मोहरों का अपना एक अलग इतिहास है। जब हम रामपुर की चर्चा करते हैं तो हमें पता चलता है कि रामपुर में भी एक प्रकार की मोहर थी जो आज भी यहाँ दिखाई दे जाती है। नवाब के किताबखाने की आधिकारिक मोहर जिस पर फ़ारसी भाषा में लिखा गया था, वे अब रज़ा पुस्तकालय द्वारा संचालित किये जाते हैं। रज़ा पुस्तकालय नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा बनवाया गया था। इस किताब खाने में बहुत सी दुर्लभ और विशेष तरह की किताबें मौजूद हैं। यहाँ इस्लामिक सुलेख के नमूने, लघु चित्र, खगोलीय उपकरण और अरबी और फ़ारसी में लिखे गए दुर्लभ लेख भी मौजूद हैं। यहाँ पर विभिन्न भाषाओं के ऊपर किताबें हैं जैसे संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पश्तो, तमिल और तेलुगु आदि। इस किताब खाने में कुल 30,000 किताबें उपलब्ध हैं।
इसी किताब खाने में नवाब के समय के मोहर भी रखी गई हैं, यह दुर्लभ मोहर फ़ारसी भाषा में लिखी हुई हैं। पुस्तक की पहचान पुस्तक के अन्दर छपी नाम पट्टिका से होती है और इन्हें अंग्रेजी में बुकप्लेट (Bookplate) कहा जाता है। नाम पट्टिका पर नाम, सिद्धांत, युक्ति, शिखा और बिल्ला होता है, यह इसीलिए लगाया जाता है ताकि किताब के मालिक की पहचान दर्ज हो पाए। अक्सर किताब पट्टिका पर ऐसे शुरुआत की जाती है ‘यह किताब इनको संदर्भित करती है’ या ‘यह किताब इस पुस्तकालय की है’। किताबी पट्टिका किताब की उत्पत्ति के सबूतों को दर्शाती है। किताब के स्वामित्व को बताने के लिए पट्टिका का इस्तेमाल बहुत पुराने समय से किया जा रहा है। सबसे पहले यह प्रथा प्राचीन मिस्र में शुरू हुई थी और धीरे-धीरे विश्व भर में फ़ैल गई।
पुस्तकालय के मोहर बहुत से प्रकार के होते हैं :-
*प्रतिमाविद्या मोहर- इन मोहरों में चित्र दोनों तरफ होते हैं।
*एकरंगा मोहर- इस मुद्रा में एक तरफ पर नाम-चिह्न होते है। यह या तो नाम, कार्यालय का नाम, चिह्न आदि होता है।
*शाही मुद्रा- इन मुद्राओं में राजाओं के चित्र या उनके परिवारों के चित्र होते हैं। अक्सर इनपर कुछ शिलालेख भी होते हैं (विशेष तरह की भाषाओं में)।
*कुलपति की मुद्रा- यह शाही मुद्रा की तरह ही होती है लेकिन इसपर अद्भुत तरह के चित्र और कलाकृति होते हैं।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/bookplate
2. www.doaks.org/resources/seals/typpes-of-seals
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