उत्तर प्रदेश का विवरण चिकनकारी के बिना अधुरा है| लखनऊ की शान चिकनकारी का काम – चौक की पुरानी गलियों से ले कर हजरतगंज तक और गोमती नगर के नए बने बजारों तक, कबाब के साथ-साथ चिकनकारी भी हर जगह दिखाई देती है| छोटे बड़े दुकानों में चिकनकारी के कपडे यहाँ के बाजारों की शोभा बढ़ाते हैं।
उजले कपड़ो पर उजले धागे के काम से शुरू हुआ चिकनकारी, लम्बे वर्षों से भारतीय हस्तकला का आकर्षक और महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहा है| नूरजहाँ जब अपने पति जहाँगीर के लिए ईद के अवसर पर टोपी बना रहीं थी तो उसपर धागे की कढ़ाई करते हुए उन्हें यह विचार आया की ऐसा ही काम कपड़ों पर भी किया जा सकता है, और जल्द ही चिकनकारी के काम ने एक बड़ी ऊंचाई प्राप्त की।
एक समय था जब चिकनकारी केवल मर्दों का कार्य था, लेकिन 19 वीं सदी में चिकनकारी के काम में काफी गिरावट आई और यह कार्य औरतों ने भी करना शुरू कर दिया| इसका परिणाम यह निकला की आज मर्दों से ज्यादा औरतें चिकनकारी की कारीगरी करती हैं और माहिर हैं। बीते सालों में चिकनकारी के काम में काफी बदलाव आया है। कढ़ाई करने के लिए ठप्पों के जरिए रचनायें बनाई जाती हैं और उसपर अलग-अलग तरह की कढ़ाई की जाती है (पहले चित्र में इसके कुछ प्रकार देखे)| चिकनकारी की कढ़ाई अलग अलग प्रकार की होती है, जो की रचनाओं और कपड़ों के प्रकार पर निर्भर करती है| वैसे तो यह काफी प्रकार की होती है, लेकिन इनको 2 भागों में बाटा जा सकता है – पहला समतल / चपटा होता है और दूसरा उभरा हुआ|
कारीगरों के हिसाब से चिकनकारी के लगभग 132 तरह के टांके होते है| आज के समय में चिकनकारी का काम अत्यंत प्रसिद्ध हो गया है| यह ना ही कपड़ों की खूबसूरती में चार चाँद लगाता है बल्कि औरतों को रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता भी प्रदान करता है| कपड़ों के विपरीत रंग के धागे से चिकनकारी का काम और ऐप्लीक के काम से चिकनकारी में काफी विविधिताएँ आई हैं|
1. तानाबाना- टेक्सटाइल्स ऑफ़ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल्स, भारत सरकार
2. आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया – इले कूपर , जॉन गिल्लो
3. हेंडीक्राफ्ट ऑफ़ इंडिया – कमलादेवी चट्टोपाध्याय
4. टेक्सटाइल ट्रेल इन उत्तर प्रदेश (ट्रेवल गाइड) – उत्तर प्रदेश टूरिज्म