आस्तिकता और नास्तिकता क्या है? साधारण-सा लगने वाला यह प्रश्न ही मानव की वैचारिक दुनिया का बुनियादी आधार रहा है। आमतौर पर, लोग मानते हैं कि नास्तिक वे लोग हैं जो मंदिरों या पूजा से संबंधित स्थानों पर नहीं जाते हैं। वे भगवान में भी विश्वास नहीं रखते हैं। आस्तिक और नास्तिक में अंतर समझने के लिये पहले हमें सनातन धर्म और नास्तिक दर्शन की अवधारणा को समझने की जरूरत है।
जो लोग सनातन धर्म में विश्वास रखते हैं वे भगवान को स्वयं से अलग मानते हैं और मूर्ति के रूप में उसकी पूजा करते हैं। वे द्वैतवाद सिद्धांत में विश्वास करते हैं। द्वैतवाद (संस्कृत शब्द द्वैत अर्थात दो से) दो भागों में अथवा दो भिन्न रूपों वाली स्थिति को निरूपित करने वाला एक शब्द है। दर्शन अथवा धर्म में इसका अर्थ पूजा अर्चना से लिया जाता है जिसके अनुसार प्रार्थना करने वाला और सुनने वाला दो अलग रूप हैं। इन दोनों की मिश्रित रचना को द्वैतवाद कहा जाता है।
वहीं दूसरी ओर नास्तिक दर्शन के अनुयायी मूर्ति पूजा नहीं करते हैं और गैर-द्वैतवाद में विश्वास रखते हैं तथा भगवान और स्वयं को एक ही रूप में मानते हैं। इसलिए, नास्तिक व्यक्ति, ऐसे मंदिरों में नहीं जाते जहां देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी जाती है। नास्तिक मानने के स्थान पर जानने पर अधिक विश्वास करते हैं। नास्तिक शब्द का अर्थ कोई ऐसा व्यक्ति है जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता है। वे स्वयं में विश्वास करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि भगवान स्वयं के अलावा कुछ भी नहीं है। नास्तिकता रूढ़िवादी धारणाओं के आधार पर नहीं बल्कि वास्तविकता और प्रमाण के आधार पर ही ईश्वर को स्वीकार करने का दर्शन है।
ये आधुनिक विद्वानों और कुछ हिंदू, बौद्ध और जैन ग्रंथों द्वारा भारतीय दर्शन को वर्गीकृत करने के लिए उपयोग की जाने वाली अवधारणाएं हैं। भारतीय दर्शन को आस्तिक एवं नास्तिक दो भागों में विभक्त किया गया है। जो ईश्वर तथा वेदोक्त बातों जैसे न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत पर विश्वास करता है, उसे आस्तिक माना जाता है; जो नहीं करता वह नास्तिक है। नास्तिक दर्शन के अंतर्गत चार दर्शन आते हैं- चार्वाक दर्शन, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, तथा आजीविक।
आस्तिक दर्शनों का क्रमबद्ध वर्णन निम्नानुसार है:
न्याय दर्शन:
महर्षि गौतम रचित इस दर्शन में पदार्थों के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन है। इसके अलावा इसमें न्याय की परिभाषा के अनुसार न्याय करने की पद्धति तथा उसमें जय-पराजय के कारणों का स्पष्ट निर्देश दिया गया है।
वैशेषिक दर्शन:
महर्षि कणाद रचित इस दर्शन में धर्म के सच्चे स्वरूप का वर्णन किया गया है। एक समय में वैशेषिक को न्याय दर्शन का हिस्सा माना जाता था क्योंकि यह भौतिकी विज्ञान का हिस्सा है। परंतु बाद में दोनों को अलग-अलग माना गया। वैशेषिक दर्शन के अनुसार जीव और ब्रह्म दोनों ही चेतन हैं।
सांख्य दर्शन:
सांख्य सबसे पुराना दर्शन है। इस दर्शन के रचयिता महर्षि कपिल हैं। इसमें सत्कार्यवाद के आधार पर इस सृष्टि का उपादान कारण प्रकृति को माना गया है। सांख्य एकाग्रता और ध्यान के माध्यम से स्वयं के ज्ञान की प्राप्ति पर ज़ोर देता है।
योग दर्शन:
योग शारीरिक और मानसिक अनुशासन की एक विधि प्रस्तुत करता है। इस दर्शन के संस्थापक महर्षि पतंजलि हैं। इसमें ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। योग आत्म के एहसास के लिए एक व्यावहारिक मार्ग प्रस्तुत करता है जबकि सांख्य एकाग्रता और ध्यान के माध्यम से स्वयं को ज्ञान की प्राप्ति की ओर जोर देता है।
मीमांसा दर्शन:
इस दर्शन में वैदिक यज्ञों में मंत्रों का विनियोग तथा यज्ञों की प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार संपूर्ण कर्मकांड मंत्रों के विनियोग पर आधारित हैं, उसी प्रकार मीमांसा दर्शन भी मंत्रों के विनियोग और उसके विधान का समर्थन करता है।
वेदांत दर्शन:
वेदांत का अर्थ है वेदों का अंतिम सिद्धांत। महर्षि व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है। इस दर्शन के अनुसार दुनिया अवास्तविक है। यह कहता है कि केवल एक ही वास्तविकता है, ब्राह्मण। वेदांत ब्राह्मण पर जोर देता है, इसलिए वेदों के उपनिषद भाग पर निर्भर करता है।
नास्तिक दर्शनों का क्रमबद्ध वर्णन निम्नानुसार है:
चार्वाक दर्शन:
वेद विरोधी होने के कारण नास्तिक संप्रदायों में चार्वाक मत का भी नाम लिया जाता है। चार्वाक मत एक प्रकार का यथार्थवाद और भौतिकवाद है। इसके अनुसार केवल प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, जीवनकाल में यथासंभव सुख की साधना करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
बौद्ध दर्शन:
यह सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाओं के आधार पर विश्वासों की एक प्रणाली है। बौद्ध धर्म एक गैर-यथार्थवादी दर्शन है जिसका सिद्धांत विशेष रूप से भगवान के अस्तित्व से संबंधित नहीं है।
जैन दर्शन:
जैन दर्शन प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्र है। इसका अस्तित्व 6ठी शताब्दी से ही है, महावीर स्वामी के उपदेशों से लेकर जैन धर्म की परंपरा आज तक चल रही है। यह निर्वाण की ओर जोर देता है।
आजीविक:
आजीविक या ‘आजीवक, दुनिया की प्राचीन दर्शन परंपरा में भारतीय जमीन पर विकसित हुआ पहला नास्तिकवादी और भौतिकवादी सम्प्रदाय था। भारतीय दर्शन और इतिहास के अध्येताओं के अनुसार आजीवक संप्रदाय की स्थापना मक्खलि गोसाल (गोशालक) ने की थी।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/%C4%80stika_and_n%C4%81stika
2.https://www.clearias.com/indian-philosophy-schools/
3.https://www.careerride.com/view/astik-nastik-school-of-indian-philosophy-20643.aspx
4.https://www.indiatimes.com/lifestyle/self/aastik-vs-nastik-296276.html
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