ऊपर दिए गए दो चित्र- पहला चित्र मसूरी, गाजियाबाद जिले के अंतर्गत का है और दूसरा शाहबाद, रामपुर जिले का है| जैसे की हम देख सकते है की कैसे यह दोनों इमारतें अंग्रेजी वास्तुकला को दर्शाती हैं।
18 वीं - 19 वीं सदी मे जब ब्रिटिश व अन्य युरोपीय वास्तुकला एवं रोमन-गोथिक शैली का आगमन भारत मे हुआ, तब रोमन-गोथिक शैली के साथ भारत मे प्रचलित तुर्क-मुग़ल का मिश्रण हुआ और इस नयी शैली का उदय हुआ जिसे “इंडो-सारासेनिक” शैली के नाम से जाना जाता है। इसका प्रमाण यह दोनों इमारतें है| गुम्बदों, झरोखों, मेहराबों, मिनारों, छतरियों, छज्जों, कंगूरों व खम्बों के विशिष्ट होने के कारण यह अपने आप में सुन्दरता की मिसाल हैं। इसका उदहारण कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है जैसे - दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चैन्नई, अजमेर, इलाहाबाद, मेरठ, रामपुर, लखनऊ इत्यादि।
मसूरी का बंगला अंग्रेजों के ज़माने में सर जॉन माइकल को तोहफे के रूप में; दिल्ली में यमुना के ऊपर लोहे का पुल बनाने के लिए, मिला था जिसे मसूरी गाँव के एक व्यवसायीक मुस्लिम परिवार ने साढ़े तीन लाख रुपये में 1967 में खरीद लिया था, आज यहाँ इनकी तीसरी पीढ़ी रह रही है| यह दोनों इमारतें इंडो-सारासेनिक की एक उदार मिश्रण (भारतीय,इस्लामी और यूरोपी वास्तुकला) शैली को दर्शाती हैं|
1.हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन आर्किटेक्चर – जेम्स फर्गुसन