मध्यकालीन भारत पूर्णतः उपनिवेशों के नियंत्रण में था, जिसमें अरब, चीनी, पुर्तगाली, अंग्रेज, तुर्की, डच, फ्रांसीसी और डेनिश लोगों के उपनिवेश शामिल थे। यूरोपीय उपनिवेशियों ने प्रमुखतः समुद्री मार्ग से भारत में प्रवेश किया। यह मुख्यतः व्यापार के लिए भारत आये थे, तथा इनमें से कुछ ने लगभग दो शतक से भी लंबे समय तक भारत के साथ व्यापार किया। डेनिश (1620–1869) भी इनमें से एक थे, जो मुख्यतः डेनमार्क से संबंधित थे। इन्होंने तमिलनाडु (थारंगमबाड़ी), पश्चिम बंगाल (सेरामपुर) तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अपने उपनिवेश स्थापित किए। इन्होंने भारत में किसी भी प्रकार का सैन्य और व्यापारिक खतरा उत्पन्न नहीं किया। डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 में की गयी थी।
भारत में डेनिश उपनिवेश
1618 - 1620 ई. :
1618 में डच व्यापारी और औपनिवेशिक प्रशासक, मार्सेलियस डी बोशौवर ने उप-महाद्वीप में डेनिश हस्तक्षेप के लिए प्रेरणा प्रदान दी। यह सहयोगी दलों से सभी तरह के व्यापार पर एकाधिकार के वादे के साथ पुर्तगालियों के विरुद्ध सैन्य सहयोग चाहता था। इसकी अपील (Appeal) ने डेनमार्क-नॉर्वे के राजा क्रिस्चियन चतुर्थ को प्रभावित किया जिसने बाद में 1616 ई. में एक चार्टर जारी किया जिसके तहत डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी (Danish East India Company) को डेनमार्क और एशिया के मध्य होने वाले व्यापार पर 12 वर्षों के लिए एकाधिकार प्रदान कर दिया गया। दो डेनिश चार्टर्ड कंपनियां (Chartered Companies) थीं, पहली डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी (1616-1650 तक) और स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी (Swedish East India Company) थी। यह दोनों कंपनियां मिलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से ज्यादा चाय का आयात करती थीं और उसमें से अधिकांश को अत्यधिक लाभ पर अवैध तरीके से ब्रिटेन में बेचती थीं।
डेनिश जहाज़ सर्वप्रथम 2 वर्ष के कठिन सफर के बाद, 1620 में थारंगमबाड़ी, भारत पहुंचे। इसके निकट तंजावुर साम्राज्य के शासक रघुनाथ नायक ने स्वेच्छा से डेनिशों के साथ एक व्यापारिक समझौता किया। जिसमें इन्होंने 3,111 रुपये के वार्षिक भूमिकर पर शहर में नियंत्रण दे दिया तथा उन्हें डेनमार्क में काली मिर्च निर्यात करने की अनुमति दी। भारत में आगमन के बाद इन्होंने डैंसबर्ग के किले को अपना वाणिज्यिक केंद्र बनाया। अपने शीर्ष पर, यह क्रोनबॉर्ग के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डेनिश महल बना।
1621–1639 ई. : इनके उपनिवेशों ने प्रारंभिक दशकों में कुशल प्रशासन के अभाव में कोई विशेष प्रदर्शन नहीं दिखाया। 1625 तक मसूलिपटनम (आंध्र प्रदेश के वर्तमान कृष्णा जिले) में एक कारखाना स्थापित किया गया था, जो इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण भण्डार था। किंतु फिर भी 1627 तक कंपनी की वित्तीय स्थिति में कोई उल्लेखनीय इजाफा नहीं हुआ। इसके साथ ही अंग्रेज और डच व्यापारी इन पर नियंत्रण स्थापित करने का हर संभव प्रयास कर रहे थे।
1640-1648 ई. : डेनिशों ने दूसरी बार (1640) डैनस्बर्ग का किला डच को बेचने का प्रयास किया। डेनिश उपनिवेशों ने मुगल साम्राज्य पर युद्ध की घोषणा (1642) की और बंगाल की खाड़ी में जहाजों पर हमला शुरू किया। कुछ समय के भीतर ही इन्होंने मुगल जहाजों पर कब्जा कर इसे अपने बेड़े में शामिल कर लिया तथा लाभ प्राप्त करने के लिए त्रंकोबार (तमिलनाडु) में माल बेचना प्रारंभ कर दिया। 1648 में क्रिश्चियन चतुर्थ, डेनिश उपनिवेश के संरक्षक का निधन हो गया तथा डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी दिवालिया बन गयी।
1650-1669 ई. : 1650 में क्रिश्चियन चतुर्थ के बेटे फ्रेडरिक द्वितीय ने कंपनी को समाप्त कर दिया। भारत में डच उपनिवेशों की स्थिति बिगड़ने लगी। 1669 में भारत में मौजूद उपनिवेशों का नेतृत्व करने के लिए कैप्टन सिवार्ड एडेलर को एक युद्धपोत के साथ भारत भेजा गया।
