रोहिलखण्ड, भारत के उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्य का एक क्षेत्र है। जिसका नाम रोहिल्ला अफगान जनजातियों के नाम पर रखा गया है। हिन्दू महाकाव्य महाभारत में, इस क्षेत्र को मध्य प्रदेश नाम से जाना जाता है।
रोहिलखण्ड, उपरी गंगा जलोढ़ मैदान पर स्थित है। यह बरेली शहर के चारों ओर लगभग 25,000 वर्ग किलोमीटर/10,000 वर्ग मील का क्षेत्र है। यह दक्षिण में गंगा नदी, पश्चिम में उत्तराखण्ड, उत्तर में नेपाल और पूर्व में अवध क्षेत्र द्वारा घिरा हुआ है। इसके अंतर्गत बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, पीलीभीत और शाहजहांपुर आदि क्षेत्र आते हैं।
यह क्षेत्र, रोहिल्ला के पिछले समझौते के कारण प्रसिद्ध हुआ था, जो यूसुफजई जनजाति के पहाड़ी इलाके के पठान थे, जिन्हें मुगल सम्राट औरंगजेब आलमगीर ने राजपूत विद्रोह को दबाने के लिए उत्तरी भारत में कठेर क्षेत्र से सम्मानित किया था। बाद में रोहिल्ला पठानों का बड़े पैमाने पर बरेली और रामपुर शहर में बसने के कारण कठेर क्षेत्र को रोहिलखण्ड के रूप में प्रसिद्धि मिली। रोह का अर्थ है- पहाड़ और पश्तो में रोहिल्ला का अर्थ है- पर्वतारोही। आज, अफगान खुद को भारतीय पठान से अलग करने के लिए स्वयं को बान-ए-अफगान या बान-ए-इज़राइल के रूप में देखता है। पानीपत के युद्ध के बाद मराठों द्वारा रोहिलखण्ड पर आक्रमण किया गया।
वहीं एक दूसरा राज्य था संत राज्य, जो संत-रामपुर राज्य या सनथ राज्य नाम से भी जाना जाता है, संत के शासक पवार या परमार राजपूत राजवंश के थे। यह राज्य औपनिवेशिक ब्रिटिश राज के दौरान पश्चिमी भारत के राजपूत रियासतों में से एक था और एक संपन्न व महान राज्य था।
इस राज्य की स्थापना सन् 1255 में हुई थी और इसके संस्थापक ‘संत’ के नाम पर इसका नाम संत राज्य रखा गया था। संत राज्य की राजधानी संत-रामपुर में थी। इसे वंशानुगत 9 बंदूकों की सलामी दी जाती थी और यह बॉम्बे प्रेसीडेंसी की रीवा कंथ एजेंसी से संबंधित था। यह राज्य 1,020 वर्ग किलोमीटर के अंर्तगत था।
संत-रामपुर के बारे में जानना इसलिए आवश्यक था क्योंकि यदि रामपुर रियासत राज्य के बारे में जानकारी ढूंढी जाए तो कई बार संत-रामपुर की जानकारी हमारे सामने आती है। वहीं हमारे उत्तर प्रदेश के रामपुर की जानकारी के लिए हमें रोहिलखंड राज्य के बारे में जानकारी खोजनी होगी।
ऐसा माना जाता है कि रोहिलखण्ड में बहुत बड़ी संख्या में ‘टकसाल’ (रूपया या सिक्के बनाने के कारखाने) थे। रोहिल्ला काल के समय, बरेली ने अपनी स्थिति को एक टकसाल के रूप में बरकरार रखा था। बाद में सम्राट अशोक और उनके वंशजों ने बरेली में टकसालों पर सोने और चांदी के सिक्कों का खनन किया। अफगान विजेता अहमद शाह दुर्रानी ने भी बरेली टकसाल में सोने और चांदी के सिक्कों का खनन किया।
शाह आलम द्वितीय के समय बरेली, रोहिल्ला सरदार हाफिज़ रहमत खान का मुख्यालय था। जिन्होंने कई और सिक्के जारी किए थे। उसके बाद, अवध नवाब असफ-उद-दौला के कब्जे में था। उनके द्वारा जारी किये गये सिक्कों को बरेली और बरेली असफ़ाबाद में जारी किया गया था। जिन पर पहचान के तौर पर बरेली पतंग और मछली के चिह्न होते थे। उसके बाद, सिक्कों का खनन ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया।
रामपुर के सिक्कों को उन पर दिखाई देने वाले सीधे भालों से चित्रित किया जाता है, जो तांबे द्वारा निर्मित होते थे। इनमें से एक सोने के सिक्के को ऊपर दिए गए चित्र में भी प्रदर्शित किया गया है।
संदर्भ:
1. http://indiancoinsgks.blogspot.com/2015/07/brief-history-of-rohilkhand-kingdom-and.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Sant_State
3. https://princelystatecoins.wordpress.com/2013/01/21/rampur-state-coins/
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