रामपुर की जामा मस्जिद का निर्माण औपनिवेशिक काल के दौरान कराया गया था, जिसमें समय देखने के लिए अंग्रेज़ी घड़ी लगायी गयी। किंतु अंग्रेज़ी घड़ी के आने से पूर्व भी भारत की अनेक मस्जिदों में समयानुसार सभी नमाज़ अदा की जाती थीं, जिसमें समय देखने के लिए सौर घड़ी का प्रयोग किया गया। सौर घड़ी का अविष्कार ईस्लाम धर्म से सैकड़ों वर्ष पूर्व कर दिया गया था। भारत में दिल्ली की जामा मस्जिद और फतेहपुरी मस्जिद सहित कई मस्जिदों में सौर घडि़यां लगायी गयी हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद में, इसे अंतिम मुगल राजा बहादुर शाह ज़फ़र के छोटे भाई, सलीम मिर्ज़ा द्वारा लगवाया गया था।
वास्तव में सौर घड़ी एक ऐसा यंत्र है, जो सूर्य की दिशा और प्रकाश स्थान या छाया का उपयोग करके समय को इंगित करती है। इसके माध्यम से सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय ज्ञात किया जा सकता था। सबसे पहले सौर घड़ी का उपयोग बेबीलोन (1500 ईसा पूर्व) में किया गया था, जिसका ज्ञान बाद में (600 ईसा पूर्व) यूनानियों तथा इनसे मुसलमानों को दिया गया। 9वीं शताब्दी तक मुस्लिम खगोलविदों ने व्यापक रूप से सौरघड़ी का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया था। इस्लाम धर्म में दिन सूर्यास्त से शुरू होता है तथा अगले सूर्यास्त तक चलता है। इसके मध्य पांच बार की नमाज़, क्रमशः, फज्र (भोर की नमाज़), ज़ुह्र (मध्याह्न की नमाज़), अस्र (दोपहर की नमाज़), मग़रिब (सायंकाल की नमाज़), इषा (रात्रि की नमाज़) अदा की जाती हैं। इन नमाज़ों के समय को सौरघड़ी द्वारा इंगित किया जा सकता था।
खगोलविदों ने पृथ्वी के प्रत्येक अक्षांश के लिए वर्ष के 365 दिनों की दोपहर की नमाज़ के समय को चिह्नित करते हुए विस्तृत सारणी तैयार की। इसे असर-ए-अव्वल और असर-ए-सानी कहा गया तथा इस सारणी से इन समयों को सौरघड़ी पर कहीं भी खींचा जा सकता था। इसके अलावा, चूंकि मुसलमान मक्का में काबा की ओर मुंह करके नमाज़ अदा करते हैं, इसलिये खगोलविदों ने भी हर जगह से क़िबला (काबा की दिशा) की गणना करने के लिए गोलाकार त्रिकोणमिति की विस्तृत तालिकाओं का संकलन किया।
भारत की विभिन्न मस्जिदों में मौजूदा सौर घड़ियों पर एक संक्षिप्त नज़र:
जामा मस्जिद, दिल्ली
जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहां द्वारा करवाया गया। इस मस्जिद पर लगाई गयी सौर घड़ी को अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के छोटे भाई राजकुमार सलीम मिर्ज़ा के निर्देशन में लगवाया गया था। मस्जिद के आंगन के दक्षिण-पूर्व कोने में इस सौर घड़ी को एक शीर्ष रहित और आयताकार आधार पर लगाया गया। यह सौरघड़ी 70 से.मी. ऊंचे आधार और 46 × 46 से.मी. के संगमरमर के पटिया पर 2 से.मी. की मोटाई में उत्कीर्ण किया गया है। यह अर्ध-गोलाकार घड़ी सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक का समय दिखाती है। रोमन अंकों में बाईं ओर सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक और दाईं ओर दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक के निशान अंकित किए गए हैं। इस सौर घड़ी में कुछ शिलालेख भी अंकित किए गए हैं, जो अब क्षतिग्रस्त अवस्था में मौजूद हैं।
फतेहपुरी मस्जिद, दिल्ली
फतेहपुरी मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ की पत्नियों में से एक - फतेहपुरी बेगम द्वारा 1650 में किया गया था। यहाँ 2 सौर-घड़ियां हैं। पहली सौरघड़ी हौज़ के पास संगमरमर की सीटों (Seats) के बीच रखी गई है। 30 सेंटीमीटर संगमरमर की यह सौरघड़ी 13 सेंटीमीटर मोटे बलुआ पत्थर की पट्टी में उत्कृणित है। इस सौर घड़ी में सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे को दो संक्रेंदित गोलों में बांटा गया है। अंदर का गोला घंटे को 15 मिनट के अंतराल में विभाजित करता है, जबकि बाहरी गोला एक घंटे को 5 मिनट के अंतराल में विभाजित करता है।
