रामपुर ना सिर्फ रामपुरी चाकू के लिये प्रसिद्ध है बल्कि स्वाद के मामले में भी बेहद समृद्ध विरासत का धनी है। यहां परंपरागत खान-पान से लेकर आधुनिक व्यंजनों की विभिन्नता उपलब्ध है। कह सकते हैं कि रामपुर का खान-पान इसके सांस्कृतिक विस्तार का एक पहलू है। यहां का पुलाव हो या बिरयानी दोनों ही रामपुरवासियों को विरासत में मिले हैं। खाद्य व्यंजनों में यहां चावल से बने पकवान रामपुरवासियों की भोजन की थाली में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कोई भी दावत, अंतिम संस्कार या प्रार्थना सभा हो, पुलाव या बिरयानी के बिना पूरी नहीं होती है।
भोजन रामपुरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और रामपुरवासी अपने याखनी पुलाव और बिरयानी से बहुत प्यार करते हैं। याखनी पुलाव जिसमें चावल, मीट और ढेर सारे भारतीय मसालों का इस्तेमाल होता है, एक ऐसा पकवान है जो मसालों की सुगंध और स्वाद से भरा होता है, यह फारसी संस्करण के करीब है, और बिरयानी रामपुरियों द्वारा उबले हुए चावल के साथ कोरमा मीट करी के मिश्रण के रूप में बनाया जाता है। घर पर कोई पार्टी हो या आम दिनों में पारिवारिक भोजन का आयोजन हों तो चावल के ये दोनों पकवानों को बनाया ही जाता है। नवाबों के समय से ही रामपुर में चावलों से बने व्यंजनों का खासा महत्व रहा है।
नवाबों के समय में रामपुर के 'खासबाग पैलेस' में एक अलग रसोई थी जिसमें चावलों के व्यंजनों को पकाने के लिये कई खानसामें रखे गये थे। नवाब होशयार जंग, जो 1918 से 1928 तक नवाब हामिद अली खान के दरबार से जुड़े रहे थे, वे अपने विवरण मसाहिदात में लिखते हैं कि रसोई में 150 रसोइये थे। ऐसे रसोइये, मुगल सम्राटों के दरबार या ईरान, तुर्की और इराक में नहीं मिलते थे। रामपुर के रजा लाइब्रेरी में भी एक दुर्लभ रामपुरी व्यंजनों की 150 साल पुरानी फ़ारसी पांडुलिपि मौजूद है। यह हस्तनिर्मित पांडुलिपियां 1870 के दशक में लिखी गई थी, जब नवाब कल्बे अली खां (1865-87) का शासन था। इन्हें व्यंजनों को पकाने के लिए अभिलेख के रूप में रखा गया है। इसमें लगभग 200 व्यंजनों की विधि लिखी हुई हैं।
यहां का पुलाव शाहजहानी संभवतः दिल्ली की रसोई से रामपुर की रसोई में आने वाला व्यंजन था। क्योंकि 1857 के विद्रोह और राजवंशों के पतन के बाद रामपुर में अन्य कलाकारों की तरह दिल्ली और लखनऊ के कई रसोइयों ने रामपुर में रोजगार मांगा था, तो कहा जा सकता है शायद पुलाव शाहजहानी रामपुर में, बाहर से आये व्यंजनों में से एक है। वर्तमान में मूल यखनी पुलाव बड़े ही मौलिक तरीके से बनाया जाता है जबकि रजा लाइब्रेरी की हस्तनिर्मित पांडुलिपियों में इसकी विधि बहुत ही जटिल है। इसमें भव्य पुलाव शाहजहानी से लेकर मीठा पुलाव, मुतंजन पुलाव, दूध और चीनी से बना शीर शक्कर पुलाव, इमली पुलाव आदि के बारे में जानकारी मिलती है। इनमें से अधिकांश के बारे में तो आपने शायद सुना ही नहीं होगा, ये चावल के व्यंजन रामपुर के गौरवशाली भोजन के इतिहास का एक हिस्सा रहे हैं।
संदर्भ:
1.https://www.dailyo.in/arts/the-quest-for-rampuri-pulao-shahjahani/story/1/29094.html
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