अक्सर हम एक शब्द सुनते हैं कच्ची कली कचनार की। कचनार का अपना एक अहम स्थान है पेड़ जगत में। यह पेड़ सौंदर्य तो प्रस्तुत करता ही है और साथ ही साथ यह खाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। कचनार का पेड़ दक्षिणी एशिया का मूल वृक्ष है। यह चीन, बर्मा, भारत, नेपाल, पकिस्तान और श्रीलंका में पाया जाता है। इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ‘बौहिनिया वरिएगाता’ है। कचनार एक पतझड़ वाला वृक्ष है जिसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर तक होती है। ये पेड़ हरे रंग का होता है और इसका पुष्प हलके गुलाबी नीला रंग का होता है। पेड़ के पत्ते ऊंट के पैर की छाप की तरह दिखाई देते हैं। कचनार में पहला पुष्प सर्दियों के अंत में आता है।
इसका फल करीब 15-30 सेंटी मीटर लम्बा होता है। कचनार मोर पुष्प से अत्यंत सम्बंधित है और यह विश्व भर में एक सुन्दर पुष्प देने वाले वृक्ष की श्रेणी में आता है। यह पेड़ भनभनाने वाली चिड़ियों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। कचनार का पत्ता, पुष्प और पुष्प की कली खाने के प्रयोग में लायी जाती है। यह पेड़ विटामिन-सी का प्रमुख श्रोत है। इस वृक्ष का प्रयोग मात्र खाने या सौन्दर्य के लिए ही नहीं बल्कि इसका प्रयोग आयुर्वेद में भी औषधि के रूप में किया जाता है। यह क्रीमी रोग (पेट के कीड़े), गलसुआ रोग, कवकरोधी , जीवाणुरोधी, दर्द, बुखार आदि प्रयोग में लाया जाता है। इस पेड़ की आयु 40 से 150 साल की होती है। कचनार के कली की सब्जी सबसे स्वादिष्ट बनती है। कचनार की सब्जी की विभिन्न विधियाँ गूगल आदि पर मिल जाती है। नीचे दिए गए सन्दर्भों की सूची में कचनार की सब्जी की विधि दी गयी है।
कचनार का परागन एक अत्यंत रोचक प्रक्रिया का पालन करता है। जब कचनार का फल पक जाता है तब यह फट कर बिखर जाता है जिससे इसके अन्दर के बीज आस पास करीब 30-35 मीटर दूर जाकर गिरते हैं। फिर सही मौसम आने पर यही बिखरे हुए बीज पौधे के रूप में जमीन से बाहर निकलते हैं। इसके फटने पर ऐसा लगता है मानो कोई पटाखा फूटा हो। रामपुर में कचनार का पेड़ बड़ी मात्रा में पाया जाता है। यहाँ पर इस सुन्दर पुष्प को उद्यानों व बगीचों में आसानी से देखा जा सकता है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Bauhinia_variegata
2. http://www.planetayurveda.com/library/kachnar-bauhinia-variegata
3. https://selectree.calpoly.edu/tree-detail/bauhinia-variegata
4. https://nishamadhulika.com/368-kachnar-kali-recipe.html
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