बोली और भाषा के बीच अन्त:सम्बन्ध होता है। वस्तुत: भाषा और बोली के बीच कोर्इ स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती है, इनमें अंतर केवल इतना होता है कि भाषा का भौगोलिक क्षेत्र व्यापक होता है जबकि बोली का सीमित। उदाहरण- हिन्दी सम्पूर्ण भारत की मातृभाषा और सम्पर्क भाषा है, इसलिए इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त है। जबकि अलग-अलग बोलियाँ सीमित क्षेत्रों तक ही बोली जाती हैं। हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं, जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, मालवी, भोजपुरी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, झारखंडी आदि प्रमुख हैं।
इनमें से कुछ बोलियों का तो केवल बोलचाल या लोकगीतों आदि में प्रयोग होता है लेकिन कुछ बोलियों में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में ‘ब्रजभाषा’ और ‘अवधी’ प्रमुख हैं।
ये दोनों हिन्दी की ही दो बोलियाँ हैं जिनमें विशेषतः क्षेत्र विशेष का अंतर है। ब्रज भाषा मुख्यतः ब्रजक्षेत्र (पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी उत्तरप्रदेश में रामपुर, आगरा, धौलपुर, हिण्डौन सिटी, मथुरा, एटा और अलीगढ़) में बोली जाती है, वहीं अवधी की जड़ें अवध क्षेत्र (बिहार, छत्तीसगढ़, पूर्वी उतरप्रदेश में जौनपुर, लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, फैजाबाद, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशाम्बी) से जुड़ी हैं। भाषाविशेषज्ञ जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने ब्रज भाषा को पश्चिमी हिन्दी और अवधी को पूर्वी हिन्दी में विभाजित किया है।
ब्रजभाषा भारतीय आर्यभाषाओं की परंपरा में विकसित होने वाली तथा शौरसेनी अपभ्रंश से जन्मी है। यह 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रही है। जब से वल्लभ संप्रदाय का केंद्र गोकुल बना था, तब से ब्रजभाषा में कृष्ण विषयक साहित्य लिखा जाने लगा। इसी के प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई। ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्तिकाल के कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। इसमें खड़ी बोली और राजस्थानी का प्रभाव दिखाई देता है।
वहीं दूसरी ओर बात करें अवधी भाषा की तो अवधी का प्राचीन साहित्य बड़ा संपन्न है। अवधी कवियों की प्रमुख काव्यभाषा रही है। इसमें भक्ति काव्य और प्रेमाख्यान काव्य दोनों का विकास हुआ। भक्तिकाव्य का शिरोमणि ग्रंथ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ और प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ सहित कई और प्रमुख ग्रंथ इसी बोली में रचित हैं। अवधी की यह संपन्न परंपरा आज भी चली आ रही है। अवधी के पश्चिम में पश्चिमी वर्ग की बुंदेली, दक्षिण में छत्तीसगढ़ी और पूर्व में भोजपुरी बोली का क्षेत्र है, इसलिये इसमें इन बोलियों का खास प्रभाव देखने को मिलता है।
कुछ उक्ति दोनों बालियों में –
पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु किरपा कर अपनायो।।
- मीराबाई (ब्रज भाषा)
ब्रज भाषा में राजस्थानी और खड़ी बोली का प्रभाव साफ नज़र आाता है।
काम-क्रोध मद लोभ सब, नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहिं, भजहु भजहिं जेहि संत॥
- तुलसीदास (अवधी)
अवधी पर भोजपुरी का प्रभाव नज़र आता है।
संदर्भ:
1.https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-the-Braj-and-the-Avadhi-language
2.https://www.quora.com/Why-do-people-mix-Awadhi-and-Bhojpuri
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Braj_Bhasha
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Awadhi_language
5.https://goo.gl/kE4NmE
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