रामपुर में गांधी समाधि की भूमिका केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल तक ही सीमित नहीं है। रामपुर वासियों के लिए, इसकी दार्शनिक भूमिका को समझना भी बहुत ही ज़रूरी है। हमारे लिए, यह स्थान एक प्रकाश पुंज की भांति होना चाहिए जो हमें याद दिलाता रहे कि यदि हमारा लक्ष्य लोगों की भलाई और सामाजिक कल्याण है तो हम लहू का एक क़तरा बहाए बिना भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। गांधीजी के शांतिपूर्ण आंदोलनों की विचारधारा ने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों की जेम्स फ़ार्मर (James Farmer) और मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) जैसी सबसे प्रभावशाली हस्तियों को भी गांधीजी का मुरीद बना दिया। गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित आंदोलनों का एक उत्कृष्ट उदाहरण अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) है। आज गाँधी जयंती के इस शुभ अवसर पर हम उनसे प्रेरित प्रमुख आंदोलनों और हस्तियों के बारे में जानेंगे।।
नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक संघर्ष था। यह 1950 और 1960 के दशकों में सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया कदम था। इसका मुख्य उद्देश्य अश्वेत अमेरिकियों को अमेरिका में कानून के तहत समान अधिकार दिलाना था। हालांकि गृहयुद्ध के बाद दासता की प्रथा समाप्त हो गई थी, लेकिन इसके बाद भी, अश्वेत लोगों के खिलाफ़ भेदभाव का सिलसिला जारी रहा। विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में, उन्हें गंभीर नस्लवाद का सामना करना पड़ रहा था। 20वीं सदी के मध्य तक, अश्वेत अमेरिकी और विभिन्न पृष्ठभूमियों के कई सहयोगी एकजुट हुए और समानता के अधिकार के लिए, एक शक्तिशाली आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन, अपने आप में अद्वितीय था और लगभग बीस वर्षों तक चला। इस आंदोलन के बल पर लोगों ने उन अन्यायपूर्ण कानूनों और प्रथाओं को चुनौती दी, जो अश्वेत लोगों के खिलाफ़ भेदभाव को बढ़ावा देती थीं। इस संघर्ष ने न केवल अमेरिका में सामाजिक बदलाव की नींव रखी, बल्कि यह दुनिया भर में समानता और न्याय के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना।।
आगे हम उन कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर नज़र डालेंगे जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) को आकार दिया:
मामले में, नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ कलर्ड पीपल (National Association for the Advancement of Colored People, NAACP) के लीगल डिफेंस एंड एजुकेशनल फ़ंड (Legal Defense and Educational Fund) का नेतृत्व थर्गूड मार्शल (Thurgood Marshall) ने किया। इस समूह ने स्कूलों में नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। इसी बीच, ब्राउन बनाम बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन (Brown v. Board of Education) का मामला सामने आया, जिसमें स्कूलों में भेदभाव के खिलाफ़ पाँच अलग-अलग मुकदमे शामिल थे। 17 मई, 1954 को, यू.एस. सुप्रीम कोर्ट (U.S. Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। इस फ़ैसले में कहा गया कि "अलग-अलग शैक्षणिक सुविधाएँ स्वाभाविक रूप से असमान हैं (separate educational facilities are inherently unequal)।" इस फैसले को सार्वजनिक स्कूलों में नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है। साथ ही इसने 1896 के प्लेसी बनाम फ़र्ग्यूसन (Plessy v. Ferguson) के "अलग लेकिन समान (separate but equal)" सिद्धांत को पलट दिया।
