रेलवे का निर्माण शायद मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार है। इसने पूरी दुनिया में यात्रा, व्यापार आदि को अत्यंत सरल सुगम और सहज बना दिया। शुरुवाती दौर में रेलवे मुख्य रूप से माल ले जाने और लाने का कार्य करती थी परन्तु कालान्तर में इसके कार्य में कई बदलाव आये। हम यह भी जानते हैं कि विश्वयुद्ध के दौरान भी रेल का अहम् योगदान रहा था। इसके सहारे पूरी फौजों को निश्चित स्थानों पर भेजा जाना संभव हो पाया था। कई ट्रेनों पर विशालकाय तोपों को भी लगाया गया था जो कि दुश्मन के ऊपर अंगार बरसाने का कार्य करते थे।
भारत में ट्रेन अंग्रेज़ों द्वारा लायी गयी थी जिसका मुख्य कारण था भारत के विभिन्न स्थानों से माल को बंदरगाहों तक पहुंचाना। भारत में रेल के आ जाने के बाद से पूरे भारत भर में इसका प्रचार प्रसार होने लगा। कई राजाओं या राजघरानों की अपनी खुद की ही ट्रेन भी होने लगी। इसका प्रमाण आज भी हम रामपुर में देख सकते हैं। आज भी पुराने रामपुर रेलवे स्टेशन पर एक शाही ट्रेन खड़ी है जो कि कभी रामपुर के नवाबों द्वारा प्रयोग में लायी जाती थी। उन खड़ी ट्रेनों में उस समय के ठाठ बाट आज भी देखे जा सकते हैं। ग्वालियर और अन्य कई घरानों में भी ये ट्रेने पायी जाती थीं। उस समय ट्रेनें मुख्य रूप से मीटर गेज (Metre Gauge) पटरियों पर दौड़ती थीं जो कि आज की ब्रॉड गेज (Broad Gauge) से पतली होती थीं। रामपुर में पुराने स्टेशन पर मीटर गेज की ट्रेन को देखा जा सकता है।
मीटर गेज की ट्रेनें अब आज कल बहुत ही कम स्थानों पर चलती हैं जिनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आसाम आदि हैं। उत्तरप्रदेश की मीटर गेज की एक ट्रेन काफी लम्बी दूरी की ट्रेन है जो कि करीब 171 किलोमीटर की दूरी तय करती है तथा यह रामपुर से ज़्यादा दूर नहीं है। यह उत्तर प्रदेश की आखिरी बची हुई मीटर गेज ट्रेन है। यह ट्रेन नानपुर-मैलानी के रास्ते पर चलती है। यह ट्रेन महत्वपूर्ण भी इसलिए है क्यूंकि यह दो प्रमुख वन अभ्यारण्यों के मध्य दौड़ती है: दुधवा और कतरनियाघाट अभयारण्य। इस ट्रेन की पटरियां करीब 127 वर्ष पहले बनायी गयी थीं जिनका मुख्य उपयोग दुधवा जंगल से लकड़ियाँ ले जाने का था। वर्तमान में यह ट्रेन आज भी चलती है जो कि जंगल में करीब 20-30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ती है। हाल ही में सरकार ने भारत भर में चालित 5 मीटर गेज लाइनों को बंद कर वहां पर ब्रॉड गेज की स्थापना करने का विचार बनाया था जिसे फिर से बदल दिया गया और इन मीटर गेज ट्रेनों को धरोहर की संज्ञा दे दी गयी। ये ट्रेने पर्यटकों को अपनी ओर खींचने का पूरा दमखम रखती हैं। यूं तो इन ट्रेनों के रखरखाव में खर्च के बढ़ने के आसार हैं परन्तु ये ट्रेने पर्यटकों को लुभाने और अधिक संख्या में पर्यटकों को लाने की अच्छी सौगात साबित हो सकती हैं।
दिए गए इस विचार से विभिन्न जंगल-जीव समर्थकों ने इसपर सवाल उठाया कि इससे जीवों के आम जीवन पर असर पड़ेगा। यह बिंदु भी सोचनीय है तथा कोई भी कदम उठाने से पहले गहराई से सोच विचार करने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2M7Nkqk
2. https://www.youtube.com/watch?v=QXwsPTGHQoI
3. https://bit.ly/2B5xDtm
4. http://www.dudhwatigerreserve.com/entry.html
5. https://bit.ly/2IIPpXt
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=3zX8MaK6fn0
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