भारत में कपड़ों का कारोबार सूती कपड़ों से ले कर सिल्क (रेशम), ऊनी(गरम कपड़े), जूट(पटसन), और इनके रेडीमेड कपड़े इत्यादि में होता है। हस्तशिल्प के बिना कपड़ों का कारोबार अधुरा है और इसी कारण भारत में बने कपड़े बाकी देश के मशीनों द्वारा बने कपड़ों से अलग हैं। हस्तशिल्प एक ऐसा माध्यम है जो कई संस्कृतियों को एक लड़ी में पिरोता है, इसकी व्याख्या प्राचीन शास्त्र (ऋग्वेद, अथर्ववेद) मे भी की गयी है। सूती कपड़ों की बात करें तो इसका उत्पादन भारत में शुरू हुआ था। कपास प्रसंस्करण हड़प्पा सभ्यता के समय से ही प्रचलित था, जिसके बाद कपड़ों के रंगाई की तकनीक का आविष्कार हुआ।
ब्रिटिश शासनकाल में भारत से कपास काफी मात्रा में निर्यात किया जाता था, और इसी कपास से नायलॉन का कपड़ा बना कर भारत में वापस बेचा जाता था। कपास भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है। गुजरात से ले कर बंगाल, मालाबार और कोंकण तक इसका उत्पादन होता है। प्राचीन काल में भारत के सूती कपड़ों का व्यापार मिस्र, चीन और अन्य देशों में होता था। मौर्य काल से ले कर मुग़लों के साम्राज्य तक, कई राज्यों ने भारतीय हस्तकला से वृहद् रोजगार को बढ़ावा दिया। अपनी भारहीनता, अति सूक्ष्म और नरम होने के चलते सूती कपड़ों का कोई तोड़ नहीं। आकड़ों की तरफ ध्यान दे तो 2014 तक कपड़ों का कारोबार भारत के पुरे औद्योगिक उत्पादन में से 14 प्रतिशत रहा है और यह लगभग 3.5 करोड़ को प्रत्यक्ष रोजगार देता है| पुरे देश के 3,500 हस्तकला समूहों में से 325 उत्तर प्रदेश में है और पुरे विश्व के कपड़ा व्यापार पर नज़र डालें तो आज जहाँ भारत का योगदान 4.5 प्रतिशत है| आने वाले तीन से चार साल में यह बढ़ कर 8 प्रतिशत होने की क्षमता रखता है|
1. तानाबाना- टेक्सटाइल्स ऑफ़ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल्स, भारत सरकार
2. आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया – इले कूपर, जॉन गिल्लो
3. हेंडीक्राफ्ट ऑफ़ इंडिया – कमलादेवी चट्टोपाध्याय
4. टेक्सटाइल ट्रेल इन उत्तर प्रदेश (ट्रेवल गाइड) – उत्तर प्रदेश टूरिज्म