रोज़ा पार्क्स (Rosa Parks) की गिरफ़्तारी (1 दिसंबर, 1955): नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, रोज़ा पार्क्स (Rosa Parks) को मोंटगोमरी (Montgomery), अलबामा में एक श्वेत यात्री को अपनी बस की सीट देने से इनकार करने के मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी के बाद मोंटगोमरी बस बहिष्कार (Montgomery Bus Boycott) नामक चर्चित घटना शुरू हो गई। इसे नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) को हवा देने वाली एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस घटना ने उस समय के युवा मंत्री डॉ. मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (Dr. Martin Luther King Jr.) की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जो इस दौरान एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे।
लिटिल रॉक स्कूल एकीकरण संकट (Little Rock School Integration Crisis): ब्राउन बनाम बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन (Brown v. Board of Education) के फैसले के बाद, कई राज्य और स्थानीय अधिकारियों ने स्कूलों को एकीकृत करने का विरोध किया। सितंबर 1957 में, नौ अफ़्रीकी अमेरिकी छात्रों ने लिटिल रॉक (Little Rock), अर्कांसस में सेंट्रल हाई स्कूल (Central High School) में प्रवेश करने की कोशिश की। गवर्नर ने उनके प्रवेश को रोकने के लिए नेशनल गार्ड (National Guard) को भेज दिया। इसके जवाब में, तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहॉवर (Dwight Eisenhower) ने अर्कांसस नेशनल गार्ड (Arkansas National Guard) का राष्ट्रीयकरण किया और छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिकी सेना भेज दी।
वाशिंगटन पर मार्च (March on Washington) (28 अगस्त, 1963): इस दिन, वाशिंगटन, डी.सी. (Washington, D.C.) में लाखों लोग एकत्र हुए। यह देश में अब तक का सबसे बड़ा अहिंसक नागरिक अधिकार प्रदर्शन था। इसे "जॉब्स एंड फ़्रीडम के लिए वाशिंगटन पर मार्च (March on Washington for Jobs and Freedom)" कहा गया। अनुभवी रणनीतिकार बेयर्ड रस्टिन (Bayard Rustin) द्वारा आयोजित इस मार्च का उद्देश्य नागरिक अधिकारों और आर्थिक न्याय में तत्काल बदलाव की आवश्यकता को उजागर करना था। ये सभी घटनाएँ, नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) के दौरान, समानता और न्याय की लड़ाई में महत्वपूर्ण मील के पत्थर (Milestone) साबित हुईं। साथ ही, इन्होंने भविष्य में नागरिक अधिकार कानून और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।।
1963 के वसंत में, डॉ. मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (Dr. Martin Luther King Jr.) के नेतृत्व में दक्षिणी ईसाई नेतृत्व सम्मेलन (Southern Christian Leadership Conference, SCLC) ने बर्मिंघम, अलबामा में सिट-इन और मार्च का एक बड़ा अभियान आयोजित किया। इस दौरान उन्होंने शहर में कठोर अलगाव नीतियों का विरोध किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान, कई प्रदर्शनकारियों, जिसमें डॉ. किंग भी शामिल थे, को गिरफ़्तार किया गया। जेल में रहते हुए, उन्होंने "बर्मिंघम जेल से पत्र (Letter from Birmingham Jail)" नामक एक प्रसिद्ध पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अहिंसक विरोध के अपने विचारों को साझा किया। यहीं से उन्होंने सविनय अवज्ञा का एक महत्वपूर्ण बचाव भी प्रस्तुत किया। महात्मा गांधी के विचारों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) को गहराई से प्रेरित किया। गांधी जी ने अहिंसा की शक्ति को उजागर किया था। उनके दृष्टिकोण ने किंग के दृष्टिकोण को भी प्रभावित कर दिया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर का मानना था कि गांधी जी का सिद्धांत, उत्पीड़ित लोगों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है। साथ ही यह नैतिक रूप से सही और व्यावहारिक भी है। किंग ने गांधी जी के अहिंसक संघर्ष को ईसाई धर्म के सिद्धांतों के साथ भी जोड़ा। उन्होंने कहा, "ईसा मसीह ने हमें रास्ता दिखाया, और भारत में गांधी ने यह साबित किया कि यह काम कर सकता है।" उन्होंने गांधी जी को "आधुनिक दुनिया का सबसे बड़ा ईसाई (greatest Christian of the modern world)" भी कहा!
