अपने जीवन में हमने कई बार यह महसूस किया होगा कि हमारा शरीर एकदम से किसी बाह्य पदार्थ द्वारा संक्रमित नहीं होता और यदि हो भी जाये तो कुछ समय या दिनों बाद स्वतः ही ठीक हो जाता है। दरसल इसका कारण हमारे शरीर में मौजूद सफ़ेद रक्त कोशिकाएं- डब्ल्यू.बी.सी. (White Blood Cell) हैं। इन कोशिकाओं को ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) भी कहा जाता है, जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र का प्रमुख घटक हैं। प्रतिरक्षा तंत्र का प्रमुख घटक होने के कारण हमारे शरीर में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। डब्ल्यू.बी.सी. हमारे रक्त में विषाणु, जीवाणु, कवक आदि को ढूंढ कर उन्हें नष्ट कर देती हैं और हमारे शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
ये कोशिकाएं अलग-अलग प्रकार की होती हैं जिनका अपना विशिष्ट कार्य होता है। कुछ कोशिकाएं सीधे विषाणु को नष्ट करती हैं तो कुछ पहले संक्रमित कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं। इनमें से कुछ कोशिकाएं एलर्जी (Allergy) प्रतिक्रियाओं में भी अपनी भूमिका निभाती हैं। इन रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नहीं पाया जाता है, जिस कारण इनका रंग सफेद या रंगहीन होता है। विभिन्न प्रकार की इन कोशिकाओं का उत्पादन अस्थि मज्जा में मौजूद हेमाटोपोइटिक स्टेम कोशिका (hematopoietic stem cell) से होता है। केन्द्रक युक्त डब्ल्यू.बी.सी., लाल रक्त कोशिकाओं की तुलना में बड़ी किंतु संख्या में कम होती हैं तथा इनका आकार भी अनियमित होता है। शरीर को हानिकारक बाह्य पदार्थों से बचाने के लिये डब्ल्यू.बी.सी. रक्त प्रोटीन (Protein) जिसे एंटीबॉडी (Antibody) कहा जाता है, का निर्माण और स्रावण करती हैं।इन कोशिकाओं के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:
• न्यूट्रोफिल (Neutrophils): डब्ल्यू.बी.सी. न्यूट्रोफिल जीवाणु और कवकों को नष्ट करने का कार्य करती हैं।
• इसीनोफिल (Eosinophils) : इसीनोफिल परजीवियों और कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
• बेसोफिल (Basophils) : बेसोफिल शरीर के रक्त प्रवाह में रसायनों को स्रावित कर संक्रमण के प्रति सतर्क रहती हैं और साथ ही एलर्जी से भी लड़ने में मदद करती है।
• लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)- लिम्फोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं: बी-लिम्फोसाइट्स और टी-लिम्फोसाइट्स। ये दोनों लिम्फोसाइट्स एंटीबॉडी बनाने का कार्य करते हैं तथा आंतों के कीड़े जैसे- बड़े परजीवी, जीवाणु, विषाणु आदि से शरीर की रक्षा करते हैं। बी-कोशिकाएं विषाणु की पहचान करती हैं और उनके खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण करती हैं जबकि टी-कोशिकाएं विषाणु और कैंसर से संक्रमित कोशिकाओं से लड़ती हैं।
• मोनोसाइट्स (Monocytes) : मोनोसाइट्स शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं या जीवाणुओं पर हमला करने और इन्हें नष्ट करने के लिए उत्तरदायी हैं।
आप यह जानकर बहुत ही आश्चर्यचकित होंगे कि हम भले ही अपने पुराने दुश्मनों को भूल जायें किंतु ये कोशिकाएं संक्रमण करने वाले पुराने से भी पुराने बाह्य कारकों को नहीं भूलती हैं। दरसल इसके लिये बी-लिम्फोसाइट्स और टी-लिम्फोसाइट्स उत्तरदायी हैं। बी-लिम्फोसाइट्स संक्रमित करने वाले बाह्य कारक को याद रखते हैं तथा इनके लिये किसी विशिष्ट एंटीबॉडी (Antibody) का निर्माण कर उनको स्रावित करते हैं। जब ये बाह्य कारक शरीर को पुनः संक्रमित करते हैं तो टी-लिम्फोसाइट्स इनकी पहचान करते हैं और वापस उसी विशिष्ट एंटीबॉडी का निर्माण करते हैं, जो उस बाह्य कारक के संक्रमण को नष्ट कर देता है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिये सामान्य सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की संख्या आमतौर पर रक्त के प्रति माइक्रोलीटर के लिए 4,000 से 10,000 के बीच होती है। संक्रमण, कैंसर, सूजन, गर्भावस्था, दमा, एलर्जी