पृथ्वी की प्रकृति के बारे में आप कितना जानते है, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी है? क्या ये अंदर से एक गेंद की तरह ठोस है या खोखली जिस पर चट्टानों की एक मोटी परत व्यवस्थित है? दरअसल पृथ्वी की आंतरिक संरचना ठोस है जिसे कई परतों में विभाजित किया गया है। भूपतल पर होने वाली समस्त क्रियाएं आंतरिक संरचना के द्वारा ही निर्धारित होती है। अब आपके मन में ये प्रश्न जरूर उठ रहा होगा की यह कैसे पता लगाया होगा कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी है, आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप से देखना तो असम्भव है? तो चलिये जानते है पृथ्वी को किस आधार पर और कितनी परतों में बांटा गया है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी हमें भू-भौतिकी के सिद्धांतो, भूकम्पीय तंरगों के वेग, गति तथा पदार्थों का घनत्व आदि के अध्ययन से होती है। इस आधार पर पृथ्वी को सतह से केंद्र तक तीन मुख्य संरचनात्मक परतों में विभाजित किया जाता है: भूपर्पटी, प्रावार, कोर।
(1) भूपर्पटी:
भूपर्पटी पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जिसकी औसत गहराई 5-70 किलोमीटर (3.1–43.5 मील) तक है। यह परत अवसादी चट्टानों से निर्मित है। इस परत का संगठन सिलिका, फेल्सफर तथा मैग्नीशियम के तत्वों से युक्त है, इस परत के नीचे पृथ्वी की संरचना को निम्न 2 विभागों में बांटा गया है-
सियाल (SIAL)- भूपर्पटी की प्रथम परत को सियाल के नाम से सम्बोधित किया है। जिसे ‘सि’(SI) सिलिका (Silica) (लगभग 70) प्रतिशत) तथा 'अल' (AL) ऐलुमिनियम के लिए प्रयुक्त शब्दों से बनाया गया है। ‘सिलिका’तथा ‘अल्युमिनियम’दोनों पदार्थ इस परत में अधिक मात्रा में मिलते हैं। इस परत का घनत्व 2.7 है। इस भाग की प्रमुख चट्टानें ग्रेनाइट हैं। इसके नीचे की परत को सीमा कहा जाता है और सियाल से लगभग 11 किमी नीचे कोनार्ड असातत्य पाई जाती है जो सिया और सीमा को अलग करती है।
सीमा (SIMA)- सियाल परत के नीचे सीमा परत पायी जाती है। इस आवरण का रासायनिक संगठन ‘सी' (SI) सिलिका और ‘मा’(MA) मैग्नीशियम खनिजों के द्वारा होता है। इस परत में क्षारीय पदार्थों की अधिकता पायी जाती है। इस भाग में बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों की अधिकता पायी जाती है। इस परत के नीचे मोहरोविक असातत्य पाई जाती है जो सीमा एवं ऊपरी प्रावार को अलग करती है। परंतु महासागरीय भूपर्पटी की सीमा परत और ऊपरी प्रावार को अलग, अतिमैफिक संचित और विवर्तनित हार्जबुर्गाइड के बीच एक रासायनिक असातत्य करती है। ऊपरी प्रावार और भूपर्पटी मिलकर स्थलमंडल बनता है।
भूपर्पटी दो प्रकार की होती है: सागरीय भूपर्पटी और महाद्वीपीय भूपर्पटी।
सागरीय भूपर्पटी: विश्व धरातल के 2/3 भाग पर सागरीय भूपर्पटी का विस्तार है। यह सागरीय क्रस्ट सभी स्थानों पर संरचना की दृष्टि से समान पायी जाती है। इस क्रस्ट की मोटाई 6-11 किलोमीटर मानी गयी है। यह पतली और भारी होती है क्योंकि यह ज्यादातर ज्वालामुखी चट्टानों से बनी होती है जिनमें उच्च घनत्व होता है।
