फारसी भाषा के प्रख्‍यात कवि गिआत-अल-दिन-रामपुरी के कविता आज भी स्थित है रज़ा पुस्तकालय में

रामपुर

 30-04-2019 07:10 AM
ध्वनि 2- भाषायें

रामपुर के एक प्रख्‍यात ऐतिहासिक लेखक गिआत-अल-दिन-रामपुरी (Giat-al-din-Rampuri) आज भले ही लोगों के ज़हन से विस्‍मृत हो गये हों, किंतु इनकी कृतियां आज भी रामपुर के रज़ा पुस्‍तकालय में जीवित हैं। रामपुरी का जन्‍म रामपुर के एक विद्वान परिवार में हुआ था। इन्होंने दिल्ली में ईरानियों के एक समूह के साथ फारसी का अध्ययन किया था। साथ ही इन्‍होंने यूनानी औषधी विज्ञान का भी अध्‍ययन किया। रामपुरी सूफी संप्रदाय के काफी करीब थे।

प्रारंभ में रामपुरी ने नवाब अहमद अली खान के दरबार में शिक्षक और कवि के रूप में कार्य किया। किंतु वे इनके दरबार में विशेष महत्‍व हासिल नहीं कर सके तथा इन्हें रामपुर के अलावा किसी और से सहायता लेने पर मजबूर होना पड़ा। कुछ साक्ष्‍य बताते हैं कि इन्‍होंने लखनऊ में भी सहायता की मांग की थी। अंततः अहमद अली खान के उत्‍तराधिकारी मोहम्‍मद-सईद-खान ने इन्‍हें पुनः नियोजित किया था। जहां इन्‍होंने मोहम्‍मद के पुत्र एवं पौत्र को शिक्षा दी। इनके कई छात्र आगे चलकर प्रख्‍यात कवि, लेखक और विद्वान बनें, जिनमें उनके पुत्र भी शामिल थे। रामपुर में 7 अक्टूबर 1852 को गिआत-अल-दिन-रामपुरी का देहांत हो गया तथा इन्‍हें यहीं दफनाया गया।

गिआत-अल-दिन-रामपुरी की पहली कृति ‘बाग-ओ-बहार’ थी, जिसे इन्‍होंने जिलानी (जिलानी रामपुर में अरबी और फ़ारसी साहित्य के विद्वान, शिक्षक और एक फ़ारसी युद्ध पर आधारित जंगनामा के लेखक थे जिसका शीर्षक डोर-ए-मनुम था) के अनुरोध पर लिखा था तथा यह कृति अहमद अली खान को समर्पित थी। । उन्होंने नवाब की एक अनाम बेगम को समर्पित एक ‘किस्‍सा-ये-गोल-ओ-गेंदा’ नामक लंबी श्रृंखला भी लिखी थी, जो आज भी रामपुर के रज़ा पुस्‍तकालय में संरक्षित है। आगे चलकर इन्‍होंने अनेक प्रसिद्ध फारसी साहित्‍य लिखे, जिनमें से कई भिन्‍न-भिन्‍न हस्तियों को समर्पित थे।

फारसी जगत में अनेक कवि हुए जो साहित्‍य जगत के लिए अमर कृतियां रच कर चले गये। ‘गुलिस्तान’ भी फारसी जगत की एक ऐसी ही अमर रचना है, जिसे फ़ारसी साहित्य का मील का पत्थर भी माना जाता है। यह फ़ारसी कवि सादी (Sa'di) की दो प्रख्‍यात रचनाओं में से एक है। गुलिस्तान खूबसूरत कविताओं और कहानियों का एक संग्रह है। जिसमें सा‍दी ने बड़े ही सरस और सुबोध तरीके से उपदेश प्रस्‍तुत किये हैं। सादी की कथा प्रस्‍तुती स्‍वयं उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है। इन्‍होंने अपनी रचना को गुलाब के बागान की भांति संवारा है।

मध्‍यकालीन भारत में फारसी भाषा लेखकों और कवियों के मध्‍य काफी लोकप्रिय थी। इस दौरान फ़ारसी और उर्दू भाषा का चलन बहुत अधिक था। जहाँ उर्दू अब भी सामान्य रूप से प्रयोग की जाती है, वहीं फ़ारसी भाषा का प्रयोग सामान्य तौर पर बहुत कम हो गया है। अंग्रेजों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीपों में उपनिवेश करने से पहले, यहां फारसी भाषा व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली आधिकारिक भाषा थी। इसे विभिन्न तुर्क और फारसी राजवंशों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में लाया गया था। फारसी के ऐतिहासिक प्रभाव के साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं पर देखे जा सकते हैं। फ़ारसी भाषा का एक निश्चित प्रभाव न केवल साहित्य में, बल्कि आम आदमी द्वारा बोले जाने वाली भाषा में भी देखा गया है।

