रोहिलखंड के नागरिकों में प्रसिद्ध उमर खय्याम की रुबाइयाँ

ध्वनि II - भाषाएँ
17-11-2018 02:02 PM
रोहिलखंड के नागरिकों में प्रसिद्ध उमर खय्याम की रुबाइयाँ

जीवन में अनुभव तो हर कोई हासिल करता है, किंतु उसे शब्‍दों में प्रभावी ढंग से उतारने की कला किसी-किसी में ही होती है। विश्‍व के इतिहास में विभिन्‍न क्षेत्रों में ऐसे ही कई साहित्‍यकार, कवि, इतिहासकार, गणितज्ञ, ज्योतिर्विद, दार्शनिक आदि हुए हैं जिन्‍होंने अपनी खोज, अनुभवों, दर्शनों को बड़ी ही खूबसूरती से पृष्‍ठों में उकेरा जो आज हमें अपने बीते हुए कल के विषय में बताते हैं। एक ऐसे ही फ़ारसी गणितज्ञ, ज्योतिर्विद या कहें कवि थे, उमर खय्याम (1048–1131), जो रोहिलखण्‍ड के साक्षर वर्ग के मध्‍य अत्‍यंत प्रसिद्ध हुए थे। उमर खय्याम प्रमुखतः रुबाइयाँ (चार पंक्तियों की कविता) लिखते थे। वास्‍तव में उमर अपने जीवन काल के दौरान एक कवि के रूप में नहीं बल्कि एक खगोलविद् और गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्ध थे।

लगभग एक हजार वर्ष पूर्व उमर द्वारा लिखी गयी रूबाइयों में करूणा, स्‍नेह, प्रेम, दया के भाव प्रत्‍यक्ष रूप से झलकते हैं। इनकी रूबाइयों से ज्ञात होता है कि इन्‍होंने मनुष्य की आकांक्षाओं को संसार की सीमाओं के भीतर घुटते देखा था। इसलिए इनकी ये पंक्तियाँ क्षण भर के लिए पीड़ीत मन को भी आनंदित कर देती हैं। शायद यही कारण है कि आज तक यह पढ़ी जाती हैं। उमर की रूबाइयों के सबसे पुराने साक्ष्‍य इनकी जीवनी अल-इसफ़हानी में मिलते हैं, जो संभवतः इनकी मृत्‍यु के 43 वर्ष बाद लिखी गयी।

उमर की रूबाईयों को विश्‍वस्‍तर तक ले जाने का श्रेय अंग्रेजी कवि और लेखक एडवर्ड फिट्ज़जेरल्ड को जाता है। जिन्‍होंने इनकी रूबाईयों का फारसी से अंग्रेजी में अनुवाद (1885 में) ‘रूबाइयत ऑफ उमर खय्याम’ (Rubáiyát of Omar Khayyám) किया। इन्‍होंने अपनी रचनाओं और अनुवादित लेखों को विभिन्‍न संस्‍करणों में प्रकाशित किया। रूबाइयत ऑफ उमर खय्याम में कुछ चित्रों का भी संकलन किया गया है जो निशब्‍द भावों को साफ बयां करते हैं। पिछले कुछ संग्रहों में ज्ञात 1,200-2,000 रूबाइयाँ उमर को संदर्भित करती हैं। बाद में उमर की रूबाइयों को विभिन्‍न भाषाओं में अनुवादित किया गया। उमर की रूबाइयों से भारत भी अछूता ना रहा अर्थात भारत में भी इनकी रूबाइयों का अनुवाद किया गया। भारत के सर्वश्रेष्‍ठ कवि हरिवंश राय बच्‍चन जी ने ‘खैयाम की मधुशाला’ में इसका अनुवाद किया है, जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं:

चलो चल कर बैठें उस ठौर,
बिछी जिस थल मखमल सी घास,
जहां जा श्‍स्‍य श्‍यामला भूमि,
धवल मरू के बैठी है पास ।

घनी सिर पर तरूवर की डाल,
हरी पांवों के नीचे घास,
बग़ल में मधु मदिरा का पात्र,
सामने रोटी के दो गास ।

सरस कविता की पुस्‍तक हाथ,
और सब के ऊपर तुम प्राण,
गा रही छेड़ सुरीली तान,
मझे अब मधु नंदन उद्यान ।

सुना मैंने कहते कुछ लोग,
मधुर जग पर मानव का राज,
और कुछ कहते जग से दूर,
स्‍वर्ग में ही सब सुख का साज ।

भारत के परमहंस योगानंद जी ने उमर की रूबाइयों में छिपे आध्‍यात्मिक पक्ष को ‘वाइन ऑफ द मिस्‍टीक’ (Wine of the Mystic) में उजागर करने का एक सतत प्रयास किया। जब इनके द्वारा गहनता से इन रूबाइयों का अध्‍ययन किया गया, तो इन्हें रूबाइयों के पीछे छिपे आध्‍यात्‍म के विशाल भण्‍डार का ज्ञान हुआ। रूबाइयों के पीछे छिपी अध्‍यात्‍मिकता को इन्होंने इस प्रकार समझा है:

एक रोटी के साथ टहनी के नीचे
एक मधु का पात्र, कविता की एक पुस्‍तक — और तुम
मेरे साथ इस वीरान जंगल में गायन करते हुए—
और आंनंदित करता यह सुनसान जंगल

उपरोक्‍त पंक्तियों में ध्‍यानावस्‍था को दर्शाया गया है:
जीवन रूपी वृक्ष तथा आध्‍यात्‍मिक चेतना पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए, मैं शांति की छाया में विश्राम कर रहा हूं। जिसमें प्राण जीवन को रोटी के रूप में पोषित करता है। मेरी आत्‍मा का पात्र दिव्‍य मधु के मद्यपान से पूर्णतः भर गया है। मेरा मन अनंत दिव्‍य प्रेम के काव्‍य को अनवरत पढ़ने लग गया है। इस वन की गहन शान्‍ति में मेरे मन के विकार अर्थात इच्‍छा और क्रोध का हनन हो गया है। तुम (ईश्वर) जंगल के शांत संगीत के माध्‍यम से मेरे मन में ज्ञान को उजागर कर रहे हो। यह वन भौतिक इच्‍छाओं और अभिलाषाओं से मुक्‍त है। यहां पर मैं अकेले होते हुए भी अकेला नहीं हूं। आंतरिक शांति मुझे स्‍वर्गलोक का अनुभव करा रही है।

उमर की रूबाइयों ने भारतीय रहस्‍यवाद पर लम्‍बे समय तक गहरा प्रभाव डाला है। मध्‍यकालीन भारत के शासक इरान (फारस) से जुड़े हुए थे। अर्थात् इनके मध्‍य विचारों का आदान प्रदान होना स्‍वभाविक था। भारत को सर्वप्रथम दिल्‍ली को उमर की रूबाईयों से रूबरू कराने वाले पहले व्‍यक्ति शाहजहां के फ़ारसी वज़ीर अली मर्दान खान थे। 1941 में स्‍वामी गोविंदा तीर्थ ने खय्याम रूबाईयों का अंग्रेजी अनुवाद किया, जिसमें इन्‍होंने इसके रहस्‍यों को उजागर किया।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Rubaiyat_of_Omar_Khayyam
2.http://www.geeta-kavita.com/hindi_sahitya.asp?id=532
3.https://yssofindia.org/spiritual/the-hidden-truths-in-omar-khayyam%E2%80%99s-rubaiyat
4.https://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-metroplus/when-omar-khayyam-dazzled-delhi/article3203265.ece