलाव देखा गया। भारत समय के साथ एक अत्यंत ही विशाल रोड निर्माता बन गया, लेकिन इसकी गुणवत्ता ने इसे हमेशा से परेशानी में डाला है। सड़क परिवहन का निर्माण करना अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है लेकिन इनका गुणवत्ता विहीन होना एक मज़ाक ही प्रतीत होता है। भारत दुनिया में आज दूसरा सबसे बड़ा सड़क तंत्र है परन्तु आज भी गुणवत्ता ना होने के कारण ये सड़कें उस प्रकार की सुरक्षा नहीं प्रदान कर पाती जिस प्रकार की सुरक्षा एक सड़क तंत्र से चाहिए रहती है। गर्मियों में कई स्थानों से ये भी खबर आती है कि सड़कें पिघल रही हैं जिसका सीधा मतलब है कि सड़क के निर्माण में गिट्टी का नाम मात्र का प्रयोग किया गया है और उसकी गुणवत्ता में भी कमी है।
यहाँ की सड़कों को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख कारणों में से एक है ओवरलोडिंग (Overloading)। ओवरलोडिंग की समस्या सीधे जनसंख्या से जुड़ी हुयी होती है। जिस प्रकार से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उसी प्रकार से गाड़ियों आदि की संख्या भी बढ़ रही है। ऐसे में सड़क पर ज़्यादा दबाव आदि के पड़ने के कारण भी सड़कें खराब हो रही हैं। अब जब जनसँख्या का आंकड़ा और गाड़ियों की संख्या जिस प्रकार से बढ़ रही है, सड़क के मानकों को भी उसी प्रकार से बनाने की आवश्यकता है। वैश्विक स्तर पर सड़क निर्माण की तकनीकें आदि समय के साथ आगे बढ़ रही हैं अतः भारतीय जलवायु, मृदा परिक्षण, वर्षा आदि के मद्देनज़र सड़क बनाना एक बेहतर विकल्प है। भारत के अधिकतर महामार्ग आज भी संकरे हैं जो कि गति को धीमा तो करते ही हैं पर साथ में ये खतरनाक भी सिद्ध होते हैं।
वीआईपी (VIP) प्रवृत्ति जो कि भारत में मौजूद है, यह भी सड़कों पर दबाव बढ़ाने का कार्य करती है जिसमें सड़कों पर कई स्थानों पर दबाव बढ़ जाता है। इस वाकिये को समझने के लिए बिल क्लिंटन की आगरा यात्रा पढ़ना आवश्यक है। सड़कों का निर्माण जिस प्रकार से हो रहा है और पुरानी सड़क को यथास्थिति छोड़ उसके ऊपर नयी सड़कें बनाने से पारिस्थितिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। अब जैसे-जैसे सड़कों का स्तर बढ़ता है वैसे-वैसे उसके आस पास के आवासीय क्षेत्र नीचे होते जा रहे हैं। सड़कों और आवासीय इलाकों को एक समतल करने के लिए मिट्टी का भराव करना पड़ता है जो कि पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा है, कारण कि वास्तविक प्राकृतिक मिट्टी नयी मिट्टी के अन्दर दब जाएगी।
संदर्भ:
1. https://www.thebetterindia.com/152644/pothole-free-roads-safety-india/
2. https://bit.ly/34ikUzz
3. https://aceupdate.com/2015/08/19/roads-in-india-a-quality-check/
4. http://tsunamionroads.org/Download/Chapter/10.pdf
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