आपने कई विशेष सम्माननीय अवसर, व्यक्ति (राष्ट्रपती), या जवानों की शहादत इत्यादि पर बंदूकों से सलामी देते हुए देखा होगा। बंदूकों से सम्मान देने की यह परंपरा वैसे तो पश्चिमी देशों की है, किंतु आज यह विश्व के अधिंकाश भागों में देखी जाती है। भारत में बंदूक सलामी की परंपरा ब्रिटिश काल से ही प्रारंभ हुयी। ब्रिटिश राज के दौरान किसी रियासत के शासक को भारतीय राजधानी (कलकत्ता, दिल्ली) में प्रवेश के दौरान उनके सम्मान में बंदूकों की सलामी दी जाती थी। समय के साथ व्यक्ति के पद के अनुसार बंदूक की संख्या का निर्धारण किया गया अर्थात ब्रिटेन के शासक को 101 बंदूकों की सलामी दी जाती थी तथा भारत के वायसराय (Viceroy) को 31 बंदूकों की। आगे चलकर ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय रियासतों को भी बंदूक (9 से 21 तक) की सलामी दी गयी। अर्थात रियासत के शासक के सम्मान में बंदूक की सलामी दी जाने लगी।
किसी भी रियासत के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा बंदूक की सलामी मिलना अत्यंत गौरव की बात थी। सर्वप्रथम तीन रियासतों के शासकों, हैदराबाज के निज़ाम, बड़ोदा के गायकवाड़ और मैसूर के महाराजा, को 21 बंदूकों की सलामी दी गयी। स्वतंत्रता से पूर्व अविभाजित भारत को लगभग 565 रियासतों में वर्गीकृत किया गया था, जिन्हें सलाम राज्य के रूप में जाना गया। बंदूकों से सलामी देने वाले नियम का सख्ती से पालन किया गया था। कुछ रियासतों के शासकों जैसे हैदराबाद, जम्मू कश्मीर आदि के प्रथम विश्व युद्ध में रही सराहनीय भूमिका के लिए 21 बंदूकों की सलामी दी गयी। यह सम्मान व्यक्तिगत तथा स्थानीय रूप में दिया जाता था।
बंदूकों की संख्या का निर्धारण रियासत या उनके शासकों की विशेषता के आधार पर किया जाता था। हैदराबाद, मैसूर, बड़ौदा, जम्मू-कश्मीर और ग्वालियर के शासकों को 21 बंदूकों की सलामी (वंशानुगत) से नवाज़ा गया। भोपाल, इंदौर, उदयपुर, कोल्हापुर, त्रावणकोर और कलात के शासकों को 19 बंदूकों की सलामी से नवाज़ा गया। शेष अन्य में 88 को 11-17 तथा 23 को 9 बंदूकों की सलामी से नवाज़ा गया। यह सलामी ब्रिटिश राज के अधीन दक्षिण एशिया के अन्य राष्ट्र जैसे अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान आदि को भी दी गयी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गयी, लेकिन हैदराबाद में 1971 तक इसका पालन हुआ।
नवाबों की रियासत रामपुर के नवाब को भी उनकी कुशल राजनीतिक व्यवस्था के लिए 15 बंदूकों की सलामी दी गयी थी। जो आज लोगों द्वारा भुला दी गयी है। साथ ही रामपुर का झंडा और इसका राज्य चिह्न काफी रोचक है जिसे आज कई जवान रामपुरवासी नहीं पहचान पाते। इन्हें ऊपर दिए गए चित्रों में दर्शाया गया है। रामपुर की स्थापना 1775 में प्रतिभाशाली और दूरदर्शी नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा की गयी। एशिया के सबसे प्रतिष्ठित रज़ा पुस्तकालय की नींव भी इनके द्वारा रखी गयी, जिसमें आज हज़ारों पुस्तकों का संग्रह है। इसके पश्चात इनके उत्तराधिकारियों ने यहां पर शासन किया।
1840 में नवाब मुहम्मद सईद ने रामपुर में कानूनी और प्रशासनिक ढांचे को सुधारने के साथ-साथ आधुनिक सेना का भी गठन किया। इनके पुत्र मुहम्मद यूसुफ अली खान को एक आदर्श राज्य विरासत में मिल गया था। यूसुफ द्वारा 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों की सहायता की गयी जिसके लिए अंग्रेजों ने इन्हें सम्मान से नवाज़ा। रामपुर के नवाबों ने यहां के वास्तुशिल्प, शैक्षिक, सड़क, स्वच्छता, उद्योग इत्यादि की व्यवस्था को भी सुधारा। ब्रिटिश शासन के दौरान रामपुर एक आदर्श शहर के रूप में उभरा।
संदर्भ:
1.https://www.royalark.net/India/rampur.htm
2.https://www.quora.com/During-the-British-Raj-there-were-two-types-of-princely-states-salute-princely-state-and-non-salute-princely-states-in-India-What-were-the-differences-between-them-and-how-they-were-determined
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Salute_state
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