रामपुरियों की हमेशा से ही भोजन में पहली पसंद मांसाहारी भोजन रहा है, फिर चाहे वह चिकन हो, मटन हो या मछली, ये सभी रामपुर में भोज्य पदार्थों के रूप में बहुत पसंद किये जाते हैं। लेकिन यूपी में बूचड़खानों के संचालन से संबंधित अस्थिरता के कारण कई तरह के मांसाहारी भोजन के विकल्प उपलब्ध होते जा रहे हैं, जिनका स्वाद मांसाहारी व्यंजनों जैसा ही होता है। इन व्यंजनों को आम भाषा में ‘मॉक मीट’ कहा जाता है। क्या आपने कभी मॉक मीट के बारे में सुना है। रामपुर के मांसाहारी समुदायों को इसे एक बार जरूर खाना चाहिये। मांसाहारी भोजन का विकल्प तलाश रहे लोगों के बीच ऐसे व्यंजन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जो शाकाहारी होने के बावजूद स्वाद और पोषक तत्वों के मामले में मांसाहारी भोजन जैसे लगते हैं।
असल में मॉक मीट सोया या वनस्पति प्रोटीन (टीवीपी) से बना होता है, जो स्वाद में मांसाहारी भोजन जैसा लगता है। वर्तमान में मॉक मीट परोसने का चलन बढ़ रहा है। यह केवल एक मांसाहारी भोजन का विकल्प ही नहीं है, बल्कि स्वस्थ भोजन का भी एक अच्छा विकल्प है क्योंकि यह प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरा हुआ है। जो लोग वर्षों तक मांस खाने के बाद शाकाहारी बनना चाहते हैं उनके लिए मॉक मीट अच्छा विकल्प है। इतना ही नहीं वे लोग जो नैतिक कारणों से मांस नहीं खाते लेकिन इसे खाने का अनुभव लेना चाहते हैं उनके लिए भी मॉक मीट अच्छा विकल्प है। मॉक मीट को हर स्वाद के मांस के रूप में बनाया जा सकता है। मॉक फिश स्वाद में असली मछली के समान ही होता है इसी तरह से मॉक मटन भी खाने में मटन जैसा ही लगता है। इनता ही नहीं ये मॉक मीट चिकन, झींगे आदि के स्वाद में भी उपलब्ध होता है।
मॉक मीट और असली मांस में अंतर बताना बहुत मुश्किल है ये वनस्पति प्रोटीन स्वाद में एकदम असली मांस के समान होते हैं। बाजार अनुसंधान फर्म मिन्टेल के अनुसार 2012 में, मॉक मीट के उत्पादों की बिक्री 55.3 करोड़ तक थी। अधिकांश मॉक मीट उत्पादों के बनाने की प्रक्रिया सोया प्रोटीन या वनस्पति प्रोटीन (टीवीपी) को पाउडर बना कर शुरू की जाती है। मॉक मीट को बनाने में सबसे बड़ी चुनौती उसकी रचना या बनावट होती है क्योंकि सोया प्रोटीन गोलाकार होता है जबकि वास्तविक मांस रेशेदार होता है। इसलिए खाद्य निर्माताओं को सोया की आणविक संरचना को बदलना पड़ता है। इसके लिये खाद्य निर्माताओं को सोया प्रोटीन को गर्मी, एसिड या एक विलायक में रखा जाता है और फिर इस मिश्रण को खाद्य उत्सारित्र में डाल कर नयी आकृति प्रदान की जाती है।
लेकिन ये एक मात्र तरीका नहीं है जिससे मॉक मीट तैयार किया जाता है। कुछ को गेहूं के ग्लूटेन से भी तैयार किया जाता है तथा कुछ को एक दोहरी-किण्वन प्रक्रिया से बनाया जाता है। अहमीसा फूड्स के यास्मीन और हरीश जादवानी ने 2009 में दिल्ली में एक मॉक मीट संयंत्र की स्थापना की थी, वे कहते है कि “वे अभी भी इसे भारतीयों के लिये बेहतर बनाने के लिये काम कर रहे हैं।” आज कई रेस्टोरेंट मॉक मीट से बने व्यंजनों की पेशकश कर रहे हैं। ठाणे में आईटीसी की एक सहायक कंपनी फॉर्च्यून पार्क लेकसिटी के शेफ अंशुल सेठी कहते हैं मॉक मीट को सोया बनाया जाता है, यह अलग-अलग स्वाद में उपलब्ध भी हैं। हमारा रेस्टोरेंट भी मॉक चिकन से बने व्यंजन प्रदान करता है।
संदर्भ:
1.https://www.mnn.com/food/healthy-eating/stories/how-fake-meat-is-made
2.https://bit.ly/2GHAUCT
3.https://bit.ly/2E7JzwI
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