यह सच है कि ‘एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है।’ लेकिन कुछ तस्वीरें, हमें निशब्द भी कर देती हैं। पोस्टकार्ड, ऐसी ही निशब्द कर देने वाली दुर्लभ तस्वीरों से भरे होते हैं। भारतीय इतिहास में, पोस्टकार्डों का सफ़र, देखने लायक है। आज विश्व डाक दिवस के अवसर पर, हम भारत के शुरुआती पोस्टकार्डों के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, हम बाज़ार पोस्टकार्ड ( Bazaar Postcard) की अनोखी उपयोगिता और इनके विभिन्न प्रकारों को समझने का भी प्रयास करेंगे।
भारत में पहला पोस्टकार्ड, 1879 में जारी किया गया था। यह हल्के भूरे रंग में छपा था और इसकी कीमत, 3 पैसे थी। इस पोस्टकार्ड पर "ईस्ट इंडिया पोस्टकार्ड (East India Postcard)" लिखा हुआ था, और इसके बीच में ग्रेट ब्रिटेन (Great Britain) का कोट ऑफ़ आर्म्स (Coat of Arms) था। ऊपरी दाएं कोने में रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) की लाल-भूरे रंग की छवि थी। उस समय, भारतीय लोगों को संदेश भेजने का यह तरीका बहुत पसंद आया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में ही लगभग ₹7.5 लाख के पोस्टकार्ड बिक गए थे।
आज भारतीय डाकघरों में चार प्रकार के पोस्टकार्ड उपलब्ध हैं:- मेघदूत पोस्टकार्ड – कीमत: 25 पैसे
- सामान्य पोस्टकार्ड – कीमत: 50 पैसे
- मुद्रित पोस्टकार्ड – कीमत: ₹6
- प्रतियोगिता पोस्टकार्ड – कीमत: ₹10
ये सभी पोस्टकार्ड 14 सेमी लंबे और 9 सेमी चौड़े होते हैं।
ब्रिटिश काल के दौरान, पोस्टकार्ड और लिफ़ाफ़े भी सचित्र विज्ञापनों के रूप में कार्य करते थे। इनमें बड़े शहरों में विभिन्न व्यापारियों के उत्पादों को प्रदर्शित किया जाता था। इन निजी पोस्टकार्डों पर नए उत्पादों और विषयों की तस्वीरें होती थीं, जो देशभक्ति, धार्मिक या सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिक होती थीं। इनमें विभिन्न स्थानों की छवियाँ, विभिन्न मूड में महिलाएँ, दैनिक जीवन के दृश्य और पौराणिक आकृतियाँ भी शामिल थीं।
कुछ कार्ड विशेष व्यापारियों द्वारा विशिष्ट उद्धरणों और छवियों के साथ मुद्रित किए जाते थे, जबकि अन्य में मानक डिज़ाइन होते थे जो किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते थे। ये निजी पोस्टकार्ड, बाज़ारों में बेचे जाते थे और इनका उपयोग व्यापारी सहित कोई भी कर सकता था। इन कार्डों का उपयोग, व्यापारी मुख्य रूप से अपने सामान का प्रचार ग्राहकों और आपूर्तिकर्ताओं के बीच व्यावसायिक संचार के लिए करते थे। इस उद्देश्य के कारण, इन पोस्टकार्डों को "बाज़ार कार्ड" ( Bazaar Card) के नाम से जाना जाने लगा।
बाज़ार कार्ड का परिचय: बाज़ार कार्ड, निजी पोस्टकार्ड होते थे, जिन पर विभिन्न व्यवसायों के चित्र और विज्ञापन छपे होते थे । इस तरह के कार्ड, अलग-अलग कंपनियों द्वारा मुद्रित किए जाते थे और सार्वजनिक बाज़ारों में बेचे जाते थे। व्यापारी और व्यवसायी इनका उपयोग मुख्य रूप से अपने उत्पाद या सेवा के प्रचार के लिए करते थे, जिससे वे अपने उत्पादों के दैनिक मूल्य और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर सकें।
शुरुआत में, इन कार्डों को बाज़ार भाव कार्ड, विज्ञापन कार्ड, मर्चेंट कार्ड (Merchant Card) और बिज़नेस कार्ड (Business Card) जैसे कई नामों से जाना जाता था। कुछ स्थानों पर और विभिन्न समयावधि में, इन्हें आदित्य कार्ड, स्वदेशी कार्ड, प्रिंटर कार्ड (Printer Card), संदेश कार्ड, नियमित कार्ड, बाज़ार कार्ड और बाज़ार प्रचार पोस्टकार्ड (Market Promotion Postcard) भी कहा जाता था। "बाज़ार कार्ड" शब्द, 1987 या 1988 में पुणे में डेक्कन फ़िलाटेलिक क्लब के सदस्य श्री दीपेश सेन द्वारा पेश किया गया। यह नाम डाक टिकट संग्रहकर्ताओं के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो गया, और इसके परिणामस्वरूप, "बाज़ार कार्ड" नाम व्यापक रूप से स्वीकार किया जाने लगा।
