 
                                            समय - सीमा 266
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                                            भारत में सबसे पहले नगरीकरण की शुरुवात सिन्धु सभ्यता के दौर में हुयी थी। सिन्धु सभ्यता से जुड़े अनेकों पुरास्थल मेरठ और पश्चिमी भारत में मिलते हैं। रामपुर और इसके आसपास के क्षेत्र में सिन्धु सभ्यता से जुड़े पुरास्थल हमें नहीं मिलते हैं परन्तु इस क्षेत्र में हमें कई अन्य सभ्यताओं के प्रमाण मिलते हैं जो कि सिन्धु सभ्यता के जितने प्राचीन तो नहीं हैं परन्तु फिर भी इस क्षेत्र में मानव बसाव को प्रदर्शित करते हैं। इस क्षेत्र में पायी जाने वाली ओ.सी.पी. संस्कृति सिन्धु सभ्यता के आखिरी समय तक जाती है। इस संस्कृति की तिथि 2000 ईसा पूर्व तक जाती है। इस काल के अवशेष हमें रामपुर के पास स्थित अहिक्षेत्र से प्राप्त होते हैं।
अहिक्षेत्र की खुदाई के दौरान इस संस्कृति से जुड़े साक्ष्य प्राप्त हुए थे। इस संस्कृति का नाम मिट्टी के बर्तन के रंग के ऊपर रखा गया है जो कि रंगे हुए गेरू मृदभांड के नाम से जाना जाता है। 1964-65 में हुयी खुदाई में रंगे हुए गेरू मृदभांड के कुछ बर्तन के टुकड़े प्राप्त हुए थे। बुलंदशहर के लालकिला पर हुयी खुदाई में भी रंगे हुए गेरू मृदभांड के प्रमाण प्राप्त हुए थे। ये खुदाई सन 1968-69, 1971-72 के दौर में हुयी थी। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि रामपुर के आस पास के क्षेत्र में रंगे हुए गेरू मृदभांड की संस्कृति प्रफुल्लित हो रही थी। यह इस बात पर भी जोर देती है कि इस क्षेत्र में बड़े मानव बसाव की शुरुवात इस काल में हो गयी थी। मृदभांड संस्कृति के अलावा अन्य संस्कृति जो इस क्षेत्र में पायी जाती है, वह है रंगे हुए धूसर मृदभांड की संस्कृति। रंगे हुए धूसर मृदभांड को तमाम मृदभांडो में एक अत्यंत उत्तम स्थान प्राप्त है। यह संस्कृति गंगा के मैदान में लोहे के युग की संस्कृति के समय की मानी जाती है तथा इसकी तिथि 1200 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के करीब जाती है। यह संस्कृति काले रंगे हुए मृडभांड की संस्कृति के बाद प्रकाश में आई थी। इस संस्कृति के प्रमाण अहिक्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। यह संस्कृति गाँव और नगरी परम्परा से जुड़ी हुयी है। यह सिद्ध करती है कि नगरों का निर्माण इस क्षेत्र में शुरू हो गया था। उत्तरी रंगे हुए काले मृडभांड की परम्परा के भी अवशेष रामपुर के आस-पास के क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। यह परंपरा या संस्कृति अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा के रूप में आंकी जाती है। उत्तरी काला मृदभांड अत्यंत महत्वपूर्ण बर्तन परंपरा थी। यह पूरे उत्तरभारत में पायी जाती है। कई स्थानों से इस प्रकार के बर्तन प्राप्त हुए हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि यह बर्तन अत्यंत मत्वपूर्ण था और इसके टूटने के बाद लोग इसको तार के सहारे जोड़ कर प्रयोग करते थे। इन सभी साक्ष्यों से यह कहा जा सकता है कि रामपुर के आस पास के क्षेत्र में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ था।
1.	एन्शिएंट एंड अर्ली मिडिवल इंडिया उपेंदर सिंह
2.	http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/36863/5/chapter%204.pdf
3.	https://www.ancient-buddhist-texts.net/Maps/During-Asokas-Time/Map-14-7-NBPW.htm
4.	https://www.revolvy.com/main/index.php?s=Painted+Grey+Ware+culture    
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        