जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है, जिसमें से लगभग 60 से 65 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा वे कृषि और पशुपालन के माध्यम से जीवन यापन करते हैं। पशु पालन (जलीय, थलीय आदि) भारत के प्रमुख व्यवसायों में से एक है। चलो जाने जलीय पशुपालन में मछली और बत्तख के पालन के विषय में।
कुछ अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि गर्म जलवायु में रहने वाले लोगों के लिए लाल मांस (यानी बकरी, भैंस आदि) स्वास्थ्यवर्धक नहीं है। जबकि मछली खाने से हमारे शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों (जल,कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, लोहा, सल्फर, मैग्नीशियम, तांबा) की आपूर्ति होती है तथा यह जीवन का प्रतीक मानी जाती है।
भारतीय मछली एक्ट 1897 के तहत भारत सरकार द्वारा मछलियों को संरक्षण प्रदान किया गया है, जो उत्तर प्रदेश में 1948 में लागू किया गया। गंगा नदी का बेसिन होने के कारण उत्तर प्रदेश मत्स्य पालन की दृष्टि से काफी समृद्ध राज्य है। आज मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। विभिन्न राज्यों में मत्स्य विभाग की स्थापना की जा रही है जो किसानों और अन्य लोगों को उपलब्ध जल संसाधनों के माध्यम से मछली उत्पादकता बढ़ाने, रोजगार के अवसर, लोगों को पोषण युक्त खाद्य पदार्थ प्राप्त करने तथा मछुआ समुदाय का सामाजिक और आर्थिक विकास हेतु जागरूक करते हैं।
भारत में उपस्थित मत्स्यपालन की बड़ी झीलों में से एक किच्छा और रूद्रपूर क्षेत्र (उत्तराखण्ड का हिस्सा हैं, उत्तर प्रदेश का नहीं) में हैं, यह क्षेत्र रामपुर के निकट स्थित है तथा रामपुर और बरेली के कुछ किसानों द्वारा अपने खेतों में व्यवसाय हेतु मत्स्य पालन प्रारंभ कर अपनी आय में वृद्धि की है, जिसमें यूपी सरकार के मत्स्य पालन विभाग और वैश्विक एफएओ (खाद्य और कृषि संगठन) दोनों द्वारा इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है।
कम लागत तथा कम श्रम में अधिक उत्पादन करने वाले व्यवसायों में से एक बत्तख (कुटकुट पालन) जल को स्वच्छ करते हैं और साथ ही इनके द्वारा त्यागे गये अपशिष्ट जलीय पौधों के लिए उर्वरक की भूमिका निभाते हैं, जो जलीय जन्तुओं के विकास में सहायक होते हैं तथा ये मांस और अंडों की आपूर्ति की दृष्टि से महत्वपूर्ण पक्षी सिद्ध हो रहें हैं। इनके पालन को बढ़ावा देने हेतु भी सरकार द्वारा विशिष्ट कदम उठाए जा रहे हैं। अंततः सरकार द्वारा उठाए गये कदम तथा आम व्यक्ति की जागरूकता से इन व्यवसायों को बढ़ावा दिया जा सकता है। इन जीवों के संरक्षण के साथ इनकी उत्पादकता को बढ़ाया जाए।
संन्दर्भ:
1. http://www.fao.org/docrep/005/Y1187E/y1187e14.htm
2. http://fisheries.up.nic.in/
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