राग भीमपलासी दिन के रागों में अति मधुर और कर्णप्रिय राग है। यह राग काफी ठाट से आता है और इसके अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अवरोह में रिषभ और धैवत पर जोर दे कर ठहरा नहीं जाता। अवरोह में धैवत को पंचम का तथा रिषभ को षड्ज का कण लगाने से राग की विशेष शोभा आती है। षड्ज-मध्यम तथा पंचम-गंधार स्वरों को मींड के साथ विशेष रूप से लिया जाता है। वैसे ही निषाद लेते समय षड्ज का तथा गंधार लेते समय मध्यम का स्पर्श भी मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में निषाद कोमल को ऊपर की श्रुति में गाया जाता है, जिसके लिये बहुत रियाज कि आवश्यकता होती है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में होता है।
यह गंभीर प्रकृति का राग है। श्रृंगार और भक्ति रस से यह राग परिपूर्ण है। इस राग में ध्रुवपद, ख्याल, तराने आदि गाये जाते हैं। कर्नाटक संगीत में आभेरी नामक राग इस राग के समान है। काफी थाट का ही राग धनाश्री, भीमपलासी के ही सामान है। धनाश्री में वादी पंचम है जबकि भीमपलासी में वादी मध्यम है।
कौशिकी की तकनीक कलाप्रवीणता और वर्षों के गहन प्रशिक्षण का परिणाम है, मुख्य रूप से उनके आदरणीय पिता पंडित अजॉय चक्रवर्ती से। वह पटियाला घराने से आती है, जो एक मजबूत इस्लामिक प्रभाव और अलंकृत अलंकार [तेज़ कामचलाऊ धुन] गाने के लिए जानी जाती है। इस रविवार हम आपके लिए लेकर आये हैं, कौशिकी द्वारा गया गया सांझ (शाम) राग भीमपलासी। इसे इन्होने पटियाला ख्याल शैली में गाया है। इस चलचित्र को दरबारफेस्टिवल (Darbar Festival) नामक यूटयूब चैनल द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
सन्दर्भ:-
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