17वीं शताब्दी में बनाया गया यह चित्र मुग़ल लघु (Miniature) रागमाला श्रृंखला का है। इसमें रागिनी मल्हार को दर्शाया गया है।
ये रचनाएँ मध्यकालीन समय में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर भाग में बनती थीं। राजा महाराजा इनका आयोग करते थे। उन दिनों चित्रकार का नाम उतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना कि राजा या राजवंश का नाम हुआ करता था। इसलिए इनको ‘मुग़ल’ या ‘राजपूत’ दरबार के नाम से जाना जाता है।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पद्धति में 10 थाट हैं, जो कि स्वर के अलग-अलग संयोजन से बनते हैं। इनके अनुसार बनते हैं राग, जिसके चलन के हिसाब से बनते हैं गीत, तान, आलाप, इत्यादि। राग एक धुन या ध्वनि होता है जो माना जाता है कि किसी एक भाव (नाट्यशास्त्र में ‘रस’) को जागृत करता है। राग में दिन और रात, और विभिन्न ऋतु उभर आते है। रागमाला चित्र राग का वस्तुतः चित्र प्रदान करते हैं। इनमें राग या रागिनी को पात्र रखते हुए ज्यादातर श्रृंगार का रस दर्शाया जाता है।
मल्हार राग में वर्षा ऋतु और उसके पहलू का वर्णन है और मल्हार का गायन समय रात्रि है। इस तस्वीर में आसमान को देखें तो सायं का समय नज़र आता है, और ऊपर बादल वर्षा ऋतु को स्पष्ट करते हैं।
संदर्भ:
1. http://razalibrary.gov.in/MiniaturePaintings.html
2. https://www.metmuseum.org/exhibitions/listings/2014/ragamala
3. https://digital.library.cornell.edu/collections/ragamala
4. कपूर, रवी (फोटोग्राफर), 2008. रज़ा लाइब्रेरी: रामपुर, राज भवन लखनऊ
5. बागची, संदीप, 1998. नाद: अनडरस्टैंडिंग राग म्युसिक, एस चंद (जी/एल) & क.
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