रुहेलखण्ड को शुरूआत से इस नाम से नहीं जाना जाता था, महाभारत के समय में इसे मध्यदेश के नाम से जाना जाता था और फिर ब्रिटिश काल में इस क्षेत्र का नाम रुहेलखण्ड पड़ा। यह क्षेत्र राजनैतिक रूप से अत्यंत मजबूत था इसी कारण से यहां पर हमेशा से ही अपना-अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये लोगों में होड़ लगी रहती थी। कठेरिया राजपूतों से लेकर ब्रिटिशों और अफगानियों तक ने यहां पर राज किया है, और इसके लिये उन्होनें कई युद्धों के माध्यम से ना जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतारा है। आज हम ऐसे ही एक युद्ध और उससे जुड़ी घटनाओं के बारे में जानेंगे जो ब्रिटिशों और रुहेलखण्ड के तत्कालीन रोहिल्ला नवाब गुलाम मोहम्मद खान के बीच हुआ था। जिसमें रोहिल्ला को हार का सामना करना पड़ा था।
1774 में, प्रथम रोहिल्ला युद्ध के अंत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समर्थन से रामपुर के नवाब के रूप में फैजुल्ला खान को चुना गया था। 1794 में, फैजुल्ला खान की मृत्यु हो गई जिसके पश्चात उनके बड़े बेटे मोहम्मद अली रामपुर के नवाब बने। परंतु वे अतिसंवेदनशील और गुस्सैल स्वभाव के थे जिस कारण वे जल्द ही लोगों की आंखों में खटकने लगे। थोड़े समय बाद उनके छोटे भाई गुलाम मोहम्मद ने सेना के कई प्रमुख अधिकारियों के साथ मिलकर कूटनीति बनाई और मोहम्मद अली की हत्या करवा दी और राज्य का कब्ज़ा कर लिया। परंतु ब्रिटिशों ने उनके शासन पर विरोध जाताया और उनके विरूद्ध कार्यवाही और सजा देने के लिये जनरल एबरक्रॉम्बी के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना को भेजा गया। यह सुन कर गुलाम मोहम्मद नें 25,000 सैन्य दल को इकट्ठा किया और बरेली की तरफ चले गए और इसके बाद 24 अक्टूबर, 1794 को, रोहिल्ला ने भितौरा में अंग्रेजों पर हमला किया।
ईस्ट इंडिया कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार युद्ध से पहले, अक्टूबर के चौथे सप्ताह तक रोहिल्ला सेना में 25000 पुरुष शामिल हो गये थे। लेकिन उसके सैनिकों ने नियमित अपवाद के साथ अनुशासन और प्रशिक्षण में कमी भी थी, इसके अलावा, सेना के एक बड़े भाग में कमलजई अफगानी शामिल थें, जिनमें अभी भी नवाब के परिवार के प्रति वफादारी बरकरार थी। कमलजई के प्रमुख दिलेर खान कमाल्जाई वास्तव में, गुप्त रूप से अवध के नवाब के साथ समझौता कर चुके थें, दरअसल वे चाहते थे की मोहम्मद अली खान के पुत्र अगले नवाब बने। इस बात को जानने के बाद गुलाम मोहम्मद खान और सैन्य अधिकारियों ने दिलेर खान को बंदी बनाना चाहा परंतु उनकी सेना के एक बड़े भाग में कमलजई अफगानी भी शामिल थे जिस कारण वे ऐसा नहीं कर पाये। स्पष्ट दिखाई दे रहा था की गुलाम मोहम्मद खान के युद्ध को संचालित करने के सभी प्रयास विफल हो रहे थे, परंतु फिर भी गुलाम मोहम्मद खान में आजादी और अपनी प्रतिष्ठा की भावना जबरदस्त थी। उन्होंने अपनी परिस्थिति से अवगत होने के बावजूद भी युद्ध की तैयारी जारी रखी।
इस युद्ध में ब्रिटिशों के 600 लोगों और 14 ब्रिटिश अधिकारीयों की जान चली गयी परंतु फिर भी ब्रिटिशों नें रोहिल्ला को पूरी तरह से हरा दिया। इसके बाद गुलाम मोहम्मद नें जल्द ही आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें बनारस और रामपुर राज्य में हमेशा के लिये निर्वासित कर दिया गया था। उसके बाद फैजुल्ला खान ने जो जमा किया था उसका एक बड़ा भाग जब्त कर लिया गया था और कंपनी को इसका भुगतान कर दिया गया।
संदर्भ:
1.https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.131353/page/n307
2.https://www.jstor.org/stable/44146759?seq=1#page_scan_tab_contents
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Rohilkhand
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.