प्रत्येक संवेदनशील प्राणी को दर्द का अनुभव होता है, फिर वह किसी भी प्रकार का दर्द क्यों ना हो। हम सभी को एक छोटी सी सुई लगने पर अत्यधिक दर्द होता है, वहीँ दूसरी ओर हॉस्पिटलों में ऑपरेशन या चीरा लगने के दौरान हमारे शरीर को औज़ारों से काटा जाता है, इसके बाद भी हमें किसी प्रकार के दर्द का एहसास नहीं होता है। सोचिए ऐसा क्यों होता है?
ऑपरेशन या अन्य चिकित्सक गतिविधियों के दौरान भयानक दर्द से मुक्ति दिलाने हेतु चिकित्सकों द्वारा एनेस्थीसिया (Anaesthesia) का प्रयोग किया जाता है। एनेस्थीसिया का शाब्दिक अर्थ है "संवेदन शून्यता" मरीजों को इस स्थिति में लाने के लिए एनेस्थेटिक्स (Anaesthetics) दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसके उपयोग के बाद व्यक्ति बेहोशी की अवस्था में चला जाता है जिससे चिकित्सक आसानी से ऑपरेशन करने में सफल रहते हैं।
सर हम्फ्री डेवी (1799) द्वारा अपने दांत दर्द के एहसास को कम करने के लिए नाइट्रस ऑक्साइड (लाफिंग गैस) द्वारा सांस ली गयी। इसके प्रभाव को देखते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि इसका उपयोग सर्जरी के दौरान भी किया जा सकता है। वहीं 1853 में अलेक्जेंडर वुड, द्वारा एक हाइपोडर्मिक सिरिंज (Hypodermic Syringe) का आविष्कार किया गया जो दवाओं को तीव्रता से शरीर में प्रवेश कराने में सहायक सिद्ध हुयी। 19 वीं सदी के मध्य में नाइट्रस ऑक्साइड (हॉरेस वेल्स-1844), इथाइल क्लोराइड (हेफेल्डर-1848), क्लोरोफॉम (सर जेम्स सिम्पसन- 1847) तथा इथर (विलियम मोर्टन- 1846) में एनेस्थेटिक्स के गुण पाये गये। इस प्रकार के अनेक प्रयोगों के बाद विभिन्न एनेस्थेटिक्स दवाऐं तैयार की गयीं।
आज दो प्रकार की मूल एनेस्थेटिक्स दवाओं का उपयोग किया जाता है। पहला पूरे संपूर्ण शरीर को असंवेदनशील बना देता है तथा दूसरा जो शरीर के कुछ भाग को संवेदनहीन करता है। सामान्यतः कुछ भाग को संवेदनहीन करने में प्रयोग होने वाली एनेस्थेटिक्स दवाएं दिमाग तक संवेदनाएं पहुंचाने वाली नसों को अवरूद्ध करती हैं जिस कारण व्यक्ति को दर्द का आभास नहीं होता। किंतु बड़े ऑपरेशन के दौरान उपयोग होने वाली एनेस्थेटिक्स दवाएं रक्तचाप और हृदय गति आदि में भी नियंत्रण करती हैं।
विभिन्न एनेस्थेटिक्स की क्रियाविधि:
1. नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous Oxide): द्रवित रूप में स्टील के सिलेण्डरों में रखी गयी नाइट्रस ऑक्साइड का उपयोग ऑक्सीजन के साथ छोटे ऑपरेशन (जैसे-दांत निकालना) के दौरान किया जाता है, इसमें ऑक्सीजन की मात्रा आवश्यकता अनुसार 12-55% तक हो सकती है। इस मिश्रण (नाइट्रस ऑक्साइड + ऑक्सीजन) के दुष्प्रभाव अन्य एनेस्थेटिक्स की तुलना में कम होते हैं।
2. इथर (Ether): यह दवा द्रव से वाष्प के रूप में आसानी से परिवर्तित हो जाती है जो अत्यंत विस्फोटक होती है। यह बच्चों के ऑपरेशन (टॉन्सील और गले की गिल्टी को हटाने) के दौरान उपयोग किया जाता है लेकिन इसकी गंध के कारण इसका उपयोग कम किया जाता है।
3. थायोपेन्टोन सोडियम (Thiopentone Sodium): इस दवा का उपयोग बड़ी मात्रा में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जख्मी सैनिकों के इलाज के समय उन्हें सुलाने के लिए किया गया था। यह दवा अक्सर बड़े ऑपरेशन में ही उपयोग की जाती है क्योंकि इसकी अतिरिक्त मात्रा मरीज की सांसे तक रोक सकती है।
4. साइक्लोप्रॉपेन (Cyclopropane): यह विस्फोटक गैस द्रव के रूप में सिलेण्डर में रखी जाती है। यह वृद्ध व्यक्तियों के लिए उपयोग की जाती है जो श्वसन क्रिया के दौरान शरीर से बाहर निकल जाती है।
5. इथाइल क्लोराइड (Ethyl Chloride): व्यक्ति को सुलाने के लिए इथर से पहले इसका उपयोग किया जाता है। इसके संपर्क में आते ही व्यक्ति जल्दी बेहोश हो जाता है। यह द्रव 12.5°C में गर्म होने पर आसानी से वाष्पित हो जाता है।
6. ट्राइक्लोरोइथायलीन (Trichloroethylene): इस द्रव की दुर्गन्ध क्लोरोफोर्म के समान मीठी होती है। बेहोश करने में उपयोग होने वाला यह द्रव सस्ता और अविस्फोटक होता है किंतु इसका अधिक मात्रा में उपयोग करने से सांस में तीव्रता और हृदय गति के अनियमित होने की संभावना बढ़ जाती है।
7. क्लोरोफॉर्म (Chloroform): यह अविस्फोटक द्रव सस्ता होता है, जिसका उपयोग बेहोश करने हेतु किया जाता है। किंतु इसके दुष्प्रभाव हृदय और लीवर में पड़ते हैं जिस कारण इसका उपयोग घट गया है।
संदर्भ:
1.https://www.livescience.com/33731-anesthesia-work.html
2.https://en.wikipedia.org/wiki/General_anaesthesia
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