सैंकड़ों परिंदे आसमाँ पर आज नजर आने लगे
शहिदों ने दिखाई है राह उन्हें आजादी से उड़ने की
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के प्राणों की आहुति को कौन भूला सकता है। भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखे गये इन तीन महान विभुतियों के बलिदान को याद करने के लिए 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिस उम्र में एक युवा अपने सुनहरे भविष्य के सपने सजाता है उस आयु में इन तीनों वीरों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए आज भारतीय तीनों साहसी स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हैं।
भगत सिंह का जन्म एक क्रांतिकारियों के परिवार में 28 सितंबर 1907 को हुआ था। 1919 की जलियांवाला बाग की घटना ने इन्हें हिला कर रख दिया उस समय इनकी आयु महज 12 वर्ष थी। इस घटना ने उन्हें अंदर तक कचोट दिया। किंवदंती के अनुसार भगत सिंह इस अमानवीय घटना की निशानी के तौर पर खून से लथपथ मिट्टी को एक बोतल में रखकर घर ले आये। आगे चलकर ये क्रांतिकारी आन्दोलन के संगठन में शामिल हो गये, इन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिए हिंसक साधनों का सहारा लिया। भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में अध्ययन किया, सिंह एक उत्साही पाठक, लेखक और समाजवादी क्रांतियों तथा साम्यवाद के विषयों के प्रति जिज्ञासी थे। मार्च 1926 में इन्होंने नौजवान भारत सभा, एक युवा निकाय की स्थापना की। भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भी बने, जिसका लक्ष्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारत से ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकना था।
राजगुरु का पूरा नाम हरि शिवराम राजगुरु था। वह महाराष्ट्र के एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार से थे। भगत सिंह की तरह, ब्रिटिश राज से लड़ने के लिए महात्मा गांधी की अहिंसक और सविनय अवज्ञा की विचारधारा में राजगुरु विश्वास नहीं करते थे। सुखदेव थापर, लुधियाना, पंजाब के थे। फांसी से पहले, सुखदेव ने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने (उनके जैसे क्रांतिकारी, भगत सिंह और राजगुरु) ब्रिटिश राज से लड़ने के हिंसक दृष्टिकोण के प्रति अपने विचार लिखे थे।
विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर छोड़कर कानपूर चले गये तथा अपने परिवार के लिए एक पत्र छोड़ गये जिसमें लिखा था “मेरा जीवन एक महान कारण के लिए समर्पित है वह है देश की स्वतंत्रता। इसलिए, ऐसा कोई आराम या सांसारिक इच्छा नहीं है जो मुझे लुभा सके।” अब वे पूर्णतः क्रांति के लिए समर्पित हो गये थे। मई 1927 में उन्हें लाहौर में हुयी बमबारी में शामिल होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया। वह जमानत पर रिहा हो गये। उन्होंने कई अखबारों और ब्रिटिश विरोधी पैम्फलेट के लिए लिखा। इन्कलाब जिन्दाबाद का अमर नारा भी इनके द्वारा दिया गया जिसका शाब्दिक अर्थ ‘क्रांति अमर रहे’ है।
1928 में, राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय के शांतिपूर्ण विरोध करने पर लाठीचार्ज करा दिया गया। 17 नवंबर 1928 को मारपीट के दौरान लगी चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके हमवतन, शिवराम राजगुरु, सुखदेव थापर और चंद्रशेखर आज़ाद ने योजना बनायी। उन्होंने जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची, जिसने न केवल लाठीचार्ज का आदेश दिया था बल्कि राय पर व्यक्तिगत हमला भी करवाया था। भगत सिंह और राजगुरु ने अपनी योजना को अंजाम दिया, किंतु उन्होंने जेम्स स्कॉट की बजाय एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी तथा एक पोस्टर में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी ने घोषणा की: “आज दुनिया देख चुकी है कि भारत के लोग बेजान नहीं हैं; उनका खून ठंडा नहीं हुआ है।” इस घटना को अंजाम देने के बाद सभी क्रांतिकारी घटना स्थल से अज्ञात जगह चले गये। अंततः भगत सिंह पुनः लाहौर वापस आ गए।
