अधिक समाजवाद से जुड़ी मुसीबतें

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
23-05-2018 01:52 PM
अधिक समाजवाद से जुड़ी मुसीबतें

समाजवाद एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है जिसका अध्ययन सभी को करने की आवश्यकता है। समाजवाद एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। भारत में समाजवाद की शुरुआत 20वीं सदी में एक राजनीतिक आन्दोलन के रूप में हुई थी। समाजवाद को शुरू करने वालों में महात्मा गाँधी का नाम लिया जा सकता था, उस दौरान भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और इस आन्दोलन का मकसद सभी को समानता का अधिकार देना और भारत को स्वतंत्र कराना था। एक ऐसा दौर आया जब समाजवाद पूरे भारत में मशहूर हो गया जिसका श्रेय भारत के विभिन्न समाज सुधारकों को दिया जा सकता है। राम मनोहर लोहिया का योगदान समाजवाद को एक नयी ऊँचाई पर ले कर गया। आज़ादी के बाद से लेकर 1990 तक समाजवाद ने भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक नीतियों को आकार दिया। भारत में समाजवाद ने एक अच्छी प्रगति दिखाई लेकिन इससे कई विफलताएं भी समाज में आयीं।

समाजवाद की विफलताएं -
समाजवाद में सरकार एक ऐसी भूमिका का निर्वहन करती है जो कि पूरे समाज की अर्थव्यवस्था को अपने अंतर्गत सन्निहित कर के रखती है। इस व्यवस्था के कारण सरकार ही ऐसी एकमात्र साधन बन जाती है जो कि नौकरियों से लेकर अन्य सभी सुविधाएँ मुहैया करवाती है। सरकार ही सभी साधनों की निगरानी करती है। जैसा कि यह समाजवाद की व्यवस्था अत्यंत ही उत्तम है परन्तु इनमें कई खामियां भी समय के साथ निकल कर सामने आती हैं।

समाजवाद के प्रोत्साहन की समस्या -
सरकार के हाथ में सारी व्यवस्थाएं आ जाने के कारण सबसे मुख्य समस्या का जन्म होता है और यह समस्या है उपभोक्ता और उत्पादक के प्रोत्साहन का बदल जाना। अगर सरकार मार्क्स के नारे जो कि इस बात पर बल देता है कि लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार ही काम करना चाहिए, को लागु करने लग जाए तो लोग उतनी प्रतिष्ठा से काम नहीं करेंगे जितनी प्रतिष्ठा से पूंजीवादी ढांचे में आकर करते हैं। समाजवाद प्रणाली का सिद्धांत यह है कि वह उपभोक्ता और उत्पादक दोनों को अलग रखे। यह इस बात को भी प्रस्तुत करता है कि समाजवाद में उपभोगता को वस्तुओं का उपभोग करने से मतलब है न की उत्पादक से।

समाजवाद में जोड़-घटाव की समस्या -
समाजवाद में जोड़ घटाव की समस्या को देखा जा सकता है। एक ही व्ययस्था के लिए सभी प्रकार की व्यवस्थाओं का देख रेख ऐसी समस्या को जन्म देता है।

भारत में समाजवाद की जड़ें -
भारत में समाजवादी आन्दोलन का जन्म रूस की क्रांति के साथ ही हुआ। 1871 में कलकत्ता के एक दल ने कार्ल मार्क्स को संकुचित किया, उनका उद्देश्य फर्स्ट इंटरनेशनल (First International) का एक भारतीय सम्प्रदात आयोजित करना था। लेकिन उनकी यह मुहीम सफ़ल नहीं हो पाई। रूस की क्रांति के दौरान मार्क्सवाद (Marxism) ने भारतीय समाज पर एक गहरा छाप छोड़ा था। सबसे पहले भारतीय समाजवाद में खिलाफ़त आन्दोलन ने काफ़ी योगदान दिया था।

राजनीति में समाजवाद -
1931 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के कराची सत्र में, विकास के समाजवादी ढांचे को भारत के लिए लक्ष्य के रूप में स्थापित किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1955 आबादी संकल्प के माध्यम से, विकास के एक समाजवादी व्यवस्था को लक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया था। एक साल बाद, भारतीय संसद ने अधिकारिक नीति के रूप में 'विकास के समाजवादी व्यवस्था' को अपनाया, एक नीति जिसमें भूमि सुधार और उद्योगों के नियम शामिल थे। आपातकाल के दौरान, 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान के प्रस्तावना में समाजवादी शब्द को जोड़ा गया।

इस्लामी समाजवाद -
इस्लामिक समाजवाद एक ऐसा शब्द है जो विभिन्न मुस्लिम नेताओं द्वारा गढ़ा गया है। यह समाजवाद के आध्यात्मिक रूप को दर्शाता है। मुस्लिम समाजवादी कुरान और मुहम्मद की शिक्षण को मानते हैं, खासकर ज़कात (Zakat)। वे यह मानते हैं कि उनका शिक्षण अर्थव्यवस्था के सिद्धांतो और समाज में समानता को दर्शाता है। वे पुराने मदीना वेलफेयर स्टेट (Medinan Welfare State) से प्रेरणा लेते हैं जोकि मुहम्मद द्वारा स्थापित किया गया था। इस्लामी समाजवादी साम्राज्यवाद का विरोध करते हैं।

ज़कात-
इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक, ज़कात संचित धन पर आधारित लगाव का अभ्यास है। यह सभी वित्तीय रूप से सक्षम मुस्लिम वयस्कों के लिए अनिवार्य है और इसे पवित्रता का कार्य माना जाता है। ज़कात संपत्ति के न्यायसंगत पुनर्वितरण को बढ़ावा देता है और समुदाय के बीच एकजुटता की भावना को बढ़ावा देता है।

1. https://courses.lumenlearning.com/zelixeco201v2/chapter/the-failures-of-socialism/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Socialism_in_India
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_socialism