कहानी कहने की प्राचीन कला, दास्तां-ए-दास्तानगोई

रामपुर

 16-08-2018 12:34 PM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

अच्छी कहानियाँ किसे नहीं पसंद, चाहे वे बच्चे हों या बड़े सबके द्वारा कहानी कहना सुनना पसंद किया जाता है। आप सभी को बचपन में अपने बड़ों से कहानियाँ सुनना पसंद रहा होगा, आज भी कई अभिभावक अपने बच्चों को कहानी सुनाकर ही सुलाते हैं। क्या आपको पता है कि मुग़ल शासन के दौरान भी यह कहानी सुनाने का सिलसिला प्रचलित था, उस समय इसको दास्तां-ए-दास्तानगोई(दास्तां (कहानी) और गोई (सुनाना)) के नाम से जाना जाता था।

प्रस्तुत विडियो सन 2015 me आयोजित जश्न-ए-रेख़्ता का है तथा इसमें दास्तानगोई का परिचय दिया गया है। आज भी दास्तानगो भारत में काफ़ी प्रचलित है, चलो जानते हैं इसके बारे में। दास्तानगोई उर्दू में दास्तान यानी लंबी कहानियां सुनाने की कला है, जो की कम से कम 9वीं शताब्दी से ईरान में शुरु हुई थी। उर्दू में अलिफ लैला, हातिमताई जैसी कई दास्तानें सुनाई जाती रहीं मगर इनमें सबसे मशहूर हुई दास्ताने अमीर हमजा, जिसमें हजरत मोहम्मद के चाचा अमीर हमजा के साहसिक कारनामों का बयान होता है। अकबर को दस्तान-ए-अमीर हमज़ा इतनी अच्‍छी लगी कि उन्होंने एक सचित्र पांडुलिपि शुरू की जिसे पूरा होने में 14 साल लगे और हमज़ा आखिरकार 1200 जख़ीम जिल्दों में पूरी होकर छपी और उर्दू अदब और हिन्दुस्तानी फनूने लतीफा का मेराज साबित हुई।

19वीं शताब्दी तक, दिल्ली, लखनऊ और रामपुर इस अभिनव शैली के जाने-माने केंद्र थे, यहाँ पर उस्ताद दास्तानगो द्वारा अदालत में, महान लोगों के घरों में, मेलों और अन्य स्थानों पर लोगों को इकट्ठा कर कहानियाँ सुनाई जाती थी। दास्तानगो भारत में काफ़ी प्रसिद्ध रही, लेकिन मीर बाकर अली ( जो की भारत के आखिरी मशहूर पेशेवर दास्तानगो थे) के देहांत(1928 में दिल्ली में हुआ था) के बाद, इसका भी अंत हो गया। फ़िर महमूद फारूकी ने उर्दू आलोचक शम्सुर रहमान फारूकी से प्रेरणा लेकर 2005 में इसका पुनरागमन किया। उनके साथ ही कई अन्य कलाकार भी इस से जुड़े, वर्तामान में दिल्ली की जोड़ी दास्तानगो फौजिया दास्तागो(भारत की पहली महिला दास्तानगो) और फजल रशीद, लोगों को असाधारण कहानियाँ सुना रहे हैं। वे देश भर में प्रसिद्ध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और साहित्यिक त्यौहारों में प्रदर्शन कर लोगों को अपनी और आकर्षक कर रहे हैं। फौजिया मानसिक स्वास्थ्य से सांप्रदायिक सद्भाव से नारीवाद जैसी कहानियों को चुन दर्शकों के लिए प्रदर्शन करती हैं। एक बार फिर से भारत के अधिकांश हिस्सों में दास्तानगो फैल रहा है, यह थियेटर फॉर्म के रूप में आगे बढ़ रहा है, और प्रदर्शन कला में रुचि रखने वालों के लिए यह एक नया द्वार बन रहा है।

संदर्भ-

1. http://olddelhiheritage.in/dastangoi/
2. https://fountainink.in/qna/dastan-e-dastangoi
3. https://www.youtube.com/watch?v=eacFaztQvao



RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id