क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर इस पृथ्वी पर मनुष्य और जीव-जंतु की उत्पत्ति हुई कैसे? आखिर कौन है इनके रचयिता? कैसे यह समय के साथ विकसित हुए और इनमे ज्ञान का समावेश कैसे हुआ? यह सारे प्रश्न काफी हैरान करने वाले भी है और दिलचस्प भी। इस विषय पर कई वैज्ञानिकों नें भी खोज किया है और कई लोगों के इस पर अपने धार्मिक विचार भी है। 1859 में चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) नामक एक वैज्ञानिक नें एक पुस्तक लिखी थी, ‘जीवजाति का उद्भव’ (Origin of Species (हिंदी में - 'ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़'))। यह पुस्तक प्रजातियों के उत्पत्ति के ऊपर केन्द्रित था, इस पुस्तक के माध्यम से डार्विन नें यह समझाया है कि किस प्रकार विभिन्न प्रजातियों की उत्पत्ति हुई और कैसे समय के साथ उनका विकास हुआ और वह प्रतिस्पर्धा करने, जीवित रहने और प्रजनन करने में सक्षम हुए। डार्विन का यह जीवों के ऊपर का सिद्धांत काफी सराहनीय था, परन्तु आपको यह जान कर बहुत हैरानी होगी कि डार्विन के इस सिद्धांत और विष्णु के दशावतार के बीच काफी समानताएं है। जी हाँ, हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार भगवन विष्णु इस सृष्टि के पालनहार है जिनका कार्य इस पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखना है। जब जब इस पृथ्वी पर कोई संकट आई है, तब तब ईश्वर नें किसी न किसी रूप में आकर उस संकट का विनाश किया है।
जिस प्रकार डार्विन नें अपने सिद्धांत के माध्यम से लोगों को प्रजातियों और उनके विकास के बारे में बताया वह विष्णु के दशावतार के काहनियों से काफी मिलता जुलता है। तो आईये भगवान विष्णु के इन दश अवतारों को जाने और इसका डार्विन के सिद्धांत के साथ क्या सम्बन्ध या समानताएं है इस पर गौर करें।
1. मत्स्य अवतार: यह अवतार भगवान विष्णु के दशों अवतारों में से सबसे पहला अवतार है। पुराणों के अनुसार भगवान नें एक मछली के रूप में राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान दिया था और उन्हें भविष्य में आने वाले प्रलय से बचने का उपाय बताया था। वही अगर डार्विन के सिद्धांत की बात करें तो उसके अनुसार इस संसार की शुरुआत समुद्र में रहने वाले जीवों से हुआ था, जैसे की मछलियां।
2. कूर्म अवतार: यह भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिसमें भगवान कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र मंथन में सहायता करते है। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार दुसरे चरण में जलीय जीवों नें समुद्र से बाहर निकल ज़मीन पर चलना शुरू किया और इस तरह से उभयचर अस्तित्व में आये। कछुआ भी एक उभयचर ही है जो भूमि और जल दोनों पर जीवित रह सकते है।
3. वराह अवतार: धर्म ग्रंथों के अनुसार जब दैत्य हिरण्याक्ष नें पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था तब भगवान विष्णु नें वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को पुनः वापस लाया था। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार उभयचर से विकसित होकर जीवों नें पूर्ण रूप से भूमि पर रहना शुरू कर दिया। भगवान का यह रूप भी एक वराह का था जो भूमि पर ही निवास करता है।
4. नृसिंह अवतार: नृसिंह अवतार में ईश्वर नें हिरण्यकशिपु का वध कर अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। यह भगवान का वह रूप था जिसमें उन्होंने आधा मनुष्य और आधा पशु का रूप धारण किया था और डार्विन के सिद्धांत के अनुसार भी जीव अगले चरण में पशु रूप से आगे बढ़ मनुष्य के रूप में विकसित हो रहे थें।
