बदलते समय के साथ-साथ हमारी सोच भी दिन-प्रतिदिन बदलती जा रही है। जिस तरह समय के साथ गांव, नगर और महानगरों में बदलाव आ रहा है, उसी तरह मानव की सोच भी एक आकार लेती जा रही है। क्या बदलती सोच का कारण हमारे गांव, नगर और महानगरों का आकार है?
वर्तमान में हम बहुत आगे निकल आये हैं। हम उन्नत भविष्य की कल्पना में गांव को छोड़कर शहर और शहर को छोड़कर महानगरों की तरफ भाग रहे हैं और भला भागे भी क्यों न? हमें बड़ा आदमी जो बनना है और अपने बच्चों को एक सुनहरा भविष्य जो देना है। पहले हम अपने आप को रोजगार की तलाश में गांव से शहर लाए और फिर शहर से महानगर। छोटे शहर में छोटी सुविधाएं और कठिनाईयों भरा जीवन। हर चीज के लिए जैसे- दवा-दारू, शिक्षा, व्यवसाय, घर आदि के लिए महानगरों का मुंह देखना पड़ता है, सुविधाओं के अभाव में। महानगरों में आधुनिकता के साथ-साथ सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं। छोटे शहरों के मुकाबले बड़े शहरों में व्यवसाय और नौकरी के अधिक मौके हैं। साथ-ही-साथ बच्चों का जीवन उज्जवल बनाने के लिए उचित और अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल और महाविद्यालय उपलब्ध हैं। आपको सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अपने बच्चे को कहाँ पढ़ाये? बड़े शहरों के स्कूलों में किताबी शिक्षा के साथ-साथ अब डिजिटल शिक्षा भी उपलब्ध है, जिससे बच्चा नई-नई तकनीकों, प्रौद्योगिकी, और आविष्कारों से समय-समय पर अवगत होता रहता है।
बीमार पड़ने पर सोचने की जरूरत नहीं पड़ती है कि मरीज को कौन-से अस्पताल में भर्ती करना है। बड़े शहर में छोटी से बड़ी हर बीमारी के लिए हर वर्ग के व्यक्ति के लिए उसकी सहुलियत अनुसार अस्पताल और डॉक्टर मौजूद हैं। ऐम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध है। काबिल डॉक्टर और नर्सें हैं। आधुनिक चिकित्सकीय औजार और मशीनें उपलब्ध हैं।
बड़े शहर में आप अपनी आवश्यकतानुसार घर में रह सकते हैं। नए-नए फैशन के कपड़े पहन सकते हैं। हर तरह के भोजन का स्वाद ले सकते हैं। नई-नई जगह पर घूम सकते हैं। मॉल, सिनेमा हॉल, पॉर्क, डिस्को, क्लब, रेस्टोरेंट आदि जगह का आनंद ले सकते हैं।
अगर इसका दूसरा पहलू देखें तो जहां एक ओर हम बड़े शहरों में इन सब चीजों का आनंद ले सकते हैं, वहीं हम अपनी सांसों पर भी लगाम लगा रहे हैं। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में हम सुख-सुविधाओं के बीच अपने जीवन को प्रदूषण के मुंह में झोंक रहे हैं। शहरीकरण के कारण कटते पेड़ और भूमि का कटाव दोनों ही भौगोलिक वातावरण को परिवर्तित कर रहे हैं और पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ा रहे हैं, जिस कारण मौसम का बदलता मिजाज़ प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण दे रहा है।
गांव से शहर और शहर से बड़े शहर का आकार लेते महानगर में हो रहे पलायन के कारण हम स्वच्छ हवा-पानी और वातावरण से कोसों दूर होते जा रहे हैं। और तो और यह भी देखा जा रहा है कि साफ़-सफाई के मामले में भी छोटे शहर बड़े शहरों से बेहतर तरीके से अपने कूड़े का प्रबंधन कर रहे हैं। शहरीकरण के कारण हमारे बच्चों का शारीरिक विकास रूक-सा गया है, जिस कारण मानसिक विकार बढ़ता जा रहा है। बच्चों के खेलने के लिए स्थान नहीं बचा है। बड़े शहरों में बढ़ते प्रदूषण के साथ-साथ अपराध भी बढ़ती संख्या में हो रहे हैं।
रामपुर में कई ऐसे लोग होंगे जो कई सालों पहले किसी गाँव से आकर एक उज्ज्वल भविष्य की आशा में रामपुर में आ बसे होंगे। परन्तु क्या आज रामपुरवासी अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं या वे और बड़े शहरों और महानगरों की ओर अपना रुख कर रहे हैं। यह हमको तय करना होगा कि हम स्वयं को और अपने बच्चों को किस दिशा की ओर मोड़ रहे हैं और हमें उन्हें कैसा वातावरण मुहैय्या करवाना है।
संदर्भ:
1.http://www.indiaspend.com/cover-story/smaller-indian-cities-better-at-managing-waste-than-larger-ones-81875
2.https://medium.com/changing-city/when-it-comes-to-falling-in-love-with-cities-size-matters-839fbe2bd4b6
3.https://www.citylab.com/equity/2017/07/when-it-comes-to-skills-and-talent-size-matters/531411/
4.http://redcarpetmovingcompany.com/moving-big-city-small-town-popular/
5.https://www.makaan.com/iq/buy-sell-move-property/the-big-versus-small-city-debate-which-side-are-you-on
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