हस्तशिल्प और हथकरघा निर्यात निगम(HHEC ) भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय की एक एजेंसी (Agency) है, जो भारत सरकार द्वारा 1958 में स्थापित की गयी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य हस्तशिल्प, हथकरघा उत्पादों, खादी और भारत के ग्राम उद्योगों के उत्पादों का निर्यात करना और विशेष औद्योगिक उपायों को बढ़ावा देना था। भारत में हस्तशिल्प का एक समृद्ध इतिहास रहा है जो प्राचीन समय में विकसित हुआ और आज तक चला आ रहा है। भारतीय संस्कृति की विरासत में हमे सुंदरता, गरिमा, रूप और शैली देखने को मिलती हैं।
एच.एच.ई.सी (HHEC) पिछले 5 दशकों से दुनिया भर के बाजारों के लिए दृष्टिगत रूप से आकर्षक और आर्थिक रूप से उपयुक्त उत्पादों को बनाने के लिए पूरे भारत से शिल्प कौशल का उपयोग करने वाले हस्तशिल्प के विकास और निर्यात में शामिल है। यह शिल्पकारों, स्व निर्माता समूह इत्यादि द्वारा आपूर्ति किये गये विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे धातु, पत्थर, हस्तशिल्प, पेपरमेशी (Paper Mache), आभूषण, फर्नीशिंग (Furnishing), शालें और स्टोल्स (Shawls & Stoles), टेक्सटाइल्स/गारमेंटस (Textiles/Garments), सोने और चांदी के आभूषण आदि को विशेष प्राथमिकता देता रहा है।
वर्तमान में निम्न प्रकार के शिल्प भारत सरकार के हस्तकला और हथकरघा निर्यात निगम के अधीन हैं:-
1. ज़री: ज़री पारंपरिक रूप से उपयोग किये जाने वाला सोने या चांदी से बना एक समान धागा है जो पारंपरिक भारतीय, पाकिस्तानी और फारसी वस्त्र और अन्य सामग्री जैसे पर्दे, आदि में उपयोग किया जाता है।
2. चमड़े के जूते: चमड़े के जूते सहित चमड़ा उद्योग, भारत के सबसे पुराने पारंपरिक उद्योगों में से एक है। भारत में इसके उत्पादन की क्षमता है, लगभग 900 मिलियन जोडी चमड़े के जूते।
3. चमड़ा (अन्य वस्तुएं): चमड़े के बने उत्पाद जैसे जैकेट (Jacket), लैंपशेड (Lampshade), पाउच (Pouch), बस्ता, बेल्ट (Belt), बटुआ, और खिलौने बड़े पैमाने पर भारत से निर्यात किए जाते हैं।
4. क़ालीन: भारत में विभिन्न प्रकार के कालीनों का निर्माण किया जाता है। इनमें हाथ से बुने ऊनी कालीन, गुच्छेदार ऊनी कालीन, और शुद्ध रेशम से बने कालीन शामिल हैं।
5. आसन और दरी: भारत दुनिया में कालीनों का प्रमुख उत्पादक है। भारत में विभिन्न प्रकार के उत्पादित आसनों में नमदा (गुच्छेदार आसन), गब्बा (कशीदाकारी कालीन), कपास के आसन, आदि शामिल हैं।
6. कपड़ा (हथकरघा): हथकरघा उद्योग भारत के लिए समृद्ध सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। भारत दुनिया में एक प्रमुख हथकरघा उत्पादक है, जो वैश्विक स्तर पर कुल उत्पादन का 85% हिस्सा है।
7. कपड़े पर हाथ की कढ़ाई: विभिन्न प्रकार के हाथ की कढ़ाई का भारत में अभ्यास किया जाता है। ज़रदोज़ी, विश्व प्रसिद्ध कपड़ा हाथ कढ़ाई शिल्प में से एक है।
8. कपड़े पर हाथ से छपाई: हाथ से वस्त्र छपाई एक कला है जिसमें कपड़े को हाथ से रंगा जाता है या आकृतियों के उपयोग से उस पर छपाई की जाती है। ब्लॉक प्रिंटिंग (Block Printing), बैटिक, कलमकारी और बंधनी भारत में प्रसिद्ध हैं।
9. लकड़ी पर नक्काशी: लकड़ी पर नक्काशी एक प्राचीन शिल्प है जो काफी वर्षों से भारत में प्रचलित थी। इस शिल्प के लिए उपयोग की जाने वाली लकड़ी की सबसे आम किस्में सागवान, साल, बबूल, आम, शीशम, आदि हैं।
