आधुनिक युग में प्लास्टिक (Plastic) विश्व का सबसे चिंताजनक विषय बन गया है क्योंकि वर्तमान में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसके निर्माण या पैकिंग (Packing) में प्लास्टिक का उपयोग न किया जाता हो। प्लास्टिक जहां हमारे वातावरण को प्रदूषित कर रहा है वहीं कई जीवों के लिए मौत का कारण भी बन रहा है। प्लास्टिक मनुष्य द्वारा बनाया गया तथा आज मनुष्य ही इस पर अत्यधिक निर्भर है। प्लास्टिक की खाली बोतलें, वस्तुओं के रैपर (Wrapper) आदि प्लास्टिक का सामान जो सदियों पूर्व पर्वतों या समुद्रों के किनारे फेंका गया था, आज भी वहां देखने को मिल जाएगा क्योंकि इन्हें विघटित करने का कोई अन्य उपाय ही नहीं है। इस कचरे ने जहां पर्यावरण को प्रदूषित किया, वहीं जीवों के लिए भी घातक बना।
प्लास्टिक का व्यापक रूप से उत्पादन वास्तव में 1950 के आसपास से होने लगा था। लगभग 6.9 बिलियन टन से भी ज्यादा प्लास्टिक कचरे के रूप में उभरा। इसमें से 6.3 बिलियन टन कचरा ऐसा था जिसका कभी पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता था। इस कचरे की बहुत ही अधिक मात्रा महासागरों में पायी जा सकती है। समुद्र के प्लास्टिक से हर साल लाखों समुद्री जानवरों की मौत होती है। लुप्तप्राय जीवों सहित लगभग 700 प्रजातियां ऐसी हैं जो इस कचरे से प्रभावित हैं। प्लास्टिक का निर्माण सबसे पहले जीवाश्म ईंधन से किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इनका व्यापक रूप से उपयोग किया गया था। प्लास्टिक के उचित निस्तारण के लिए चाहे कितने ही प्रयास किए गये हों किंतु कभी इससे छुटकारा नहीं पाया जा सका है।
प्लास्टिक के कचरे का पुनर्चक्रण करने के लिए कई नवाचार तकनीकों को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। अमेरिकी प्रति वर्ष 6.3 बिलियन पाउंड प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करते हैं। हालांकि यह एक प्रभावशाली संख्या है, फिर भी अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। वर्तमान में ऐसी नवाचार तकनीकों को विकसित किया गया है जो प्लास्टिक पुनर्चक्रण को बढ़ावा दे सकती हैं:
• ‘क्लार्क’ (Clarke) कृत्रिम बुद्धिमत्ता से युक्त एक रिसाइकिलिंग रोबोट (Recycling robot) है जो सुपर-ह्यूमन स्पीड (Super-human speed) पर सामग्रियों की पहचान करके उनको अलग कर सकता है। क्लार्क पैकेजिंग विवरण का भी पता लगाने में सक्षम है।
• पॉलीइथाइलीन (Polyethylene) और पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene) हमारे प्लास्टिक का दो-तिहाई हिस्सा हैं, और पुनर्चक्रण के दौरान इन्हें अलग किया जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पॉलीइथाइलीन और पॉलीप्रोपाइलीन में विशेष बहुलक जोड़ने से एक नया प्लास्टिक बन सकता है जिसका पुनर्चक्रण करना बहुत आसान है।
• पुनर्चक्रण के दौरान प्रायः प्लास्टिक को पुनर्चक्रित करने और ठंडा करने के लिए पानी का उपयोग किया जाता है किंतु कुछ ऐसी तकनीकों को विकसित किया गया है जो पानी के बिना पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक को साफ और ठंडा कर सकती हैं। ये प्रौद्योगिकियां ऊर्जा की खपत को कम करने में भी मदद कर सकती हैं। पानी और ऊर्जा के उपयोग में कमी से पर्यावरणीय लाभ और कम पुनर्चक्रण लागत उत्पन्न होगी।
• पुनर्चक्रण करने वाले लोग आमतौर पर कई अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक एकत्र करते हैं। हाथ की छँटाई धीमी और महंगी हो सकती है, इसलिए अधिक से अधिक प्लास्टिक को एकत्रित करने के लिए इन्फ्रारेड (Infrared) लेज़र विकसित किया गया है।