1835 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा फारसी की आधिकारिक स्थिति को अंग्रेजी भाषा के साथ बदल दिया गया। 1843 के बाद, अंग्रेजी ने धीरे-धीरे भारतीय उपमहाद्वीप में फारसी की जगह ले ली, क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप पर अंग्रेजों का पूर्ण आधिपत्य था। भारत में कई शिलालेखों पर फ़ारसी अभिलेख उकेरे गए हैं साथ ही कई हस्तलिखित पुस्तकें भी हैं, जिनमें से ज्यादातर हुमायूं के समय की थी, जो कि फ़ारसी को काफी पसंद करते थे।

भारत में फ़ारसी भाषा का आगमन 12 वीं शताब्दी में केंद्रिय एशिया से हुआ था, जो उस दौरान भारत में अंग्रेजी भाषा के समान ही थी। 17 वीं शताब्दी में, जब मराठी शिवाजी ने दक्कन में मुगल सेना के सेनापति, जय सिंह (राजस्थान के) के साथ संवाद करना चाहा, तो उन्होंने फ़ारसी का इस्तेमाल किया। राजा राममोहन राय ने एक फ़ारसी अखबार का संपादन और लेखन किया। महान लेखक रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर के पसंदीदा कवि भी 14 वीं शताब्दी में ईरान के कवि हाफ़ेज़ थे। इसकी भूमिका इतनी अधिक थी कि भारत की भाषा ‘हिंदी’ के नाम की उत्पत्ति भी एक फ़ारसी शब्द से ही हुई है जिसका अर्थ है ‘भारतीय’। अंग्रेजी भाषा के कारण इसका महत्व कम हो गया है किन्तु कुछ स्थानों पर यह भाषा अब भी सिखाई जाती है।

भारत जैसी जगह में, फ़ारसी को बढ़ावा देने की आवश्यकता नहीं है - इसे केवल संरक्षित करने की आवश्यकता है। अधिकांश फ़ारसी पांडुलिपियां भारतीय पुस्तकालयों और अभिलेखागार में बंद पड़ी हैं। आई.आई.पी.एस. के अध्यक्ष प्रोफेसर सैयद अख्तर हुसैन द्वारा भाषा के साथ-साथ भारतीय-फारसी संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयास चल रहे हैं। उनका कहना है कि, “यह अफ़सोस की बात है कि वर्तमान पीढ़ियों ने बंगाल में विभिन्न पुस्तकालयों और अभिलेखागार में संरक्षित फ़ारसी साहित्य के विशाल खजाने से खुद को दूर रखा है।”

संदर्भ:
1. http://www।iranicaonline।org/articles/ghiat-al-din-rampuri
2. https://en।wikipedia।org/wiki/Gulistan_(book)
3. https://bit.ly/2Lezd3U
4. https://en।wikipedia।org/wiki/Persian_language_in_the_Indian_subcontinent
चित्र सन्दर्भ :-
1. http://www.iranicaonline.org/articles/ghiat-al-din-rampuri



RECENT POST

  • आइए आनंद लें, फ़ुटबॉल से जुड़े कुछ मज़ेदार चलचित्रों का
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:23 AM


  • मोरक्को में मिले 90,000 साल पुराने मानव पैरों के जीवाश्म, बताते हैं पृथ्वी का इतिहास
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:31 AM


  • आइए जानें, रामपुर के बाग़ों में पाए जाने वाले फूलों के औषधीय लाभों और सांस्कृतिक महत्व को
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:19 AM


  • वैश्विक हथियार निर्यातकों की सूची में, भारत कहाँ खड़ा है?
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:22 AM


  • रामपुर क्षेत्र के कृषि विकास को मज़बूत कर रही है, रामगंगा नहर प्रणाली
    नदियाँ

     18-12-2024 09:24 AM


  • विविध पक्षी जीवन के साथ, प्रकृति से जुड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है रामपुर
    पंछीयाँ

     17-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, कैसे हम, बढ़ते हुए ए क्यू आई को कम कर सकते हैं
    जलवायु व ऋतु

     16-12-2024 09:31 AM


  • आइए सुनें, विभिन्न भारतीय भाषाओं में, मधुर क्रिसमस गीतों को
    ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

     15-12-2024 09:34 AM


  • आइए जानें, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर दी गईं स्टार रेटिंग्स और उनके महत्त्व के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     14-12-2024 09:27 AM


  • आपातकालीन ब्रेकिंग से लेकर स्वायत्त स्टीयरिंग तक, आइए जानें कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम के लाभ
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     13-12-2024 09:24 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id