1929 में भगत सिंह ने स्वेच्छा से दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा के अंदर एक बम विस्फोट किया। जिसका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था, वे मात्र अंग्रेजों को अपना संदेश पहुंचाना चाहते थे। 8 अप्रैल 1929 को, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सत्र के दौरान दो बमों को सभा के कक्ष में फेंक दिया। इनकी योजना के अनुसार विस्फोट में कोई भी नहीं मारा गया था, हालांकि कुछ लोग घायल हो गए थे। दोनों क्रांतिकारियों ने घटना को अंजाम देने के बाद स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को बम विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। कुछ समय पश्चात पुलिस ने सुखदेव सहित अन्य क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया। आगे की जांच में सॉन्डर्स की हत्या का राज भी खुल गया जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दोषी ठहराया गया। लाहौर घटना और सॉन्डर्स की हत्या के दोष में इन तीनों को फांसी की सजा सुनायी गयी। फांसी दिए जाने के कुछ महीने पहले, भगत सिंह ने एक पुस्तिका में लिखा था कि मैं 'नास्तिक क्यों हूँ':”मुझे पता है कि जिस समय रस्सी को मेरी गर्दन के नीचे लगाया जाएगा और मेरे पेरों के नीचे से राफ्टर को हटाया जाएगा, वह मेरे जीवन का अंतिम क्षण होगा। यहां या उसके बाद (जीवन के बाद) सम्मानित होने के किसी स्वार्थ या अभिलाषा के बिना मैंने पूरी निष्ठा से अपना जीवन स्वतन्त्रता को समर्पित कर दिया है, जोकि मैं अन्यत्र नहीं कर सकता था। जिस दिन इस भाव के साथ बड़ी संख्या में महिला और पुरूष अपने जीवन को मानव जाति की सेवा और पीड़ित मानवता की मुक्ति के अतिरिक्त अन्यत्र किसी अभिलाषा में अपना जीवन समर्पित नहीं करेंगे, उस दिन स्वतंत्रता के युग का प्रारंभ होगा।“
24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी, लेकिन तीनों कैदियों को एक दिन पहले 23 मार्च को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी गई। जब 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को लाहौर जेल में फांसी दी गई थी, तब वह सिर्फ 23 साल के थे, जबकि राजगुरू और सुखदेव क्रमशः 22 और 24 वर्ष के थे। जेल की पिछली दीवार के एक छेद से उनके शवों को बाहर निकाला गया और लाहौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर हुसैनीवाला में सतलुज नदी के तट पर जला दिया गया। इनके इस अविस्मरणीय योगदान को भारत हमेशा याद रखेगा। भारत में पांच दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है:
30 जनवरी
30 जनवरी राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जाने वाली तारीख है। इस दिन 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा मोहनदास करमचंद गांधी जी की हत्या कर दी गयी थी। शहीद दिवस के दिन भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और तीनों सेना के प्रमुख आदि दिल्ली के राजघाट पर बापू की समाधि पर फूलों की माला चढ़ाते हैं तथा सैन्य बलों द्वारा सलामी देकर इन्हें श्रद्धाजलि दी जाती है।
23 मार्च
23 मार्च 1931 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की मृत्यु की वर्षगांठ को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
21 अक्टूबर
21 अक्टूबर को पुलिस शहीद दिवस (या पुलिस स्मरणोत्सव दिवस) जिसे राष्ट्रव्यापी पुलिस विभाग द्वारा मनाया जाता है, 1959 में इस तारीख को, लद्दाख में भारत-तिब्बत सीमा पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की गश्ती दल ने चीन सीमा विवाद के हिस्से पर चीनी बलों पर घात लगाकर हमला किया था।
17 नवंबर
ओडिशा में 17 नवंबर को लाला लाजपत राय (1865-1928) की पुण्यतिथि, "पंजाब का शेर", ब्रिटिश राज से आजादी के लिए भारतीय लड़ाई में अग्रणी नेता का नेतृत्व किया।
19 नवंबर
रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन, 19 नवंबर 1828, झांसी की मराठा शासित राज्य की रानी की मृत्यु के दिन को, इस क्षेत्र में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, और उन लोगों को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने 1857 के विद्रोह में अपना जीवन त्याग दिया था, जिनमें से एक यह भी थीं।
संदर्भ :
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