1670-1772 ई. : डेनमार्क और त्रंकोबार के बीच व्यापार अब फिर से शुरू हो गया। एक नई डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन किया गया, और कई नयी वाणिज्यिक चौकी स्थापित की गयीं। डेनमार्क-नॉर्वे के राजा फ्रेडरिक IV ने 1706 में भारत के पहले प्रोटेस्टेंट मिशनरी (Protestant Missionary) हेनरिक प्लुचशाऊ और बार्थोलोमियस ज़ीगेनबाल्ग को यहां भेजा। जिन्होंने भारतीयों को ईसाई धर्म से जोड़ने या धर्मांतरण कराने का प्रयास किया। उच्च वर्ग के हिन्दुओं ने तो इनका बहिष्कार किया, किंतु निम्न वर्ग के हिन्दुओं का इनको समर्थन प्राप्त हुआ। 1729 में डेनिश के राजा ने ज़बरदस्ती ईस्ट इंडिया कंपनी से ऋण लिया जिसे न लौटा पाने की स्थिति में कंपनी एक बार फिर दिवालियेपन की स्थिति में आ गयी।
1730 के दशक में डेनमार्क का चीनी और भारतीय व्यापार दृढ़ हो गया, जिसमें भारत के कार्गो से लेकर कोरोमंडल तट और बंगाल तक सूती कपड़ों का प्रभुत्व था। कालीकट में काली मिर्च की सरकारी खरीद लॉज की स्थापना (1752-1791) की गयी। 1754 में डेनमार्क के अधिकारियों की एक बैठक त्रंकोबार में आयोजित की गई। इस बैठक में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में काली मिर्च, दालचीनी, गन्ना, कॉफी और कपास लगाने के लिए एक निर्णय लिया गया। 1755 में डेनिश निवासी अंडमान द्वीप पर पहुंचे।
1755 में डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने त्रंकोबार कार्यालय से बंगाल के नवाब के लिए एक प्रतिनिधि भेजा। जिसका मुख्य उद्देश्य बंगाल में व्यापार का अधिकार प्राप्त करना था। उन्होंने तत्कालीन बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान को 50,000 रुपये नकद देकर परवाना (जिला क्षेत्राधिकार) प्राप्त किया। साथ ही श्रीपुर में 3 बीघा ज़मीन और फिर एक नई फैक्ट्री और बंदरगाह के निर्माण के लिए अकना में 57 बीघा ज़मीन हासिल की। इस प्रकार इन्होंने पश्चिम बंगाल में भी अपने व्यापार का विस्तार किया।
1772-1807 ई. : इस दौर को भारत में डेनिशों का स्वर्ण युग कहा जाता है। 1772 में भारत के साथ व्यापार पर डेनिश एशियाई कंपनी के एकाधिकार की क्षति के कारण सभी डेनिश व्यापारियों के लिए व्यापार को खोलना पड़ा। इंग्लैंड, फ्रांस और हॉलैंड के व्यापारिक राष्ट्रों के बीच युद्धों में वृद्धि होने के कारण डेनमार्क की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुयी। भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार, विशेष रूप से 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद हुआ। इस जीत के बाद कंपनी के कई कर्मचारियों ने विशाल निजी संपत्ति हासिल की। 1799 में ब्रिटेन के अन्य देशों के साथ युद्ध होने का फायदा उठाया और यूरोप में अपने व्यापार का विस्तार किया।
नेपोलियन युद्ध (1803-1815 ई.) के दौरान ब्रिटिशों ने डेनिश जहाज़ों पर हमला कर डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ होने वाले व्यापर को नष्ट कर दिया और अंततः डेनिश बस्तियों पर कब्ज़ा कर उन्हें ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना लिया। डच बस्ती सेरामपुर को 1839 ई. में तथा त्रंकोबर को 1845 में डेनमार्क द्वारा ब्रिटेन को हस्तांतरित कर दिया गया।
डेनिशों का प्रभाव त्रंकोबार में आज भी देखा जाता है, यहां अपनायी जाने वाली शिक्षा प्रणाली डेनिशों की ही देन है। त्रंकोबार के एक संग्राहलय में अभी भी डेनिश अवशेषों को संग्रहित किया गया है। त्रंकोबार ने डेनिशों की विरासत को आज भी संजो कर रखा है, तथा कई जीर्ण हो गयी इमारतों का पुनर्निर्माण कराया जा रहा है।
संदर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Danish_India
2. http://www.bbc.com/travel/story/20160929-indias-scandinavian-secret
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Serampore
4. http://coinindia.com/galleries-danish.html
5. https://web.archive.org/web/20120108071646/http://www.zum.de:80/whkmla/region/india/tldanindia.html
6. https://historicalleys.blogspot.com/2012/01/danish-factory-in-calicut-1752-1796.html
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