क़लमकारी वस्त्रों में रंग भरने की वो तकनीक है जो की ना ही आज बल्कि पिछले कई दशकों से प्रचलित है|आन्ध्र प्रदेश में दो प्रकार की क़लमकारी पाई जाती है – पहली जो की मछिलिपट्नम क़लमकारी है जिसे मुग़ल और गोलकोंडा सल्तनत से अनुमोदन मिलता था और दूसरी श्रीकलाहस्ति क़लमकारी जिसे मंदिरों द्वारा| पहली तरह की क़लमकारी में कोई धार्मिक रचनाएँ नहीं थी वही दुसरी में महाभारत और रामायण की कथाओं को कपड़ों पर रचा जाता था| क़लमकारी 16 वी और 17 वी ई. में भारत के बाहर भी काफी विख्यात थी क्यूंकि ये कपास से बने कपड़ों पर बनायी जाती थी|
क़लमकारी का प्रयोग कई जगहों में प्रसिद्ध है – राजस्थान में स्थानीय दिव्य चित्र, कृष्ण लीला इत्यादि, गुजरात में देवी का पर्दा, उड़ीसा में पटचित्र, बंगाल में सूचीपत्र इत्यादि – इन रचनाओं में क़लमकारी का प्रयोग देख सकते है| बीते सालों में क़लमकारी के काम का आधार अधिकतम कपास से बना कपड़ा होता है| अब कई नई तकनीक का आविष्कार हो गया है जिसमे क़लमकारी के साथ साथ ठप्पों द्वारा बनी रचनाएँ एक ही कपड़े पर दिखती हैं| कपड़ों पर अलग अलग चित्र बना कर रंग भरने से कपड़ों की सुन्दरता और बढ़ जाती है जिसकी शुरुआत सबसे पहले रंगे हुए कपास के कपड़ों से हुई थी| आज क़लमकारी हर तरह के कपड़ों पर होती है और इससे ना ही सिर्फ साड़ियाँ बनती है बल्कि चादर, परदे, रुमाल इत्यादि भी बनते हैं|
1. तानाबाना- टेक्सटाइल्स ऑफ़ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल्स, भारत सरकार
2. हेंडीक्राफ्ट ऑफ़ इंडिया – कमलादेवी चट्टोपाध्याय
3. टेक्सटाइल ट्रेल इन उत्तर प्रदेश (ट्रेवल गाइड) – उत्तर प्रदेश टूरिज्म