जानें मोक्ष और निर्वाण को थोड़ा और करीब से

रामपुर

 21-09-2018 05:06 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

मृत्‍यु जीवन का अटल सत्‍य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता। किंतु हमने अक्‍सर सुना है, मृत्‍यु मात्र शरीर की होती है, आत्‍मा की नहीं, आत्मा नश्‍वर है। आत्‍मा, मनुष्‍य के कर्मों (लोभ, मोह, माया इर्ष्‍या, द्वेष, प्रतिकार इत्‍यादि) की ज़ंजीर से बंधी है, जिस कारण उसका बार-बार इस पृथ्‍वी पर जन्‍म होता है और मृत्‍यु होती है। हमारे ऐतिहासिक धर्मग्रंथों के अनुसार आत्‍मा को जन्‍म मृत्‍यु के बंधन से मुक्‍त करना ही ‘मोक्ष’ कहलाता है। उसी प्रकार बौद्ध धर्म में सभी दुखों से मुक्ति पाना ‘निर्वाण’ कहलाता है। उद्देश्‍य में समानता के बाद भी इसमें कुछ भिन्‍नताएं हैं, चलिए जानें इनके मध्‍य भिन्‍नता को।

मोक्ष:
आत्‍मा का हजारों बिन्दुओं के रूप में जन्‍म होता है, किंतु मनुष्‍य एक मात्र ऐसा बिंदु है, जो आत्‍मा को इस नश्‍वर संसार से मुक्ति दिला सकता है। हिन्‍दू धर्मशास्‍त्र में जीवन के चार उद्देश्‍य बताए गये हैं: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। जिसे मनुष्‍य ज्ञान प्राप्ति के पश्‍चात् ही पूरा कर सकता है। मात्र ज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्‍य को इस नश्‍वर संसार से मुक्ति दिला सकती है। जिसे मोक्ष कहा जाता है। यह तभी होता है जब एक आत्मा को यह समझ आ जाता है कि वह एक परमात्मा का ही हिस्सा है तथा जब वह इसमें लीन हो जाता है।

निर्वाण:
बौद्ध धर्म में दुखों (राग, द्वेष और मोह) से मुक्ति ही निर्वाण कहलाया जाता है। यह तभी संभव है, जब मनुष्‍य को अपने आंतरिक मन में सच का एहसास हो जाए तथा दर्द, घृणा, लोभ, इच्छा जैसी मनः स्थितियां समाप्‍त हो जाएं या बूझ जाएं। बौद्ध धर्म में निर्वाण से जुड़ा हुआ ज्ञान बोधि कहलाता है। बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्ति के लिए आष्‍टांगिक मार्ग सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि बताए गये हैं।

अंतर:

1. सभी दुखों से मुक्ति और ज्ञान की प्राप्ति ही मोक्ष है। बौद्ध धर्म में निर्वाण को सभी पीड़ाओं (लोभ, मोह, माया, इर्ष्‍या आदि) से मुक्ति के रूप में इंगित किया गया है।
2. हिन्‍दू धर्म में मानव जीवन को दुख का स्‍त्रोत माना गया है, मोक्ष आत्‍मा को जीवन चक्र से मुक्ति दिलाता है। निर्वाण मनः स्थितियों से मुक्ति पाना है, जहां मनुष्‍य की सभी भावनाएं समाप्‍त हो जाती हैं।
3. मोक्ष में आत्‍मा का ब्रह्म में विलय हो जाता है, जबकि बौद्ध न ब्रह्म में विश्‍वास रखते हैं और ना ही यह आत्‍मा के अस्तित्‍व को स्वीकार करते हैं।

भिन्‍नताएं, समानताएं जो भी हों किंतु दोनों की मंज़िल मानव को सांसारिकता से मुक्ति दिलाना है, उसे उसके वास्‍तविक सत्‍य से मिलाना है; जो सांसारिक भोग के माध्‍यम से प्राप्‍त नहीं हो सकती। यदि गहनता से देखा जाए तो, निर्वाण हिन्‍दू धर्म के मोक्ष के काफी निकट है या उसके समांतर है।

संदर्भ:
1.https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-Moksha-and-Nirvana
2.https://www.differencebetween.com/difference-between-moksha-and-vs-nirvana/
3.https://buddhism.stackexchange.com/questions/2036/what-are-the-differences-between-nirvana-in-buddhism-and-moksha-in-hinduism
4.https://goo.gl/Rrhrww



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