पीने योग्य जल स्रोत का अभाव

नदियाँ और नहरें
29-04-2018 12:07 PM
पीने योग्य जल स्रोत का अभाव

भारत में नदियों की, भूजल की इतनी भी कमी नहीं है लेकिन आज भी 6,00,000 भारतीय गाँवो में तक़रीबन 50% में नलों में पानी नहीं है। नल-पानी छोड़ के अन्य स्त्रोत आज आधे से ज्यादा भारतीय जनसंख्या के लिए पानी का सहारा है। पानी के लिए आज लोगों को ख़ास कर गाँवो में कठिन परिश्रम करते हुए भटकना पड़ रहा है।

रामपुर को पानी कोसी और सिंचाई से मिलता है। कोसी का पानी बहुत ही प्रदूषित हो चुका है और कुछ सालों पहले रामपुर ज़िले में पानी की बहुत तंगी महसूस हुई थी। इस समस्या से निपटने के लिए रामपुर सरकार ने बहुत से उपाय और योजनाएं जाहिर की हैं।

भारत को स्वंत्रता मिलने के बाद भारत सरकार ने चौबीस घंटे घर-घर बिजली और पानी पहुँचाने का जिम्मा उठाया मगर यह कार्य उन्होंने पूरा नहीं किया। कुछ लोगों का कहना हैकि इस वादे की वजह से लोगों ने अपने परंपरागत, समय-परिक्षण किये हुए जल-संरक्षण की तकनीकों की उपेक्षा करना शुरू किया। वक़्त के चलते आज बहुत से गाँवों में पानी के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है। शहर में भी बहुत बार दिन में दो या तीन घंटे ही कभी कभी पानी आता है जिस वजह से लोग पानी इस्तेमाल के लिए जमा कर रखते हैं। जहाँ पर चौबीसों घंटे पानी होता है वो बहुतायता से बोरवेल से मिलने वाला भूजल होता है। नदियां, तालाब आदि को इंसान ने जो आधुनिकीकारण वगेरह के नाम पर दूषित किया है उस वजह से पानी की कमतरता और भी बढ़ गयी है। आज सरकार द्वारा और जनजागृति आदि के द्वारा लोगों को पानी बचाने के लिए, उसे दूषित ना करने के लिए और बारिश-पानी का संग्रहण करने के लिए आवाहन दिया जा रहा है।

राजस्थान के जैसलमेर में आज भी हर घर का अपना पानी का स्त्रोत उन्होंने संरक्षित कर रखा है, इस पद्धति को सभी को अपनाना चहिये था। आधुनिकीकरण के बावजूद आज भी जैसलमेर में पानी के स्त्रोत वहीं पर संरक्षित किये गए हैं।

आज हमें ये सोचना चाहिए कि पानी का निर्माण नहीं होता, जो पानी हमें मिलता है, नदी तालाबों में भी वो हमें बारिश से ही मिलता है। हमें जल संरक्षण के लिए बहुत सोच समझकर ठोस कदम जल्द ही उठाने चाहिये जिसके तहत उपलब्ध स्त्रोतों की सफाई, आगे प्रदूषित ना करने का फैसला, नए स्त्रोतों को जैसे भूजल और कुओं को खोदना और संरक्षित करना, बारिश के पानी का संग्रहण तथा बिना किसी राजकरण के, हर घर नल का पानी पहुँचाने का सरकार द्वारा प्रयास और साथ ही परंपरागत पानी के संरक्षण तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा।

वैसे भी नल का पानी हो सकता है कि दूषित हो क्यूंकि वो बहुत लम्बे और विभिन्न प्रदेशों में से गुजरकर आता है। पानी का मितव्ययी इस्तेमाल करते हुए और सुरक्षा की दृष्टी से भी, नल के पानी को शुद्ध करके मिट्टी के मटके आदि में संगृहीत कर सकते हैं। मिट्टी का मटका इस तरह से बना होता है कि जल हमेशा शीतल रहे और वो प्रदूषित ना हो, मिट्टी की खुशबू और अच्छे धातुज भी पानी में मिलकर उसे अच्छाई प्रदान करते हैं।

1.http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/tp-newdelhi/turn-to-traditional-wisdom-of-water-harnessing/article2041465.ece