चेतना एक ऐसी धारणा है जो कि मानव शरीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी भी धारणा है जो कि समय-समय पर फिसल जाती है या इसका लोप हो जाता है। उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं कि जब भी हम सोते हैं, तो इसका लोप हो जाता है। यदि व्यक्ति दवाई का भी सेवन करता है तो भी इस पर प्रभाव पड़ता है तथा दुर्घटना के कारण भी इसका कार्य करना पूर्ण रूप से बंद हो जाता है। मद्यपान के कारण भी इसका लोप होना देखा गया है। विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग मत दिए हैं कि हमारा दिमाग चेतना कैसे पैदा करता है और यह किस प्रकार से कार्य करती है परन्तु कुछ ठोस विवरण अभी तक प्राप्त नहीं है। तो आइये जानने की कोशिश करते हैं कि चेतना क्या होती है और यह हमारे मस्तिष्क में किस प्रकार से कार्य करती है।
विभिन्न वैज्ञानिक लम्बे समय से चेतना को समझने के लिए विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं। चेतना या चेतन व्यक्ति की ऐसी धारण है जो कि मस्तिष्क से संचालित होती है तथा यह व्यक्ति के क्रिया कलापों को संचालित करती है। वैसे चेतना और मस्तिष्क के अन्दर अजीब प्रकार का बेमेल होता है जैसे कि न्यूरोसाइंटिस्टों (Neuroscientists) का कहना है कि मस्तिष्क की कोशिकाएं व्यक्ति के बेहोशी के हाल में भी वैसी ही कार्य करती हैं जैसी कि वे व्यक्ति की जागृत अवस्था में करती हैं, परन्तु चेतना में आसानी से फर्क को दर्ज किया जा सकता है।
कई वैज्ञानिकों, जैसे कि फ्रांसिस क्रिक, क्रिस्टोफ कोच और टोनोनी ने माना है कि चेतना वास्तव में एक मौलिक गुण है जो कि समय के अनुसार कार्य करता है। जब हम मस्तिष्क की बात करते हैं तो यह पता चलता है कि मस्तिष्क चेतना का उत्पादन नहीं करता बल्कि यह एक प्रकार के रिसीवर (Receiver) की तरह कार्य करता है जो कि हालात के आधार पर चेतना को जागृत करता है। अब जब यह माना जाए कि मस्तिष्क चेतना को जागृत करता है तो यह समझने में काफी आसानी हो जाती है कि जब मनुष्य का मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है तब वह चेतना को जागृत करने में असक्षम हो जाता है और यही कारण है कि क्षति के दौरान चेतना सही कार्य नहीं करती है। यह विचार अमान्य नहीं हो सकता है कि चेतना एक ट्रांसमिटर (Transmitter) और मस्तिष्क एक रिसीवर की तरह कार्य करता है। मानव के अन्दर साझा चेतना का भी वास होता है जो कि दूसरे किसी के पीड़ा के दौरान जागृत होता है और यही कारण है कि सहानुभूति की परंपरा का जन्म होता है।
चेतना को समझना दर्शनशास्त्र का एक विषय है जो कि मानव के दिमाग के आधार पर इन विषयों की बात करता है। हांलाकि चेतना को समझना एक अत्यंत ही कठिन पहेली है तथा जैसा कि यह सिर्फ मानव मस्तिष्क के द्वारा ग्रहण की जाती है, तो इसको मानचित्रित करना भी एक कठिन कार्य है। इसको बाह्य रूप से ही समझना ज़्यादा बेहतर है जहाँ से इसकी कार्यशैली पर प्रकाश पड़ता है। भारतीय परंपरा में स्वतंत्र अद्वैत सिद्धांत के रूप में शुद्ध चेतना की पहचान की जा सकती है। इसके अलावा उपनिषदों में भी चेतना के विषय में कई कथन हैं। माना जाता है कि चेतना सार्वभौम अर्थात ब्रह्म है। आत्मा और ब्रह्म का पहचान करना ही सबसे बड़ी क्रिया है। यह सांसारिक दुनिया से मुक्ति और पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता है जो कि चेतना से ही जुड़ा विषय है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2o7tm5u
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Philosophy_of_mind
3. https://muse.jhu.edu/article/454130
4. https://bit.ly/2ksMw4k
5. https://www.leromero.com/2014/11/10/knowledge-vs-consciousness/
6. https://bit.ly/2myWjXu
7. https://bit.ly/2acLzUh
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.