1857 के विद्रोह के बाद औपनिवेशिक संयुक्त प्रांतों में रामपुर एकमात्र मुस्लिम शासित राज्य के रूप में बचा रहा था। हालांकि आज भी रामपुर शहर और इसकी संस्कृति की विशेषताओं को इस्लामिक शहर के रूप में वर्णित किया जा सकता है। परंतु रामपुर इंडो-इस्लामिक, औपनिवेशिक और विविध अन्य सांस्कृतिक प्रभावों के साथ एक सर्वदेशीय शहर के रूप में विकसित हुआ है। रामपुर का जटिल इतिहास रामपुर को एक विशिष्ट स्थानीय और वैश्विक महानगरीय संस्कृति देता है। रामपुर की इस सांस्कृतिक कलाकृतियों को हम उसकी वास्तुकला और शहरीता में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
रामपुर का स्थानीय महानगरीय शहरीकरण विशेष रूप से नवाब हामिद अली खान (1889-1930) के शासनकाल में विकसित किया गया था। हामिद अली खान की कलाओं (विशेष रूप से वास्तुकला और शहरीवाद) के संरक्षण की मदद से रामपुर भारत-मुस्लिम और वैश्विक महानगरीय संस्कृति का एक नया केंद्र बना था। रामपुर के शासकों के अधीन विकसित हुई राजसी शहरी संस्कृति को शहरी संरक्षण के मुगल और अवध सांस्कृतिक परंपरा के संरक्षण और परिवर्तन की विशेषता से वर्णित किया गया था, जो एक औपनिवेशिक आधुनिक लेख और शासन के अभ्यास के साथ मिश्रित हो गयी थी। जिससे एक नई सांस्कृतिक लेख बनी जो संकरता द्वारा चिह्नित और वैश्विक सांस्कृतिक क्षेत्र से उभरे विविध अभिनेताओं, लेखों और प्रथाओं का समावेश है।
जब 1774 में रामपुर को नवाब फैजुल्लाह खान ने राजधानी के रूप में चुना था, तब वह घने जंगल से घिरा हुआ था, तब उनके द्वारा रामपुर किले और शहर की नींव रखी गई थी। 1919 में, जब नजमुल घनी खान ने रामपुर के इतिहास को अपने दो खंडों में प्रकाशित किया था तो उन्होंने रामपुर को एक उल्लेखनीय सुंदर शहर पाया था। नजमुल घनी खान ने रामपुर के इतिहास में नवाब हामिद अली खान के शासनकाल के दौरान स्थापित हुई रचनाओं में विशेष ध्यान दिया था। नवाब हामिद अली खान को उनकी वास्तुकला और शहरी नियोजन के लिए रामपुर के शाहजहाँ के रूप में भी जाना जाता है।
हामिद अली खान के इस शहर के विकास के दृष्टिकोण को अंग्रेजी औपनिवेशिक अधिकारी, डब्ल्यू.सी. राइट द्वारा विकसित किया गया था। हालाँकि, उन्होंने 1899 में ब्रिटिश सेवा से सेवानिवृत्त होने का फैसला लिया और रामपुर में मुख्य अभियंता का पद संभाला और 1913 तक राज्य के लोक निर्माण विभाग में काम किया। रामपुर के केंद्र में जामा मस्जिद स्थित है, जामा मस्जिद को पहले किसी नवाब द्वारा बनवाया गया था, पर इसको हामिद अली खान द्वारा और अधिक शानदार पैमाने पर फिर से विकसित करवाया गया। साथ ही रामपुर के विभिन्न बाजारों ने इसकी सुंदरता को ओर अधिक कर दिया है। रामपुर की पारंपरिक वास्तुकला ने बदलते समय के चिह्नों और परियोजनों को भी समाविष्ट किया है। मुगल और अवध शैली की स्थापत्य स्मारकों के संरक्षण के साथ-साथ यहां रेलवे स्टेशन, अस्पताल, अदालतें, सार्वजनिक द्वार, चौड़ी सड़कें और नहर प्रणाली जैसी आधुनिक इमारतों का भी निर्माण हुआ है।
सार्वजनिक कार्यों के सुधार और विस्तार के उद्देश्य से 1888 में सार्वजनिक निर्माण विभाग को फिर से बनाया गया था। जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण लायलपुर से काटी गई कोसी नहर थी, जिसकी मूल योजना नवाब कल्बे अली खान (1865-1887) के शासनकाल के दौरान शुरू हो चूकी थी, और आने वाले वर्षों में इसे बड़े पैमाने पर विकसित किया गया। वैसे तो रामपुर आकार में एक छोटी सी रियासत थी, पर इंडो-इस्लामिक(Indo-Islamic) संस्कृति और स्थानीय विद्वानों की बौद्धिक और साहित्यिक विरासत को संरक्षित करने में इसने पर्याप्त योगदान दिया है। जिसे हम रामपुर में स्थित रज़ा पुस्तकालय में देख सकते हैं, यहां केवल भारत-मुस्लिम ज्ञान को संरक्षित नहीं किया हुआ है, इस पुस्तकालय में संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में साहित्य के विशाल कोष भी शामिल हैं। रामपुर में नवाब हामिद ने अपने नाम पर हामिद दरवाज़े का भी निर्माण कराया जिसकी तस्वीर आप ऊपर देख सकते हैं। रामपुर की वस्तुकला में नवाब दरवाज़ा, ईदगाह दरवाज़ा भी महत्वपूर्ण हैं।
रामपुर का मेस्टन गंज बाजार भी इसकी शहरीता(Urbanity) पर प्रकाश डालता है, वहीं गलियों में भीड़ से होकर गुजरने पर प्रसिद्ध रामपुरी चाकू और रामपुरी टोपी के बाजार भी देखने को मिलते हैं। इसके केंद्र में पुरानी तहसील इमारत है जिसमें सौलत पब्लिक लाइब्रेरी स्थित है। यह लाइब्रेरी अपने समृद्ध इतिहास के साथ आज काफी खराब स्थिति में है। इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (The Indian National Trust for Art and Cultural Heritage) या द आगा खान हिस्टोरिक सिटीज प्रोग्राम (The Aga Khan Historic Cities Programme) जैसे अन्य संस्थानों को भी अपने क्षितिज का विस्तार करने की आवश्यकता है।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2FwTMCG
2. https://www.epw.in/journal/2014/12/web-exclusives/case-falling-walls.html
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