10. वूड इनले (Wood Inlay): यह शिल्प रूप 18 वीं शताब्दी में फारस से भारत लाया गया था। मैसूर में वुड इनले से लकड़ी की नक्काशी कर खूबसूरती से सजी धरोहरें अधिक मात्रा में मौजूद हैं।
11. लकड़ी से बने टर्निंग और लैकरवेयर (Turning and Lacquer Ware): आज बदलते बाजारों की प्रतिक्रिया में लाह के उत्पादन में विविधता आई है। इसमें अब गहने, सजावटी सामान, घरेलू उपयोगिता की वस्तुएं और शिक्षा सम्बन्धी वस्तुएं जैसे कूदने की रस्सी के हैंडल (Skipping Rope Handle), शतरंज सेट, पेन होल्डर (Pen Holder), पेपर वेट (Paper Weight) और रबर (Rubber) की मोहर शामिल हैं।
12. फर्नीचर (Furniture): लकड़ी का फर्नीचर भारतीय फर्नीचर बाजार का सबसे बड़ा घटक है, जो भारत में निर्मित कुल फर्नीचर का लगभग 65% हिस्सा है।
13. पत्थर की नक्काशी: इस उद्योग में मंदिरों और मस्जिदों के लिए पत्थर की नक्काशी से लेकर कैंडल स्टैंड (Candle Stand), गहनों के बक्से इत्यादि जैसी उपयोगी वस्तुएं भी इसमें शामिल है।
14. पत्थर का जड़ना (Stone Inlay): संगमरमर को जड़ना एक ऐसी उत्कृष्ट कला है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है।
15. बेंत और बाँस: बेंत (Cane) का उपयोग बड़े पैमाने पर फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है, जबकि बांस का उपयोग गहने और सजावटी उपयोग की वस्तुएं बनाने के लिए किया जाता है, जैसे लैंप-स्टैंड, छाता हैंडल, फूलदान, टोकरी, छड़ी, मछली पकड़ने की रॉड (Rod), टेंट पोल (Tent Pole), सीढ़ियाँ, खिलौने, पंखे, कप, चटाई आदि।
16. फिलीग्री (Filigree) और सिल्वरवेयर (Silverware): फिलीग्री 4000 साल पहले की एक अत्यंत प्राचीन तकनीक है। निर्मित कलाकृतियों में मिश्र धातु का इस्तेमाल होता है जिसमें 90% से अधिक चांदी होता है।
17. धातु का बर्तन: भारत के धातु शिल्प, जटिल शिल्प कौशल और ललित कला को प्रदर्शित करते हैं जिसमें सोना, चांदी, पीतल, तांबा को उत्तम रचना तथा मूर्तियों और गहनों की छवियों में आकार देने जैसी कला शामिल है।
18. बीद्रीवेयर (Bidriware) या बीदर के बर्तन: बीदरीवेयर एक धातु हस्तकला है जिसकी उत्पत्ति कर्नाटक के बिदर में हुई थी। इसके नाम की उत्पत्ति ‘बीदर’ की बस्ती से हुई है, जो अभी भी अद्वितीय धातु के बर्तन का मुख्य केंद्र है।
19. आभूषण: भारत में पारंपरिक और आधुनिक डिज़ाइन (Design) में हाथ से बने गहनों के लिए अच्छी तरह से स्थापित क्षमताएं हैं।
20. मिट्टी के बर्तन और वस्तुएँ: भारत में पूरे देश में मिट्टी के शिल्प और मिट्टी के बर्तनों की समृद्ध परंपरा है। असम का अशारीकंडी इस विषय में भारत का सबसे बड़ा समूह है, जहाँ टेराकोटा (Teracotta) और मिट्टी के बर्तनों का शिल्प मिलता है।
21. टेराकोटा: टेराकोटा के बर्तनों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मिट्टी आंशिक रूप से कठोर, नमी रहित होती है। इस शिल्प में, वस्तुओं के निर्माण के लिए कुम्हार के पहिये का इस्तेमाल नहीं किया जाता जैसा कि मिट्टी के बर्तनों में किया जाता है।
22. हाथी दांत और हड्डी: हाथी दांत और हड्डी पर नक्काशी, जानवरों की हड्डियों पर नक्काशी करके कला के रूपों को बनाने का कार्य है।
23. संगीत वाद्ययंत्र: कुछ लोकप्रिय वाद्ययंत्र सितार, बांसुरी, शहनाई, तबला, सारंगी और घटम हैं।