5. वामन अवतार: भगवान विष्णु नें यह अवतार असुरों के राजा बलि का वध कर उसके अहंकार को तोड़ने के लिए लिया था। राजा बलि नें अपनी शक्तियों से स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया था और इस कारण भगवान नें वामन (बौने) का अवतार लेकर उनसे दान के रूप में तीन पग धरती मांगी। जब बलि नें उनका यह दान स्वीकार किया तब भगवान नें एक विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती, दुसरे पग में स्वर्ग और तीसरे पग में राजा बलि को अपने पैर के नीचे लेकर उन्हें पाताल लोक पहुचा दिया। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार भी मनुष्यों नें विकसित होना प्रारंभ किया था परन्तु उनका पूर्ण रूप से विकास नहीं हुआ था। तो यह भी मान सकते है कि डार्विन का मतलब मनुष्यों के बौने रूप से था।
6. परशुराम अवतार: अपने छठे अवतार में भगवान विष्णु नें परशुराम का अवतार लेकर धरती से समस्त क्षत्रियो का वध कर उनके पूरे वंश को समाप्त कर दिया था। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अब तक मनुष्य पूर्ण रूप से विकसित हो चूका था परन्तु उनके रहने का तरीका भिन्न था, वह जंगलों में वास करते थें और गुफाओं में रहते थें और पत्थर तथा लकड़ियों के हथियारों से युद्ध करते थें, ठीक वैसे ही जैसे परशुराम किया करते थें।
7. श्रीराम अवतार: विष्णु के इस अवतार को कौन नहीं जानता है। इस अवतार में विष्णु एक स्वाभिमानी व मर्यादा पुरुषोत्तम राजा का रूप धारण करते है और धरती से रावन जैसे अधर्मी और अहंकारी राक्षस का वध करते है। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अगले चरण में मनुष्य सभ्य रूप से एक समाज में रहना शुरू करते है और बड़े प्रेम भाव से हर समस्या का समाधान निकालते है, ठीक वैसे ही जैसे राम राज्य में हुआ करता था।
8. श्रीकृष्ण अवतार: द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। उन्हें धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, मोक्ष और कर्मा हर विषय में ज्ञान था। वह राजनीति, कूटनीति, मित्रता व शत्रुता हर रिश्ते निभाने में परिपक्व थें। डार्विन के अनुसार भी मनुष्य अब तक अपने जीवन के वास्तविकता को समाझने में सक्षम हो गया था।
9. बुद्ध अवतार: भगवान गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे। इन्होनें मनुष्य को आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया और अपने अंतर आत्मा को कैसे सुद्ध रख कर निरवाना (मोक्ष) की प्राप्ति की जाए इसके बारे में बताया। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अब तक मनुष्य का पूर्ण रूप से मानसिक विकास हो चूका था और उसमें ज्ञान ग्रहण करने की पूर्ण क्षमता आ चुकी थी, जो की भगवान बुद्ध का भी सिद्धांत था कि ज्ञान ही मनुष्य के जीवन में अज्ञानता रुपी अन्धकार को मिटा सकता है और उसके पश्चात ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
10. कल्कि अवतार: यह भगवान विष्णु का दसवां अवतार है। कहते है कि कलयुग में बढ़ते अधर्म, भ्रष्टाचार और पापों को नष्ट करने के लिए ईश्वर यह रूप लेंगे। डार्विन नें भी अपने सिद्धांत के अंतिम चरण में यह कहा है कि मनुष्य अपनी सीमाओं को पार कर अधर्म के ओर अग्रसर होगा, इंसान इतना अहंकारी हो जाएगा की वह अज्ञानता के अन्धकार में खो जाएगा।
यह थे भगवान विष्णु के दशावतार और डार्विन के सिद्धांत के बीच की समानताएं। अब यह बस एक संयोग है या कुछ और यह तो हम नहीं कह सकते, परन्तु जिस प्रकार विष्णु के दशावतार और डार्विन के सिद्धांत के अनुसार मनुष्यों का विकास हुआ यह आश्चर्यजनक है और एक दुसरे से काफी मिलती जुलती है।
संदर्भ:
1. https://hindijaankaari.in/bhagwan-vishnu-ke-10-avtar/
2. http://hindi.webdunia.com/religious-stories/ten-avatars-of-vishnu-117083000046_1.html
3. https://bit.ly/2GjdgfC
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