भारत एक बहुधर्मी देश है, जहां 33 करोड़ देवी देवताओं को अलग-अलग तरह से पूजा जाता है। किंतु अधिकांश धार्मिक कार्यों में एक चीज़ सामान्य होती है, वह है नारियल चढ़ाना। कोई भी शुभ कार्य क्यों न हो नारियल तोड़कर ही उसका शुभारंभ किया जाता है। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में इसे कितना पवित्र माना जाता है। बहुमुखी गुणों का धनी नारियल मात्र भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं वरन् विश्व के अनेक समुद्री तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
कुछ शोधों से ज्ञात हुआ है कि नारियल का उद्भव हजारों साल पूर्व भारत और दक्षिण एशिया वाले क्षेत्र से हुआ था। जहां से यह व्यापारियों और यात्रियों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया गया। क्योंकि इतिहास में अधिकांश यात्राएं समुद्री मार्ग से की जाती थी, तो इनका नारियल से अवगत होना स्वाभाविक था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 2000 साल पहले नारियल अरब व्यापारियों द्वारा पूर्वी अफ्रिका में ले जाया गया था, जिसे इनके द्वारा ‘ज़वज़हत-अल-हिन्द’ (भारत का अखरोट) नाम दिया गया। अरबी में आज भी इस नाम को देखा जा सकता है।16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा नारियल भारत से यूरोप ले जाया गया। नारियल में स्थित तीन छिद्र और रेशे (आंख, मुंह, बाल) इनको खोपड़ी के समान लगे। एक खोपड़ी या कोकुरूटो (Cocuruto) जैसा दिखने के कारण इनके द्वारा इसे कोकोनट (Coconut) नाम दिया गया, जो आज विश्व प्रसिद्ध नाम है। सर्वप्रथम भारत में व्यापार हेतु समुद्री मार्ग खोजने वाले वास्कोदिगामा भी पुर्तगाली थे। वास्कोदिगामा और अन्य पूर्तगाली व्यापारी भारत आये तथा इन्होंने नारियल को यूरोप तक पहुंचाया। यूरोप में नारियल का बहुमुखी उपयोग किया गया। जिसमें औषधि, खाद्य सामग्री से लेकर घर की साज सज्जा के उपकरण भी शामिल थे। यूरोप से नारियल अमेरिकी महाद्वीप में पहुंचा।
कई क्षेत्रों में इसे जीवन का वृक्ष भी पुकारा जाता है। समुद्र तटीय क्षेत्र में जीवन यापन करने वाले अधिकांश लोगों का जीवन इस पर निर्भर होता है। इनमें भारतीय राज्य केरल भी शामिल है, यहां तक कि इसका नाम भी नारियल पर रखा गया है अर्थात इसके नाम की उत्पत्ति मलयालम के ‘केरा’ शब्द से हुयी है जिसका अर्थ है ‘नारियल’। भारत के अन्य क्षेत्र जैसे मुंबई, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, गोवा आदि में भी सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहने वाले इन नारियलों का उत्पादन होता है, जिसमें केरला भारत का सर्वाधिक नारियल उत्पादक राज्य है। आज नारियल व्यवसाय का बहुत बड़ा हिस्सा बन गया है। नारियल से बने अनेक उत्पाद (नारियल तेल, दूध, मिठाई, रस्सी, सज्जा सामग्री इत्यादि) आसानी से बाजार में उपलब्ध होते हैं तथा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के अनेक स्थानों में नारियल का उपयोग रोजाना बनाये जाने वाले खाने जैसे रोटी, चावल, मांस, मिठाई आदि में भी किया जाता है।
विश्व के विभिन्न भागों में भोज्य पदार्थ में नारियल का उपयोग:
1. श्रीलंका की अंडा करी
2. मिस्र का सोबिया
3. ज़ंज़ीबार की मछली करी
4. सेमोलिना केक
5. तमिल का नारियल चावल आदि
नारियल के औषधीय गुण:
1. सूखे अदरक के साथ नारियल का उपयोग बुखार में राहत देता है।
2. नारियल का तेल सिर पर पड़े छाले और नकसीर ठीक करता है।
3. नारियल के तेल की मालिश मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है।
4. नारियल का पानी सिर दर्द से राहत पहुंचाने में सहायक होता है।
5. नारियल में उपलब्ध जिंक मोटापे से छुटकारा दिलाने में सहायक होता है।
कई शोधकर्ताओं ने विभिन्न वनस्पतियों पर अध्ययन करके अपनी पुस्तकों में नारियल को औषधीय वनस्पति के रूप में वर्णित किया है। वैन र्हीड की मशहूर किताब ‘होर्टस मालाबारिकस’ में भी नारियल का विस्तृत औषधीय वर्णन मौजूद है।
संदर्भ:
1.https://www.aramcoworld.com/en-US/Articles/January-2017/Cracking-Coconut-s-History
2.http://www.niscair.res.in/sciencecommunication/researchjournals/rejour/ijtk/Fulltextsearch/2003/July%202003/IJTK-Vol%202(3)-July%202003-pp%20265-271.htm
3.https://thewire.in/the-sciences/hortus-malabaricus-van-rheede-ks-manilal-botany-itty-achuden
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Coconut
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