भारत में बाज़ार कार्ड का ऐतिहासिक सफर
टाइप I: बिना मुद्रित टेक्स्ट वाला रिक्त कार्ड: यह एक साधारण रिक्त कार्ड होता है, जिसमें केवल एक पता होता है। ये कार्ड, पतले कार्डबोर्ड (Cardboard) से निर्मित होते है, जिनकी मोटाई लगभग 0.5 से 0.6 मिमी होती है और सतह ख़ुरदरी होती है। कागज़ की मोटाई अलग-अलग हो सकती है।
टाइप II: मुद्रित टेक्स्ट वाला रिक्त कार्ड: इस प्रकार के कार्ड पर टेक्स्ट छपा होता है, जिसमें प्रिंटर का नाम और स्टैम्प के लिए एक बॉक्स दिया जाता है। कुछ कार्डों में चित्र नहीं होते, बल्कि पीछे की तरफ़, विज्ञापन के लिए दो-लाइन की पट्टी होती है। यह पट्टी, लेखक को संदेश जोड़ने के लिए अधिक स्थान देती है।
टाइप III: 'शेर और यूनिकॉर्न' प्रतीक (Lion and Unicorn Symbol) का अनधिकृत उपयोग: शेर और यूनिकॉर्न, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के प्रतीक हैं, जो इंग्लैंड और स्कॉटलैंड का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए यह संयोजन, 1603 में इंग्लैंड के जेम्स I के राज्याभिषेक से जुड़ा है।
टाइप IV: विज्ञापन के साथ प्रिंटर का नाम: ये बाज़ार पोस्टकार्ड, सामान्य बाजारों और स्टेशनरी की दुकानों में बेचे जाते थे। व्यापारी इनका उपयोग व्यापक रूप से करते थे, इसलिए ये थोक में उपलब्ध थे। इन कार्डों पर विज्ञापन छपने से उनकी बिक्री को बढ़ावा मिला। इस तरह के लगभग 1000 कार्डों की कीमत, 1-8 रुपये के बीच होती थी।
टाइप V: डबल सजावटी बॉक्स वाले आयत के साथ प्रिंटर का नाम: इस डिज़ाइन का चयन करने का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन डबल सजावटी बॉक्स के जुड़ने से पंजीकृत मेल के लिए अतिरिक्त स्थान उपलब्ध हुआ, जिसके लिए अतिरिक्त स्टैंप की आवश्यकता होती थी ।
टाइप VI: पते के लिए, स्थान के साथ मुद्रित डिज़ाइन: इन पोस्टकार्डों में सामने की ओर, मुद्रित डिज़ाइन होते थे, जिससे पते के लिए स्थान खाली
रहता है। इनमें से कई कार्डों पर हिंदू देवी-देवताओं की छवियाँ और पौराणिक कथाएँ दर्शाई जाती थीं । इन पोस्टकार्डों में, रामायण और महाभारत (Ramayana and Mahabharata) के नायकों के दृश्य भी शामिल होते थे, और कुछ चित्र कार्ड के सामने के भाग या पूरे हिस्से को कवर करते थे।
बाज़ार में बिकने वाले कई पोस्टकार्डों पर महत्वपूर्ण राजाओं और शासकों की तस्वीरें छपी हुई थीं। इन पोस्टकार्डों का उद्देश्य, लोगों में अपने नेताओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। इनमें प्रसिद्ध योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें भी शामिल थीं, जो मातृभूमि के प्रति स्वतंत्रता और प्रेम की भावना को प्रेरित करने के लिए प्रदर्शित की जाती थीं। उस समय, कई भारतीय, अपने अधिकारों को पाने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24fwvcly
https://tinyurl.com/23jodqwv
https://tinyurl.com/28m4ryd9
चित्र संदर्भ
1. पीलीभीत में हाफ़िज़ रहमत खान द्वारा निर्मित मस्ज़िद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. उर्दू में लिखे 19वीं सदी के पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. 19वीं सदी के नजीबाबाद को दर्शाते चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. माँ सरस्वती के रूपों को दर्शाते दो दुर्लभ पोस्टकार्डों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. रामायण की किवदंतियों को दर्शाते तीन दुर्लभ पोस्टकार्डों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)