आदि के कारण इन कोशिकाओं की संख्या सामान्य स्तर से बहुत अधिक बढ़ जाती है, जिस कारण ल्यूकोसाइटोटिस (Leucocytosis) नमक रोग हो जाता है। इसी प्रकार विषाणु संक्रमण, जन्मजात विकार, कैंसर, खराब पोषण, अधिक शराब का सेवन, गंभीर संक्रमण आदि के कारण रक्त में इन कोशिकाओं का स्तर सामान्य से बहुत कम हो जाता है तथा श्वेताणुल्पता या ल्यूकोपेनिया (Leukopenia) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन कोशिकाओं की संख्या में कमी आने से बुखार, खांसी, पेशाब करते समय पीड़ा या आवृत्ति, मल में खून आना, दस्त, संक्रमण के क्षेत्र में सूजन आ जाना आदि लक्षण प्रदर्शित होते हैं।
सफ़ेद रक्त कोशिकाओं के कम होने का एक कारण स्व-प्रतिरक्षा की बीमारी का उत्पन्न होना भी है। यह वो स्थिति है जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से शरीर के हिस्सों जैसे जोड़ों, त्वचा आदि पर हमला करने लगती है। प्रतिरक्षा प्रणाली ऑटोएंटिबॉडी (Autoantibodies) नामक प्रोटीन को स्रावित करती है जो स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। कुछ स्व-प्रतिरक्षित रोग केवल एक अंग को ही लक्षित करते हैं, जैसे-टाइप 1 मधुमेह केवल अग्न्याशय को ही नुकसान पहुंचाता है। इस बीमारी के कारण रूमेटोइड अर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis), टाइप-1 मधुमेह, थॉयराइड (Thyroid) समस्या, चर्मरोग, सोराइसिस (Psoriasis) जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। इस बीमारी के कारण प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर हो जाता है, जिसके कारण व्यक्ति अनेक बीमारियों की चपेट में आ जाता है। थकान, बालों का झड़ना, पेट दर्द, मुंह में छाले होना, हाथ और पैरों में झुनझुनाहट, रक्त के थक्के जमना, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, अनिद्रा, त्वचा का अत्यधिक संवेदनशील हो जाना आदि इस बीमारी के लक्षण हैं, जिसके लिये आनुवंशिक, आहार, संक्रमण, रसायन आदि कारक उत्तरदायी हो सकते हैं।
इसलिए यह आवश्यक है कि हम शरीर में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं के सामान्य स्तर को बनाए रखें। कुछ पदार्थों के सेवन से हम शरीर में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की कम मात्रा को बढ़ा सकते हैं जो कि निम्न हैं:
विटामिन सी (Vitamin C): यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाने में मदद करता है। विटामिन सी सफ़ेद रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है। संतरा, कीनू, नींबू आदि विटामिन सी का अच्छा स्रोत हैं।
लाल शिमलामिर्च: खट्टे पदार्थों के मुकाबले लाल शिमलामिर्च में दोगुना विटामिन-सी होता है। इसमें उपस्थित बीटा कैरोटीन (Beta carotene) आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है।
ब्रोकली (Broccoli): ब्रोकली में विटामिन और खनिजों की बहुत अधिक मात्रा होती है। इसके साथ ही यह विटामिन ए, सी, ई, एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) और फाइबर (Fiber) का भी अच्छा स्रोत हैं।
लहसुन: किसी भी संक्रमण से लड़ने के लिये इसे उपयोगी माना जाता है और इसमें सल्फर (Sulphur) युक्त यौगिक सफ़ेद रक्त कोशिकाओं को बढ़ाते हैं।
अदरक: यह सूजन, गले में खराश आदि को कम करने में मदद करता है।
दही: दही विटामिन-डी का एक अच्छा स्रोत है जो प्रतिरक्षा तंत्र को विनियमित करने में मदद करता है और हमारे शरीर की बीमारियों के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
इसके अतिरिक्त पपीता, बादाम, हल्दी, ग्रीन टी (Green Tea), सूरजमुखी के बीज आदि भी सफ़ेद रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने और प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने में सहायक हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2pLHqza
2. https://bit.ly/2GBdgY2
3. https://bit.ly/2jeccRp
4. https://bit.ly/2GzjCqI
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.