विश्व में लगभग 197 देश हैं, प्रत्येक की अपनी संस्कृति, परंपराएं तथा भाषाएं हैं। किंतु भिन्नताओं के गढ़ भारत में आज भी अपनी संस्कृतियों के साथ-साथ वर्षों पूर्व विभिन्न देशों से लायी गईं संस्कृतियों, परंपराओं और यहां तक कि भाषाओं का भी अनुसरण हो रहा है। जिनमें से एक है ‘तुर्की’। इनका संबंध भारत में आज से नहीं वरन् कई सौ सालों पुराना है, ये दक्षिण भारत तथा उत्तरी भारत के रामपुर, रोहिलखण्ड और संभल के लगभग 900 गाँवों में बसे हुए हैं। उत्तर भारत में ही इनकी तादात 15 लाख के आसपास है।
चलिए इनके विषय में गहनता से जानने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं। भारतीय इतिहास में नया अध्याय लिखने वाले महमूद गज़नवी तथा मुहम्मद गौरी द्वारा यहां तुर्की शासन की नींव डाली गयी, जो आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य के लिए आधार स्तंभ बनी। गज़नवी तो भारत से धन संपदा लूट के वापस चला गया, किंतु गौरी ने तुर्की साम्राज्य स्थापित किया। गौरी इस तुर्की साम्राज्य की देख रेख अपने विश्वसनीय पात्र कुतुबद्दीन ऐबक को सौंपकर वापस चला गया तथा इन्होंने ही यहां तुर्की साम्राज्य का विस्तार कर, इसे स्थायित्व प्रदान किया। बाद में इनके संबंधियों (इल्तुत्मिश, बलबन आदि) ने इसे आगे बढ़ाया। इनके द्वारा ही तुर्की भारत आये तथा साथ ही भारत आयी इनकी संस्कृति, परंपरांए और भाषा जिसकी छवि आज भी भारत में देखने को मिलती है। सर्वप्रथम इन्होंने ही दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया, जो आगे चलकर सत्ता का केंद्र बनी। रोहिलखंड में तुर्कियों का प्रवेश इल्तुत्मिश द्वारा हुआ, जो आज तक यहाँ बसे हुए हैं।
भारत में बसे तुर्की आज भी भारत और तुर्की के रिश्ते को मज़बूती प्रदान कर रहे हैं। विगत कुछ वर्षों में तुर्की के राजदूत हसन गोगस (2005) मुरादाबाद के एक गैर सरकारी संगठन (NGO) के निमंत्रण पर अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु भारत आये किंतु वे भी यहां स्थित तुर्कियों की आबादी देख अचंभित रह गये। आज भी ये लोग जो भाषा बोलते हैं, वह पूर्णतः तुर्की की तो नहीं रही किंतु, उसमें प्रयोग होने वाले अधिकांश शब्द तुर्की भाषा के ही हैं। साथ ही ये लोग तुर्की परंपरा के अनुसार त्यौहारों में एक साथ एक थाली में खाना खाते हैं, यहां की महिलाएं घर पर ईख की टोकरियां बनाती हैं, जो घरेलू कार्यों में उपयोग की जाती हैं। इसी प्रकार की अनेक छोटी-बड़ी गतिविधियों के माध्यम से इन्होंने अपनी परंपराओं को जीवित रखा है।
साथ ही हाल ही में इस क्षेत्र के युवाओं ने भी अपनी जड़ों को बेहतर तरीके से जानने में रूचि दिखाई है। इनमें से कई तो अपने मूल के बारे में जानने के लिए विदेश यात्रा भी कर रहे हैं। इसी रूचि को देखते हुए रामपुर के कुछ कॉलेज भी अब तुर्की भाषा को अपने पाठ्यक्रम में जोड़ने पर विचार विमर्श कर रहे हैं।
संदर्भ:
1.http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/49263392.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst
2.https://timesofindia.indiatimes.com/city/bareilly/Istanbul-opens-its-eyes-to-Rohilkhands-11-lakh-Turks-/articleshow/49263392.cms
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Turks_in_India
4.http://www.historydiscussion.net/history-of-india/establishment-of-turkish-rule-in-india-indian-history/6544
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.