महाद्वीपीय भूपर्पटी: इसकी औसत मोटाई 5-70 किमी होती है। इस भूपर्पटी की संरचना एक समान नहीं है। उसकी ऊपरी परत अवसादी, आग्नेय तथा रूपान्तरित चट्टानों से निर्मित है। यह परत मोटी और हल्की होती है क्योंकि यह कम घनत्व वाली चट्टानों से बनी होती है।
(2) प्रावार:
प्रावार पृथ्वी की सबसे मोटी परत है जिसकी मोटाई 2,900 किमी है। यह पृथ्वी के आयतन का लगभग 80% भाग बनाती है। प्रावार परत सिलिकेट चट्टानों से बनी होती है जो कि आयरन और मैग्नीशियम से भरपूर होती हैं। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है। ऊपरी प्रावार और निचली प्रावार तथा इन दोनों को एक अंतरिम क्षेत्र द्वारा अलग किया जाता है और इन दोनों परतों के भीतर ऊष्मा संवहन धाराएं प्रवाहित होती रहती है। ऊपरी प्रावार में अर्ध-ठोस चट्टान जिसे मैग्मा कहा जाता है ऊष्मा संवहन धाराओं के कारण धीरे-धीरे बहता है। यह तापमान में 1,000 डिग्री सेल्सियस से कम है। निचली प्रावार परत दाब के कारण ठोस होती है और 1,000-3,500 डिग्री सेल्सियस के बीच इसका तापमान होता है। भूपर्पटी एवं ऊपरी प्रावार की लगभग 100 कि०मी० की सम्मिलित भूपरत सामान्यतः प्लेट कहलाती है। बड़े आकार की सात प्लेटों के अतिरिक्त 12 छोटे आकार वाली प्लेटें है, जो निम्न प्रावार के ऊपर तैरती हैं।
(3) कोर:
पहले ये माना जाता था की पृथ्वी का औसत घनत्व 5.515 ग्राम/सेमी3 है और सतह का औसत घनत्व केवल 3.0 ग्राम/सेमी3 के आसपास है, इसलिए पृथ्वी की कोर ठोस पदार्थ से बनी हैं। फिर चार्ल्स हटन ने अपनी 1778 की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि पृथ्वी का आंतरिक भाग धात्विक है, इसके बाद 1936 में इंगे लेहमैन ने अनुप्रस्थ भूकंपीय तरंगों के माध्यम से खोज की और बताया कि कोर दो भागों में विभक्त है। उन्होंने बताया की आंतरिक कोर लोहे और कुछ निकल से बना है जो कि ठोस है।
इस प्रकार कोर को दो भागों में बांटा गया: बाह्य कोर (तरल) और आंतरिक कोर (ठोस)।
बाह्य कोर (तरल): निचले प्रावार एवं बाह्य कोर को गुटेनबर्ग असातत्य के द्वारा अलग किया जाता है। बाहरी कोर तरल लोहे और निकल से बना है और इसका तापमान 3,500-4,000 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। बाह्य कोर का विस्तार पृथ्वी के भीतर, धरातल से 2,900 किलोमीटर तक माना है। जैसे ही ये लोहे और निकल से निर्मित तरल धातु चारों ओर घूमती है, संवहन धाराएं उत्पन्न होने लगती है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करती है। लेहमैन असातत्य द्वारा बाह्य एवं आंतरिक कोर को अलग किया जाता है।
आंतरिक कोर (ठोस): आंतरिक कोर का तापमान 4,000-4,700 डिग्री सेल्सियस के बीच है जोकि इसे पृथ्वी का सबसे गर्म हिस्सा बनाता है। ये हिस्सा सूर्य की सतह के समान गर्म हैं। आंतरिक कोर ठोस लोहे और निकल से बना होता है जो इतने दाब में होते हैं कि वे पिघल नहीं सकते। इस परत की मोटाई 1,200 किमी है, और इसके भीतर भारी रेडियोधर्मी तत्व तीव्र ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Structure_of_the_Earth
2. https://bit.ly/2Orkxec
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