24. लोक चित्रकला: भारतीय लोक चित्र गाँव के चित्रकारों के चित्रमय भाव हैं जो भारतीय पुराणों के साथ-साथ दैनिक घटनाएँ, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों से चुने गए विषयों द्वारा चिह्नित हैं।
25. शंख: शंख शिल्प का भारत में सामाजिक और धार्मिक महत्व है। पश्चिम बंगाल में शंख की चूड़ियों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
26. कोयर ट्विस्टिंग (Coir Twisting): कोयर एक प्राकृतिक लचीला रेशा है जो नारियल में पाया जाता है। यह बहुतायत में पाया जाता है और पर्यावरण के अनुकूल खिलौने, चटाई, ब्रश (Brush), गद्दे, पर्दे, चाबी के छल्ले, पेन स्टैंड और अन्य घरेलू सजावट के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है।
27. थियेटर (Theatre): वेशभूषा और कठपुतली: इस शिल्प में त्यौहारों से संबंधित वस्तुएं बनाना और उनका कला प्रदर्शन करना शामिल है।
28. गुड़िया और खिलौने: भारत के विभिन्न क्षेत्रों को विशिष्ट खिलौनों के लिए जाना जाता है। अंतर न केवल कच्चे माल की उपलब्धता में, बल्कि स्थानीय संस्कृति में भी है।
29. घास, पत्ती, ईख और फाइबर (Fibre): पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग विभिन्न हस्तशिल्प जैसे कि जूते, टोकरी, चटाई, चिक, बस्ते, लैंपशेड, आदि की तैयारी के लिए किया जाता है।
30. धातु छवियाँ (शास्त्रीय): इसका एक मशहूर उदाहरण है ढोकरा जो कि एक तरह से धातु पर चित्रों को उकेरने की तकनीक है। शायद आज ढोकरा पूर्वी भारत में धातु पर चित्र बनाने की इकलौती जीवित तकनीक है।
31. धातु चित्र (लोक): यह भी धातु पर चित्र उकेरने की एक तकनीक है परन्तु इसमें बनाये गए चित्र अक्सर लोकचित्र होते हैं।
लकड़ी के वायलिन (Violin) बनाने की कला (रामपुर और कोलकाता ) वास्तव में हस्तशिल्प और हथकरघा निर्यात निगम के 31 प्रकारों के हस्तशिल्प में से किसी में भी शामिल नहीं है , जिस वजह से इस कला को सरकार द्वारा भी कोई समर्थन प्राप्त नहीं है। वायलिन दुनिया का एकमात्र उपकरण है जो प्रेम की भावना को पूरी तरह से व्यक्त करता है। रामपुर के वायलिन को कभी दुनिया का सबसे अच्छा माना जाता था। अफसोस की बात है कि यह उद्योग अब अपनी अंतिम सांस ले रहा है। विश्व प्रसिद्ध चार तार वाला रामपुर वायलिन पहले केवल रामपुर में बनाया जाता था, लेकिन पिछले दो तीन वर्षों में, चीनी कारीगरों ने संगीत वाद्ययंत्र के बाजार पर कब्जा कर लिया है।
रामपुर वायलिन इतने प्रसिद्ध थे कि बर्कली (Berkeley) संगीत अकादमी के संगीतकारों द्वारा यहाँ पर तैयार किये गये वायलिन का उपयोग किया गया है। इन वायलिन का उपयोग हिंदी फिल्म, मोहब्बतें और कई अन्य हिंदी फिल्मों में किया गया था, लेकिन अब चीन और अन्य देशों के बाजार में उपलब्ध सस्ते उत्पादों के कारण रामपुर के कारीगरों के हाथ से बने उत्पादों के कोई खरीददार नहीं हैं। एक सबसे बड़ी समस्या आज रामपुर के वायलिन बनाने वाले कारीगरों के सामने यह है कि उन्हें कोई ऋण भी नहीं मिलता और सरकार की तरफ से मदद भी शून्य बराबर ही है।
संदर्भ:
1. https://www.newsclick.in/why-classy-violins-made-up-rampur-falling-silent
2. http://www.hhecworld.com/
3. http://www.hheconline.in/
4. https://bit.ly/2VCXZi2
5. https://bit.ly/2GMHqa5
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