विभाजन किसी देश की भूमि का ही नहीं होता, विभाजन लोगों की भावनाओं का भी होता है। विभाजन का दर्द वो ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। बंटवारे के दौरान जिन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, अपनों को खोने का दर्द आज भी उन्हें सताता रहता है। आइए बताते हैं ऐसे ही कुछ इंडो पाक रोहिला परिवारों की दास्तां।
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के सत्तर साल बाद मुनीज़ा नक़वी का परिवार दो राज्यों में बंट गया। नक़वी की दादी फहमीदा हसन जैदी (86 वर्ष) नई दिल्ली में रहती हैं। हालांकि उनकी तीन बहने और चार भाई पाकिस्तान के शहरों में रहते हैं। कठिन वीजा नियमों ने यात्राओं को जटिल बना दिया है, जिस कारण जैदी अपने परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने में असमर्थ हो गई, उनके परिवार को उनके उत्तर प्रदेश में बिताए गये बचपन की याद एक साथ होने का अहसास दिलाती है।
नकवी की दादी बताती है कि पहले यात्रा अपेक्षाकृत आसान थी, क्योंकि उनकी छोटी बहन 60 के दशक में तीन साल तक उनके साथ रही थी। लेकिन नकवी के परिवार ने विभाजन के बाद हुई हिंसा और रक्तपात से पाकिस्तान की ओर यात्रा नहीं करी थी। जबकि 70 के दशक के मध्य में यात्रा थोड़ी आसान हुई लेकिन उतनी नहीं जितनी पहले थी, पहले दोनों देशों के बीच कोई पर्यटक वीजा नहीं था, उस समय वीजा के साथ विभाजित परिवार एक महीने के लिए प्रत्येक वर्ष एक दूसरे के देशों में आ सकते थे। जैदी बताती हैं कि यह दूरी काफी दर्दनाक थी। वहीं जैदी अपनी बहनों और माँ से कई सालों बाद मिल पायी थी।
वहीं एक घटना रोहिला परिवार की नजीबाबाद की है। नजीबाबाद के क्षेत्र मराठों के साथ लड़ाई के बाद धीरे-धीरे छोटे हो गए थे कि तभी 1857 के विद्रोह के बाद आखिरी नवाब महमूद खान के पास सिर्फ नजीबाबाद का जिला मिला। महमूद खान ने विद्रोहियों के साथ शामिल होकर कई ब्रिटिश की हत्या कर नेपाल चले गए। वह जाने से पहले नजीबाबाद को अपने भाई, जलालुद्दीन खान को सौंप गए। जलालुद्दीन खान विद्रोह में शामिल नहीं हुए, लेकिन ब्रिटिश के राज्य पर कब्जा कर लेने के बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनकी पत्नी दो बेटे अजीमुद्दीन खान और हमीदुज्जफर खान, और तीन बेटियाँ मुरादाबाद, अजीमुद्दीन खान के मामा अली असगर खान, रामपुर की सेना में एक जनरल के यहां चले गए। अजीमुद्दीन खान रामपुर की सेना में एक अधिकारी बने और जल्द ही अपने मामा के स्थान पर जनरल और सिपाह सालार (कमांडर-इन-चीफ) बन गए। उन्हें रीजेंसी काउंसिल का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था।
जनरल अज़ीमुद्दीन कम समय में राज्य के प्रभारी बन गए थे। क्योंकि उन्होंने उन स्कूलों का निर्माण किया जहाँ अंग्रेजी पढ़ाई की जाती थी और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उन्होंने नहरों, अस्पतालों और सड़कों का भी निर्माण किया। रामपुर के रूढ़िवादी रोहिला पठानों द्वारा उनकी रामपुर परिवारों के बच्चों को पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने की इच्छा को पुरा नहीं होने दिया गया और साथ ही आस-पास के राज्यों में ब्रिटिश अधिकारियों के साथ उनकी दोस्ती गलत मानी जाती थी। वहीं उनके खिलाफ मुख्य शिकायत यह थी कि उन्होंने उधार लिए गए बड़े ऋणों को नहीं दिया था। ईर्ष्या और घृणा के कारण उनके खिलाफ साजिश रचने लगी और 37 साल की उम्र में उनको गोली मारकर हत्या करवा दी गई थी।
अब हम आपको बताते हैं मशहूर ज़ोहरा सहगल के बारे में, ज़ोहरा सहगल का संबंध मूलतः रामपुर के शाही घराने से था। इन्होंने अपनी शिक्षा लाहौर में पूर्ण की तथा एक नृत्यांगना के रूप में अपने भविष्य की शुरूआत की, वहीं आगे चलकर इन्होंने थियेटर और फिल्म जगत में काफी नाम कमाया। 1930 और 40 के दशक में अपनी शर्तों पर अपना जीवन व्यतीत करने वाली शेरनी ज़ोहरा सहगल के जीवन पर भी विभाजन का प्रभाव देखने को मिला। ज़ोहरा सहगल का विवाह कमलेश्वर सहगल से हुआ, इन दोनों ने मिलकर लाहौर में जोरेश डांस इंस्टिट्यूट की स्थापना की किंतु विभाजन के बाद इन दोनों को मुंबई में बसना पड़ा जिस कारण यह इंस्टिट्यूट जल्द ही बंद हो गया। यह इनके जीवन का बहुत कठिन समय था, विभाजन के कारण यह अपने परिवार से बिछड़ गयी साथ ही इनके अपने भाई बहन जिसमें इनकी खुद की बहन उज़रा भी पाकिस्तान जाने का निर्णय ले चुके थे। 1959 में इनके पति ने आत्महत्या कर ली इस घटना ने ज़ोहरा के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। 1962 में यह अपने छोटे बच्चों के साथ लंदन चलीं गयीं, जहां इन्होंने फिल्म, टीवी और रेडियो में काम किया। भारत लौटने के बाद इन्होंने भारतीय फिल्म जगत में पुनः कदम रखा।
संदर्भ:
1.https://indianexpress.com/article/india/family-bonds-survive-india-pakistan-split-but-for-how-long-india-pakistan-independence-day-partition-stories-india-pakistan-partition-4791791/
2.https://goo.gl/XSGc4h
3.http://hindustaniawaaz-rakhshanda.blogspot.com/2012/07/fatty-biography-of-zohra-segal.html
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