किंग ने 1955-56 के मोंटगोमरी बस बहिष्कार (Montgomery Bus Boycott) के दौरान पहली बार अहिंसक प्रत्यक्ष कार्रवाई को अपनाया। 1959 में, किंग अपनी पत्नी कोरेटा स्कॉट किंग (Coretta Scott King) और मित्र लॉरेंस डी. रेडिक (Lawrence D. Reddick) के साथ भारत आए। इस यात्रा का आयोजन अमेरिकन फ़्रेंड्स सर्विस कमेटी (American Friends Service Committee, AFSC) और गांधी स्मारक निधि (Gandhi Memorial Trust) ने किया। पाँच सप्ताह की इस यात्रा के दौरान, किंग ने गांधी के परिवार के सदस्यों, भारतीय कार्यकर्ताओं और अधिकारियों से मुलाकात की। साथ ही इस , उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से अपने विचारों को साझा किया। 1959 में पाम संडे (Palm Sunday) के दिन एक उपदेश में, किंग ने गांधी के 1928 के नमक मार्च और अछूतों के खिलाफ़ भेदभाव समाप्त करने के लिए उनके उपवास के महत्व पर चर्चा की।
किंग का दृढ़ विश्वास था कि गांधी जी का अहिंसक प्रतिरोध अमेरिका में नस्लीय मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकता है। हालांकि महात्मा गांधी के विचारों ने केवल डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) को ही नहीं, बल्कि कई अन्य नागरिक अधिकार नेताओं को भी प्रेरित किया। डॉ. किंग को 1940 के दशक के अंत में गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों के बारे में पता चला। लेकिन जेम्स फ़ार्मर (James Farmer) ने गांधी जी की शिक्षाओं को 1940 से ही अपनाना शुरू कर दिया था।
1942 में, जेम्स फ़ार्मर (James Farmer) ने शिकागो (Chicago) में पहले नागरिक अधिकार धरने के दौरान गांधी के "सत्याग्रह (Satyagraha)" का उपयोग किया। सत्याग्रह का अर्थ "सत्य के लिए आग्रह (insistence on truth)" होता है। इसके तहत सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए अन्याय का विरोध किया जाता है। सत्याग्रह की यह रणनीति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ अमेरिका और अन्य देशों के नागरिक अधिकार आंदोलनों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। फ़ार्मर ने कांग्रेस ऑफ़ रेशियल इक्वॉलिटी (Congress of Racial Equality, CORE) की स्थापना की और अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के चार प्रमुख नेताओं में से एक बन गए। उन्होंने 1961 में फ़्रीडम राइड्स (Freedom Rides) का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य अंतरराज्यीय बस यात्रा में भेदभाव को समाप्त करना था। इस महत्वपूर्ण यात्रा का पहला पड़ाव, फ़्रेड्रिक्सबर्ग (Fredericksburg) था।
जेम्स फ़ार्मर (James Farmer) पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गांधी की सत्याग्रह की शिक्षाओं को अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) में शामिल किया। कोर (CORE) के प्रारंभिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि फार्मर और अन्य सदस्यों ने 1941 की शुरुआत में ही अमेरिका में सत्याग्रह का उपयोग करना शुरू कर दिया था। कोर के इतिहास में उल्लेख मिलता है कि "1941 की शरद ऋतु में, शिकागो विश्वविद्यालय (University of Chicago) और धर्मशास्त्रीय सेमिनरी (Theological Seminary) के कई छात्रों ( जो बाद में कोर के सदस्य बने) ने भारत में गांधी जी के आंदोलन का गहराई से अनुसरण किया और उनके द्वारा सिखाई गई अहिंसा की शक्ति से अत्यधिक प्रभावित हुए।" इस प्रकार, जेम्स फ़ार्मर (James Farmer) ने बापू के सिद्धांतों को अपनाकर अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) को एक नई दिशा दी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24sjnyer
https://tinyurl.com/24sjnyer
https://tinyurl.com/2b2u7cly
https://tinyurl.com/2b43v5bh
https://tinyurl.com/y73y3pks
चित्र संदर्भ
1. वाशिंगटन डीसी, यूएसए में मिलियन मैन मार्च को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपने मताधिकार के लिए, 7 मार्च 1965 को शुरू हुई प्रदर्शनकारियों की सेल्मा से मोंटगोमरी तक मार्च के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ब्राउन बनाम बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन मामले में न्यायालय के निर्णय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1963 में, लिंकन मेमोरियल से वाशिंगटन तक लोगों के मार्च को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 22 जनवरी, 1969 को गांधी स्मारक निधि में सार्वजनिक बैठक को संबोधित करती हुई अमेरिकी नागरिक अधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर की पत्नी, श्रीमती कोरेटा किंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गांधीजी की एक तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)