• प्लास्टिक पर जो लेबल (Label) लगा होता है, यदि उसके साथ प्लास्टिक का पुनर्चक्रण किया जाए तो यह पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक की गुणवत्ता को खराब कर सकता है। लेकिन एक उन्नत प्रणाली के द्वारा बोतलों से अधिकांश लेबल को आसानी से हटाया जा सकता है। जिससे प्लास्टिक को कोई नुकसान नहीं पहुंचता तथा अपशिष्ट को कम किया जा सकता है।
• एक नई तकनीक के अंतर्गत पॉलीप्रोपाइलीन प्लास्टिक से रंग, गंध और अन्य संदूषकों को हटाया जा सकता है जो प्रदूषण कम करने में मदद करेगी।
इनके अतिरिक्त अन्य नवाचार भी प्लास्टिक के पुनर्चक्रण को अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकते हैं, प्राकृतिक संसाधनों को बचा सकते हैं और अधिक उपयोग किए गए प्लास्टिक को नए उपयोगी उत्पाद में निर्मित कर सकते हैं।
प्लास्टिक के कचरे का पुनर्चक्रण ठीक से करने के लिए अब स्टार्टअप्स (Startups) को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसी कई तकनीकें हैं जो स्टार्टअप्स द्वारा विकसित की गयी हैं जो पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास करती हैं। 2016 में भी शिखा शाह द्वारा 'स्क्रेपशाला’ नामक स्टार्टअप शुरू किया गया जहां प्लास्टिक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण के प्रबंधन का काम किया गया। एक साल के भीतर, कंपनी ने सफलतापूर्वक 20,000 से भी अधिक प्लास्टिक की बोतलों और लगभग 10,000 किलोग्राम कचरे का पुनर्नवीनीकरण किया। इसके अतिरिक्त स्क्रेप (SKRAP), साहस ज़ीरो वेस्ट (SAAHAS ZERO WASTE), नमो ई-वेस्ट (NAMO E-WASTE), एंटहिल क्रिएशन (ANTHILL CREATIONS), जेम एनवायरो मैनेजमेंट (GEM ENVIRO MANAGEMENT) आदि ऐसे स्टार्टअप्स हैं जो इस दिशा में अग्रसर हैं।
भारत के लिए एकल उपयोग प्लास्टिक एक गम्भीर समस्या बना हुआ है। ये वो प्लास्टिक है जिन्हें एक बार उपयोग कर देने पर पुनः प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसके निवारण के रूप में एकल उपयोग प्लास्टिक ग्रैंड चैलेंज (Single use plastic Grand Challenge) अभियान चलाया गया है जिसका लक्ष्य आविष्कारकर्ताओं और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना है ताकि वे ऐसी तकनीक डिज़ाईन (Design) कर सकें जो एकल उपयोग प्लास्टिक को फिर से उपयोग करने लायक बनाये। ऐसे कई तरीके हैं जिन्हें आप अपने घर पर अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं:
• हर साल प्रत्येक व्यक्ति हर चार महीनों में अपना प्लास्टिक से बना दंत मंजन पर्यावरण में फेंक देंता है। ज़रा सोचिए कि इस प्रकार यह कभी खत्म न होने वाला प्लास्टिक कितना अधिक प्रदूषण फैलाता होगा। इसलिए आप इसके विकल्प के रूप में बांस के तने से बने दंत मंजन का उपयोग कर सकते हैं।
• किचन के कचरे को आप बाहर न फेंककर इससे अपने बीगीचे के लिए पोषित खाद का निर्माण कर सकते हैं।
• घर की सफाई के लिए रासायनिक उत्पादों का उपयोग न करके प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करना अच्छा विकल्प है।
• प्लास्टिक से बने थैलों का पर्यावरण प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान होता है अतः इसकी जगह कपड़े से बने थैलों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
• बच्चों के आम डायपर (Diaper) की अपेक्षा क्लॉथ डायपर (Cloth diapers) अधिक सुरक्षित होते हैं अतः इनका उपयोग करना चाहिए।
इनके अतिरिक्त कई अन्य ऐसी वस्तुएं हैं जिनका उपयोग कर आप पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://on.natgeo.com/34d7CoW
2. https://bit.ly/2O7JBdd
3. https://bit.ly/37uf0hu
4. https://bit.ly/2QC0AGe
5. https://bit.ly/2D8aUh4
6. https://bit.ly/37sWKVT
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