दूसरी सौरघड़ी, बिजली के खंभे पर लगी दक्षिण मुखी खड़ी सौरघड़ी है। यह आयताकार काली घड़ी 35 x 35 सेमी की एक शीट (Sheet) है, जो ज़मीन से 240 से.मी. की ऊंचाई पर लगी हुई है। इसमें 28 से.मी. पर एक त्रिकोणीय शंकु है, जिसके चारों ओर घंटे की लाइनें (Lines) अर्ध-वृत्ताकार वलय को काटने के लिए विकीरण करती हैं, जो समय को सूर्योदय (सुबह 6 बजे) से सूर्यास्त (6 बजे) तक चिह्नित करती हैं। मस्जिद में खड़ी सौरघड़ी का यह पहला उदाहरण है।
मक्का मस्जिद, हैदराबाद
भारत में सबसे पुरानी सौरघड़ी हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में है। यह घड़ी 122.5 सेंटीमीटर व्यास की एक गोलाकार प्लेट (Plate) है, जो 122 सेंटीमीटर के स्तंभ पर है। जिसमें शंकु उपलब्ध नहीं है। समय को 24 मिनट की 'घटी' में दर्शाया गया है। यह भारत में एकमात्र सौर घड़ी है, जिसमें किबला को एक रेखा की मदद से दर्शाया गया है।
खानकाह इमादिया, पटना
खानकाह इमादिया की छत पर स्थित, इसे 20 वीं शताब्दी के अंत में शाह फरीदुल हक इमादी द्वारा डिज़ाइन (Design) किया गया था। इस घड़ी को एक अष्टकोणीय धातु की प्लेट पर उकेरा गया है, जिसका प्रत्येक भाग 152 मि.मी. है। इस पर घंटे की लाइनें और दोपहर की प्रार्थना– ज़ुह्र और अस्र को इंगित करती वक्र रेखाएँ है।
पुलीकट मस्जिद
यहाँ सौरघड़ी को, 1334 हिजरी (1914 ई.) में, मुथियालपेट के हाजी मोहम्मद हुसैन साहिब द्वारा स्थापित किया गया था। यह घड़ी प्लेट 25 × 20 से.मी. है और इसमें त्रिकोणीय शंकु है। शंकु के बाईं ओर से यह एक क्षैतिज रेखा के माध्यम से सुबह 6 से 11 बजे तक के समय को चिह्नित करती है तथा शंकु दोपहर के 12 बजे को दर्शाता है और इसके दांयी ओर दोपहर 1 से शाम 6 बजे के निशान अंकित किए गए हैं। सुबह 7 से शाम 7 बजे के बीच के समय को 15 मिनट के अंतराल में विभाजित किया गया है। दाईं ओर के दो वक्र प्रार्थना के समय दर्शाते हैं।
श्रीरंगपटना- जुमा मस्जिद और गुंबद
अगली दो सौरघड़ी, मैसूर के पास श्रीरंगपटना में स्थित हैं। जिनमें से पहली घड़ी 1782 में टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित जुम्मा मस्जिद की छत पर लगायी गयी है। लगभग 53.34 से.मी. व्यास वाली यह सौरघड़ी, 2 मीटर ऊंचे स्तंभ के ऊपर स्थित है। केंद्र में शंकु के लिए एक छेद किया गया है। केंद्र से एक मोटी रेखा निकलती है और दो समानांतर वक्र, अस्र वक्र की तरह हैं। उसी डिज़ाइन की एक दूसरी सौरघड़ी, टीपू के मकबरे में गुम्बद के पास स्थित है। घड़ी एक आयताकार काले पत्थर के स्लैब (Slab) (63.5 x 48.3 सेमी) पर उत्कीर्ण है, जो 94-सेमी ऊंचे आयताकार स्तंभ के ऊपर है।
इस प्रकार की अन्य सौर घड़ियां मोती मस्जिद, आगरा; हज़रत मौलाना जियाउद्दीन साहब का खानकाह, जयपुर; आस्ताना मस्जिद, गाज़ीपुर; नौली शरीफ, नौली आदि में भी लगायी गयी हैं। जिनमें से कुछ आज भी आकर्षण का केंन्द्र हैं तो कुछ क्षतिग्रस्त अवस्था में आ गयी हैं।
संदर्भ:
1.https://lighteddream.wordpress.com/2018/01/01/सौरघड़ीs-to-tell-the-times-of-prayers-in-the-mosques-of-india/
2.http://muslimheritage.com/article/principle-and-use-ottoman-सौरघड़ीs
3.https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_सौरघड़ीs
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