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लेखन एक ऐसी कला है जिसका समाज के ऊपर एक गहरा प्रभाव होता है और हमारे समाज में ऐसे कई महान लेखक हुए हैं, जिनकी लेखन शक्ति द्वारा समाज की सोच सकारात्मक दिशा में ले जाई गयी है। ऐसे महानतम महान लेखकों में मुंशी प्रेमचन्द (1880- 1936) का भी नाम आता है, जिनके साहित्य और उपन्यास में योगदान को देखते इन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ भी कहा जाता है।
प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय के नाम से ज्यादा जाना जाता है। प्रेमचन्द ने अपना पूरा जीवन लेखन के प्रति समर्पित कर दिया था। प्रेमचन्द के उपन्यास इतने प्रसिद्ध हुए कि उनके प्रसिद्ध उपन्यास, जैसे: गोदान, कर्मभूमि, गबन, रंगभूमि पर हिंदी फ़िल्में भी बन चुकी हैं। वहीं उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘निर्मला’ को अक्टूबर 2004 में दूरदर्शन पर प्रसिद्ध निर्देशक गुलज़ार द्वारा अनुकूलित कर अपनी टी.वी. सीरियल (T.V. Serial) पर प्रसारित किया गया।
यह सीरियल और उपन्यास एक 15 साल की लड़की के संघर्ष और दहेज प्रथा के दुष्प्रभाव और पूर्व स्वतंत्र भारत में महिलाओं द्वारा सहे जाने वाले कष्टों को दर्शाता है। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है:
निर्मला की 15 साल की उम्र में भुवन मोहन सिन्हा से शादी तय कर दी गयी, किन्तु तभी निर्मला के पिता उदयभानु लाल की उनके एक प्रतिद्विंदी द्वारा हत्या कर दी गयी। हत्या के उपरान्त भुवन और उसके पिता ने बड़ा दहेज मिलने का सपना टूटता देख लालच में आकर शादी से इंकार कर दिया और निर्मला की माँ कल्यानी को उसका विवाह निर्मला से 20 साल बड़े मुंशी तोतारम के साथ मजबूरन करना पड़ा, जिनके खुदके 3 लड़के पहले से थे। तोताराम का बड़ा बेटा मंसाराम निर्मला से एक वर्ष छोटा था। निर्मला पहले बेटे के साथ मित्रवत रूप से रहने लगती है, लेकिन वह इतनी मासूम थी कि वह यह समझ नहीं पाती कि इसका परिणाम उसके पति के दिमाग में शक का बीज बो रहा है। निर्मला का चरित्र बिल्कुल निर्मल होता है, परन्तु शक के कारण तोताराम अपने बेटे मंसाराम को छात्रावास भेज देता है। जहाँ के माहौल में उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। और अंततः मंसाराम की टी.बी. (ट्यूबरक्लोसिस) से मृत्यु हो जाती है। उसके बाद उसके दोनों छोटे बेटों की भी मृत्यु हो जाती है। साथ ही परिवार अपनी सारी संपत्ति खो देता है। उधर भुवन मोहन निर्मला को अपने प्रेम में फाँसने की चेष्टा करता है और असफल होने पर आत्महत्या कर लेता है। निर्मला के जीवन में घुटन के सिवाय और कुछ नहीं रह जाता। अंत में स्वास्थ्य बिगड़ने से उसकी मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार उपन्यास का अंत करूणापूर्ण है और घटना-प्रवाह में अत्यंत तीव्रता है।
कुट्टी कृष्ण इस सिरियल के कार्यकारी निर्माता थे। गुलज़ार द्वारा पटकथा, संवाद, और दिशा दी गयी थी। रूप कुमार राठोड द्वारा मुख्य गीत गाया गया और राजा सी. कोठारी द्वारा छायांकन का निर्देशन किया गया। 3.5 करोड़ रुपये के बजट में यह सिरियल बनाया गया था। निर्मला की यह कहानी दूरदर्शन के ‘तहरीर... मुंशी प्रेमचंद की’ में 6 एपिसोड के माध्यम से दर्शायी गयी थी जिसका पहला एपिसोड आप ऊपर दिए गए वीडियो में देख सकते हैं, तथा उसके अगले 5 एपिसोड भी।
निर्मला की यह कहानी कुत्सित सामाजिक प्रथा को जड़ से उखाड़ने के लिए एक भारी चुनौती देती है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Nirmala_(novel)
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Premchand
3. http://www.nettv4u.com/about/Hindi/tv-serials/nirmala