हम एक केंद्र बिन्दु के बिना कोई मंडल नहीं बना सकते। भगवान केंद्र स्रोत है और हमारे जीवन का सार है हमारे जीवन में केन्द्र बिन्दु के रूप में हम उसी (भगवान) को स्वीकारते हैं और फिर हम अपने दैनिक कार्य में लग जाते हैं। यह प्रदक्षिणा का महत्व है।
इसके अलावा एक वृत्त की परिधि पर हर बिंदु केंद्र से समान है। इसका मतलब यह है कि हम जहां कहीं भी हों और हम जो भी हों, हम भी भगवान के समान हैं। उनका अनुग्रह बिना किसी पक्षपात के हमारे प्रति बहता है।
हम प्रदक्षिणा दायें से करते हैं, भगवान हमेशा हमारी तरफ हैं दाहिना भाग इस बात को दर्शाता है। भारत में दाईं ओर शुभता का प्रतीक है तो जैसे ही हम पवित्र स्थान की प्रदक्षिणा करते हैं, हम खुद को धार्मिकता के एक शुभ जीवन का नेतृत्व करने के राह पर पाते हैं। प्रभु का साथ जो सहायता और ताकत का अपरिहार्य स्रोत है, हमारे मार्गदर्शक के रूप में चलते हैं। भारतीय ग्रंथों ने कहा - मातृदेव भव, पितृदेव भव, आचार्यदेव भव। क्या आप अपने माता-पिता और शिक्षकों को भगवान के तौर पर मानते हैं? इस बात को ध्यान में रखते हुए हम अपने माता-पिता और दिव्य व्यक्तियों के चारों ओर प्रदक्षिणा भी करते हैं। पारंपरिक पूजा पूरा करने के बाद, हम सामान्यतः खुद के आसपास प्रदक्षिणा करते हैं। इस तरह हम सर्वोच्च को पहचानते हैं और याद करते हैं हमारे भीतर की दिव्यता, जो अकेले भगवान के रूप में मूर्ति है जिसे हम पूजा करते हैं।
1. इन इंडियन कल्चर व्हाई डू वी... – स्वामिनी विमलानान्दा, राधिका कृष्णकुमार
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