आधुनिक सभ्यता की रीढ़ लौह अयस्क सार्वभौमिक उपयोग की एक धातु है। साथ ही यह हमारे मूल उद्योग की नींव है और इसका उपयोग पूरे विश्व में किया जाता है। लोहे को लौह अयस्क के रूप में खननों से निकाला जाता है। तो आइए जानते हैं भारत के लौह अयस्क उद्योग और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में।
भारत द्वारा वित्त वर्ष 2018 में लगभग 210 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन किया, और इसने पिछले वर्ष से 9% की वृद्धि को दिखाया है। भारत में लौह अयस्क का संग्रह मुख्य रूप से ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और गोवा राज्यों में किया जाता है और इनमें से ओडिशा का योगदान भारत के कुल उत्पादन का लगभग 50% है। साथ ही जहाँ 50 से अधिक देशों में लौह अयस्क का उत्पादन किया जाता है, उनमें सबसे बड़े उत्पादक ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, भारत और रूस हैं। ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील विश्व के लौह अयस्क उत्पादन में लगभग 60% का योगदान देते हैं।
वित्त वर्ष 2018 में लौह अयस्क का भारतीय निर्यात 24.1 मिलियन टन और आयात 8.7 मिलियन टन था। वहीं वित्त वर्ष 2019 में देश में बुनियादी ढाँचे और ऑटोमोबाइल उद्योगों में स्थिर माँग के साथ लौह अयस्क का उत्पादन 2-5% बढ़ने की उम्मीद है। साथ ही लौह अयस्क पेलेट का निर्यात वित्त वर्ष 2019 में लगभग 10 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है। विभिन्न प्रकार के लौह अयस्क में शुद्ध लोहे का प्रतिशत भिन्न होता है, वहीं लौह अयस्क की चार किस्में निम्नलिखित हैं:
मैग्नेटाइट :- यह सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला लौह अयस्क है और इसमें 72 प्रतिशत शुद्ध लोहा मिलता है। इसके चुंबकीय गुण की वजह से ही इसे मैग्नेटाइट कहा जाता है। यह आंध्र प्रदेश, झारखंड, गोवा, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में पाया जाता है।
हेमाटाइट :- हेमाटाइट में 60 से 70 प्रतिशत तक शुद्ध लोहा होता है। 80 प्रतिशत हेमाटाइट आंध्र प्रदेश, झारखंड और उड़ीसा में संग्रहित हैं और ये छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी पाए जाते हैं।
लिमोनाईट :- इसमें 40 फीसदी से 60 फीसदी शुद्ध आयरन होता है। यह पीले या हल्के भूरे रंग का होता है। रानीगंज कोयला क्षेत्र में दामुड़ा श्रृंखला, उत्तराखंड में गढ़वाल, उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर और हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पाया जाता है।
साइडराइट :- इसमें कई अशुद्धियाँ होती हैं और इसमें केवल 40 से 50 प्रतिशत शुद्ध लोहा होता है। वहीं चूने की उपस्थिति के कारण यह स्वयं पिघलने लग जाते हैं।
उपरोक्त तालिका से हम यह स्पष्ट देख सकते हैं कि लौह अयस्क का उत्पादन और इसका मूल्य प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से बढ़ता आ रहा है। हालांकि देश के कई हिस्सों में लौह अयस्क की कुछ मात्रा पाई जाती है, लेकिन लौह अयस्क के संग्रह का प्रमुख हिस्सा कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में ही केंद्रित है। यह केवल छह राज्यों झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और गोवा में केंद्रित है, जहाँ भारत के कुल संग्रह का 95 प्रतिशत हिस्सा पाया जाता है। इन राज्यों के अलावा कम मात्रा में लौह अयस्क का उत्पादन भी किया जाता है, जिनमें से उत्तर प्रदेश राज्य का मिर्जापुर भी शामिल है।
वहीं कई चुनौतियों ने भारत में लौह अयस्क के खनन और अन्वेषण गतिविधियों में कुल निवेश को सीमित कर दिया है। ये चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
कीमतों में अस्थिरता: लौह अयस्क की कीमतें अस्थिर और उतार-चढ़ाव वाली होती हैं, जो मुख्य रूप से मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती हैं। इस वजह से खनन कंपनियों के लिए अस्थिर वातावरण में काम करना मुश्किल हो जाता है।
कम सरकारी खर्च: भारत में अन्य लौह अयस्क उत्पादक देशों की तुलना में खनन क्षेत्र में सरकारी खर्च बहुत कम होता है। इस विभाग के विकास में वृद्धि के लिए जांच पड़ताल पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
खनन प्रतिबंध :- गोवा और कर्नाटक राज्यों में खनन प्रतिबंध कई कारणों, जैसे नियमों का पालन ना करने की वजह से हुआ है। जिसने बेरोजगारी और सरकार के लिए राजस्व स्रोत कम होने के साथ-साथ विभिन्न पहलुओं पर गंभीर प्रभाव डाला है। फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में सभी लौह अयस्क खनन पट्टों को रद्द कर दिया था।
स्थानीय लोगों का विरोध :- खनन के लिए स्थानीय लोगों से भूमि प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। वहीं कंपनी को वन भूमि में कटाई के संबंध में, भूमि अधिग्रहण और लौह अयस्क के लिए पूर्वेक्षण लाइसेंस के लिए कई विनियामक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इससे लौह अयस्क की अपूर्ति भी प्रभावित होती है।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2JcKXmn
2. https://bit.ly/2UCkcJw
3. https://bit.ly/2HxC3gW
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