रोहिलखण्‍ड से हुआ भारत में व्‍यापक रूप से फैले मेथोडिस्ट मिशन का प्रारंभ

रामपुर

 26-12-2018 10:00 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

भारत में ईसाई धर्म के अनुयायियों का एक बड़ा समुदाय है, विशेषकर दक्षिण भारत में। उत्‍तर भारत में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है, जिसकी शुरूआत औपनिवेशिक काल के दौरान हुयी। इसी कारण लगभग संपूर्ण भारत में चर्च देखने को मिलते हैं, इनमें से एक प्रमुख चर्च है मेथोडिस्ट चर्च जो प्रमुखतः प्रोटेस्टेंट ईसाई संप्रदाय से संबंधित है जिसका केंद्र मुंबई में है। उत्‍तर भारत के चर्च और दक्षिण भारत के चर्च कुछ मेथोडिस्ट गिरजाघरों के विलय से ही बने थे। यह चर्चों की विश्व परिषद, एशिया का ईसाई सम्मेलन, भारत में चर्चों की राष्ट्रीय परिषद और विश्व मेथोडिस्ट परिषद का सदस्य भी है।

भारत में अमेरिका के मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च (Methodist Episcopal Church) ने 1856 मेथोडिस्ट मिशन (Methodist Mission) की शुरूआत की। जिसके लिए अमेरिका के विलियम बटलर भारत आये तथा अपने कार्य के लिए इन्‍होंने अवध और रोहिलखण्‍ड का चयन किया। लखनऊ में अनुकुलित परिस्थिति ना होने के कारण इन्‍होंने बरेली से अपना कार्य प्रारंभ किया। विद्रोह के दौरान इनके कार्य में थोड़ा अवरूद्ध उत्‍पन्‍न हुआ लेकिन विद्रोह के बाद इन्‍होंने पुनः बरेली से अपना मिशन शुरू किया तथा उसे भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों में फैलाया।

1864 तक इनका मिशन अवध, रोहिलखण्‍ड, गढ़वाल, कुमाऊं आदि में व्‍यापक रूप से फैल गया था। 1876 तक मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च के सुसमाचार और शैक्षिक पद्धतियां यहां प्रसारित कर दी गयी थीं। देश के विभिन्‍न भागों में चर्च की स्‍थापना की गयी तथा चर्च के नेतृत्‍व में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पुनरुद्धार बैठकों का आयोजन किया गया, जिसके लिए 1870 में मिशन के प्रमुख जेम्स एम. थोबर्न ने प्रचारक विलियम टेलर को भारत आने का न्‍यौता दिया। 1873 में विलियम टेलर द्वारा स्‍थापित किये गये चर्चों को बॉम्‍बे-बंगाल-मिशन में शामिल किया गया। 1871 और 1900 के बीच मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में एक राष्ट्रीय चर्च के रूप में उभरा, जिसमें बारह भाषाओं में काम किया गया, मनीला से क्‍यूटा तक और लाहौर से मद्रास तक यह फैला हुआ था तथा इसमें ईसाई समुदाय 1,835 से बढ़कर 1,11,654 हो गया।


1904 में इस क्षेत्र को फिर से केंद्रीय प्रांत मिशन सम्मेलन के संगठन द्वारा उप-विभाजित किया गया था, जिसके बाद पहले बर्मा के काम को अलग कर इसे मिशन सम्मेलन के रूप में आयोजित किया गया। 1920 में मेथोडिस्ट मिशनरी सोसाइटी का आयोजन भारत में मिशनरी कार्यों की निगरानी के लिए किया गया। 1921 में दो वार्षिक सम्मेलन, लखनऊ और गुजरात में आयोजित किये गये और क्षेत्र का एक और विभाजन 1922 में हुआ जब सिंधु नदी वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। 1925 में हैदराबाद वार्षिक सम्मेलन को दक्षिण भारत वार्षिक सम्मेलन से अलग किया गया था। 1956 में आगरा वार्षिक सम्मेलन को दिल्ली वार्षिक सम्मेलन से और मुरादाबाद वार्षिक सम्मेलन को उत्तर भारत वार्षिक सम्मेलन से अलग किया गया। 1960 में करांची अल्‍पकालिक वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस प्रकार 1865 से 1960 तक 95 वर्षों में, पूरे दक्षिणी एशिया को समेटते हुए भारत में यह सम्‍मेलन 1 से 13 में परिवर्तित हो गया। इस अवधि में मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च का कार्य लगभग पूरे भारत में फैल गया। 1981 में भारत में मेथोडिस्ट चर्च को यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च के संबंध में ‘स्वायत्त संबद्ध’ चर्च के रूप में स्थापित किया गया था।

मेथोडिस्ट चर्च स्वयं को विश्‍व स्‍तर पर ईसाई के निकाय के रूप में स्‍वीकारते हैं। इनका उद्देश्‍य यीशु मसीह में दैवत्‍व के प्रेम की गवाही को सभी लोगों तक पहुंचाना है तथा उन्‍हें यीशु का शिष्‍य बनाना है। एम.सी.आई. शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में एक अहम भूमिका निभा रहा है, इसके द्वारा लगभग 102 बोर्डिंग स्कूल और 155 ग्रामीण स्कूल चलाए जा रहे हैं, जिसमें 60,000 से ज्यादा बच्चे नामांकन हो रखा है। 6,540 लड़कों और लड़कियों के लिए लगभग 89 आवासीय छात्रावासों की भी व्‍यवस्‍था की गयी है साथ ही इन्‍होंने 25 अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों का भी निर्माण किया है। इनके द्वारा देश में कई समाज कल्याण और विकास कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं।

यह सर्वविदित है कि रामपुर एक मुस्लिम बाहुल्‍य वाला शहर है, किंतु फिर भी यहां अन्‍य धर्मों के पूजा स्‍थल देखने को मिल जाते हैं। जिसमें रामपुर का क्राइस्ट मैथोडिस्ट चर्च भी शामिल है इनके द्वारा यहां आत्मिक जागृति प्रार्थना सभा और ऐसी एनी धार्मिक सभाओं का भी आयोजन किया जाता है। इस चर्च में लोग सामूहिक रूप से एकत्रित होकर प्रार्थना सभा भी करते हैं।

संदर्भ:
1.https://bit.ly/2VawsBB
2.https://bit.ly/2BIjulP
3.https://bit.ly/2GHWgSq
4.https://www.youtube.com/watch?v=W0kjHf27nMM
5.https://goo.gl/918HvA



RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id